नई दिल्ली। हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा वर्ष 2018 की सिविल सेवा परीक्षा के जो परिणाम घोषित किए गए हैं उसमें यह बेहद चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि इस बार हिंदी माध्यम से सफल होने वाले अभ्यर्थियों की कुल संख्या मात्र आठ है। देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवा (आईएएस), जिसे भारतीय प्रशासन का स्टील फ्रेम भी कहा जाता है, के लिए आयोजित परीक्षा में हर साल अंग्रेजी के साथ हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के अभ्यर्थी भी अच्छी संख्या में सफल होते हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि इस परीक्षा में हिंदी माध्यम से शामिल होने वाले अभ्यर्थियों को इतनी निराशा हाथ लगी है।
यूपीएससी द्वारा घोषित परिणाम पर अपनी हैरानी व चिंता व्यक्त करते हुए अंग्रेजी भाषा के लेखक एवं सामाजिक न्याय के लिए मुहिम चलाने वाले डॉ. बीरबल झा ने कहा कि आखिर इस नतीजों के संकेत क्या हैं? क्या यह मान लिया जाए कि हिंदी माध्यम वालों के लिए अब यूपीएससी के दरवाजे बंद हो रहे हैं? यूपीएससी ने वर्ष 2011 में पहले सीसैट पैटर्न लागू किया और फिर 2012 में अचानक परीक्षा का पाठ्यक्रम बदल दिया जिसके बाद से हिंदी माध्यम के छात्रों का रिजल्ट लगातार गिरता ही जा रहा है।
डॉ. झा ने कहा, अंग्रेजी की तुलना में हिंदी माध्यम के इस निराशाजनक परिणाम का कारण वस्तुत: हिंदी माध्यम की कमतर प्रतिभा नहीं, बल्कि हमारी दोषपूर्ण दोहरी शिक्षा प्रणाली है जिसमें अंग्रेजी माध्यम की तुलना में हिंदी माध्यम के छात्रों के साथ दोहरा व्यवहार किया जाता है। यही कारण है कि अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्राप्त करने वाले लोग सभी क्षेत्रों में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठा ले जाते हैं जबकि हिन्दी वालों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है।