गुना संसदीय क्षेत्र की जनता ने तीन पीढ़ियों को चुना सांसद

ग्वालियर से मां, बेटा और बेटी ने जीता चुनाव

Update: 2024-04-13 23:30 GMT

ग्वालियर। लोकसभा चुनाव का घमासान शुरू हो गया है। सभी प्रमुख दल अपने -आपने उम्मीदवारों का एलान कर रहे हैंं। चुनावी माहौल में कहीं पिता -पुत्र मैदान में उतर रहे हैं तो कहीं बेटा- बेटी भी चुनावी समर में कूंद रहे हैं। चुनाव में किसी को जीत मिलेगी तो कोई दिल्ली का टिकट नहीं ले पाएगा। लेकिन जनसेवा और लोकप्रियता के चलते कई चुनाव क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां एक परिवार की कई पीढिय़ां चुनाव जीतती रहीं हैं, भले ही उनके दल कोई भी हों। मध्यप्रदेश के ग्वालियर- चंबल संभाग की गुना सीट से तीन पीढियां चुनाव जीतकर सांसद पहुंची तो ग्वालियर व मुरैना से मतदाताओं ने पिता-पुत्र को भी विजयी बनाकर जनसेवा का अवसर दिया।

ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र से मां , बेटा और बेटी भी चुनाव जीतने में सफल हुए हैं। ग्वालियर- चंबल संभाग की गुना -शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र को तीन पीढिय़ों को अपना सांसद चुनने का सौभाग्य मिला है। वर्ष 1952 के चुनाव में ग्वालियर अंचल में हिन्दूमहासभा ने जीत का परचम फहराया था। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इससे अचंभित था और हिंदू महासभा के इस गढ़ को तोडऩे का जिम्मा राजमाता विजयाराजे सिंधिया को दिया। वर्ष 1957 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरीं।।

मतदाताओं ने उन पर पूरा भरोसा कर उन्हें विजयी बनाया था। राजमाता का इहके बाद कांग्रेस नेतृत्व से मतभेद हुए तो वह 1967 में स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लडी़ं और विजयी हुईं। इसके बाद वर्ष 1971 में सिंधिया परिवार के युवराज माधवराव सिंधिया जनसंघ के टिकट पर यहां से चुनाव मैदान में उतरे और विजयी हुए थे। इस प्रकार गुना से सिंधिया परिवार की दूसरी पीढ़ी को भी यहां का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। वर्ष 1975 में आपातकाल लगा और उसके उपरांत 1977 में बदली हुई परिस्थिति में चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस के प्रति जनता में काफी आक्रोश था। वहीं विपक्ष एकजुट होकर जनता पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरा। इस चुनाव में माधवराव सिंधियि स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और जीते भी। वहीं 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में माधवराव सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे।

सिंधिया का दल भले ही बदला, लेकिन जनता का साथ उन्हें फिर मिला और वह गुना से तीसरी बार सांसद चुने गए। वर्ष 1984 में राजनीतिक परिस्थितियां बदली और कांग्रेस नेतृत्व ने माधवराव सिंधिया को नामांकन भरने के अंतिम समय में ग्वालियर से भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल विहारी बाजपेयी के सामने चुनाव मैदान में उतार दिया। कांग्रेस अपने मकसद में सफल हुई और अटल जी को ग्वालियर से बाहर नहीं निकलने दिया। सिंधिया ने अटलजी को चुनाव में पराजित भी किया। गुना में सिंधिया के नजदीकी महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा चुनाव लड़े और जीते भी। लेकिन 1989 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया को भाजपा नेतृत्व ने गुना से उम्मीदवार बनाया और वह जनता का भरोसा जीतने में सफल रहीं। राजमाता इसके बाद 91, 96 व 98 में में भी गुना से सांसद निर्वाचित हुईं।

वर्ष 1999 के चुनाव में माधवराव सिंधिया ग्वालियर की अपेक्षा गुना सीट से चुनाव मैदान में उतरे और फिर जनता ने उन्हें भरपूर समर्थन देकर अपना सांसद चुना। एक विमान हादसे में माधवराव सिंधिया के गोलोकवासी होने के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में सिंधिया परिवार की तीसरी पीढ़ी मैदान में उतरी। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे और सांसद निर्वाचित हुए। ज्योतिरादित्य सिंधिया 2004, 2009 व 2014 में भी यहां से लोकसभा का चुनाव जीते। पिछले चुनाव में भी वह मैदान में उतरे ,लेकिन भाजपा के केपी सिंह यादव से चुनाव हार गए। वह 2020 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गए। भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का चुनाव लडाक़र राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित कराया। अब इस बार के चुनाव में वह भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं और ऐतिहासिक जीत के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे। इस तरह गुना संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने राजमाता, माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में तीन पीढिय़ों को अपना सांसद निर्वाचित किया।

ग्वालियर ने मां, बेटे और बेटी को दिया अवसर

ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने भी मां, बेटे और बेटी के साथ ही पिता-पुत्र को अपना लोकसभा प्रतिनिधि निर्वाचित किया। वर्ष 1962 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया गुना की जगह ग्वालियर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी और सांसद निर्वाचित हुईं। आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर भारतीय जनसंघ के प्रमुख नेताओं में शुमार नारायणकृष्ण शेजवलकर मैदान में उतरे और विजयी हुए। वहीं 1980 के मध्यावधि चुनाव में भी वह सांसद निर्वाचित हुए। श्री शेजवलकर इसके पूर्व ग्वालियर के महापौर भी रह चुके थे। श्री शेजवलकर के सुपुत्र विवेक नारायण शेजवलकर ग्वालियर के महापौर रहे। भाजपा ने उन्हें 2019 में लोकसभा चुनाव का टिकट दिया तो वह मैदान में उतरे और जनता ने उनपर पूर्ण विश्वास व्यक्त कर सांसद चुना। इधर 1984 में कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को गुना की जगह ग्वालियर से चुनाव लड़ाया वह चुनाव जीते। इस चुनाव के बाद माधवराव सिंधिया 84, 89, 91, 96 व 98 में भी ग्वालियर के सांसद निर्वाचित हुए। वर्ष 2007 में ग्वालियर सीट पर हुए उप चुनाव में भाजपा ने राजमाता की सुपुत्री यशोधराराजे सिंधिया को चुनाव मैदान में उतारा, उन्हें जनता का समर्थन मिला और वह सांसद निर्वाचित हुईं। वर्ष 2009 में फिर भाजपा के टिकट पर वह सांसद चुनी गईं थीं।

मुरैना ने पिता-पुत्र को बनाया अपना सांसद

अंचल की मुरैना सीट भी पिता- पुत्र को संसद में भेजने में पीछे नहीं रही।अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित मुरैना सीट से 1977 में जनता पार्टी के छविराम अर्गल को यहां के मतदाताओं ने अपना सांसद चुना। छविराम अर्गल 1989 में भी यहां से चुनाव जीते। वहीं 1996 में भाजपा ने उनके पुत्र अशोक अर्गल को टिकट दिया और वह चुनाव जीतने में सफल रहे । इसके बाद वह 98, 99 व 2004 में भी यहां से सांसद निर्वाचित हुए थे। अशोक अर्गल मुरैना के महापौर भी रहे। वहीं मुरैना सीट के अनारक्षित होने के बाद भाजपा ने अशोक अर्गल को भिण्ड आरक्षित सीट पर चुनाव लडाय़ा और वह भिण्ड से भी चुनाव जीतने में सफल हुए थे।

भिण्ड से चुनाव लड़ी मां जीतीं तो बेटी हारीं

अंचल की भिण्ड लोकसभा सीट पर भी मां- बेटी चुनाव मैदान में उतरीं। लेकिन मां जहां चुनाव जीतने में सफल रहीं थीं तो बेटी चुनाव में पराजित हुईं। भालतीय जनसंघ ने 1971 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया को भिण्ड संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा। यहां के मतदाताओं का भी उन्हें भरपूर समर्थन मिला औरवह चुनाव जीतने में सफल रहीं थीं। वहीं 1984 में राजमाता की सुपुत्री वसुंधराराजे सिंधिया भिण्ड से भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन दतिया के कृष्णपाल सिंह के सायने वह पराजित हो गईं। श्रीमती वंसुधराराजे ने इस पराजय के बाद राजस्थान को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। यहां जनता का उन्हें भरपूर स्नेह मिला और वह राजस्थान की मुख्यमंत्री भी बनीं। उनके सुपुत्र दुष्यंत सिंह झालावाड़ सीट से सांसद निर्वाचित हुए और इस बार फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।

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