पूर्व सेना प्रमुख का बड़ा बयान, मणिपुर हिंसा के पीछे विदेशी एजेंसियों का हाथ, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद खराब
जनरल नरवणे ने आंतरिक और बाह्य सुरक्षा आयामों को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत की कोई 'अतिरिक्त-क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं' नहीं हैं।
नईदिल्ली। पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने मणिपुर में अस्थिरता के लिए चीन की मदद से सक्रिय विभिन्न विद्रोही समूहों को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि न केवल हमारे पड़ोसी देश में, बल्कि हमारे सीमावर्ती राज्य में अस्थिरता हमारी समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी खराब है। निश्चित रूप से इस अस्थिरता में विदेशी एजेंसियों की भागीदारी से न केवल इनकार नहीं किया जा सकता है, बल्कि मैं कहूंगा कि यह निश्चित रूप से है। विभिन्न विद्रोही समूहों को कई वर्षों से चीन से मदद मिल रही है।
नई दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की ओर से आयोजित एक व्याख्यान में पूर्व सेना प्रमुख नरवणे ने युद्ध के बदलते चरित्र और नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के महत्व के बारे में भी बात की। उन्होंने कूटनीति के महत्व पर कहा कि 'दो मोर्चों पर युद्ध लड़ने वाला कोई भी कभी नहीं जीता।' मैंने शुरुआत में ही कहा था कि आंतरिक सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे यकीन है कि जो लोग कुर्सी पर हैं और कार्रवाई करने के लिए जिम्मेदार हैं, वे अपना सर्वश्रेष्ठ कर रहे हैं। जमीन पर मौजूद व्यक्ति सबसे अच्छी तरह जानता है कि क्या करना है, वैसे राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी प्रत्येक नागरिक की है। उन्होंने कहा कि हमारी सीमाओं पर अधिक अस्थिरता से तस्करी, मादक पदार्थों की तस्करी आदि जैसे अंतरराष्ट्रीय अपराधों में वृद्धि होगी।
बाहरी सुरक्षा निश्चित रूप से सर्वोपरि
जनरल नरवणे ने आंतरिक और बाह्य सुरक्षा आयामों को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत की कोई 'अतिरिक्त-क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं' नहीं हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा पर जनरल नरवणे ने कहा कि जब हम राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में बात करते हैं, तो हमें आंतरिक सुरक्षा आयाम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बाहरी सुरक्षा निश्चित रूप से सर्वोपरि है, लेकिन देश की सुरक्षा प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है और देश के हर किसी को भूमिका निभानी है। पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के कई आयाम हैं, क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा के अलावा देश की खाद्य, ऊर्जा और स्वास्थ्य सुरक्षा भी सर्वोपरि है। यदि आपके पास स्वस्थ आबादी नहीं है, तो जनशक्ति कहां से आएगी और सशस्त्र बलों को ताकत कहां से मिलेगी ? इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा को व्यापक संदर्भ में देखा और समझा जाना चाहिए।
विदेश नीति दो मजबूत स्तंभों पर टिकी
जनरल नरवणे ने कहा कि हमने पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के मोर्चे पर कुछ प्रगति की है। हमारी गतिविधियां यह दर्शाती हैं कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा को कैसे देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश की विदेश नीति दो मजबूत स्तंभों पर टिकी हुई है। उनमें से एक यह है कि हमारी कोई अतिरिक्त-क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा नहीं है। दूसरी बात यह है कि हम किसी और पर जीवन जीने का तरीका या इच्छा थोपना नहीं चाहते हैं। देश की उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा के बारे में उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय और वैश्विक वातावरण की सुरक्षा में हमारी समग्र भूमिका है। हमारे किसी भी पड़ोसी देश में कोई भी अस्थिरता हमारे देश पर असर डालेगी।