अटल सेतु बनाने में लगे 62 साल, कांग्रेस ने लटकाया, भाजपा ने पूरा किया

साल 1962 में कांग्रेस सरकार के समय मुंबई को हार्बर से जोड़ने के लिए एक अमेरिकन फर्म विल्बर स्मिथ असोसिएशन ने इस पुल के निर्माण का विचार दिया था।;

Update: 2024-01-14 11:20 GMT

नईदिल्ली।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश के सबसे लंबे समुद्री पुल अटल बिहारी वाजपेई शिवड़ी-न्हावा शेवा नामक अटल सेतु का उद्घाटन किया। इस पुल के निर्माण से मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की कनेक्टिविटी आसान हो जाएगी। 

इसी के साथ 60 सालों बाद मुंबई में भारत का सबसे लंबा ब्रिज बनाने का सपना पूरा हो गया है।  इसकी शुरुआत आज से 62 साल पहले साल 1962 में इसकी कल्पना की गई थी। उस समय महाराष्ट्र सरकार ने  दक्षिण मुंबई के शेवरी से लेकर नई मुंबई के चिरले तक एक पुल बनाने का प्रस्ताव भेजा था। किन्हीं कारणों से इस पर आगे काम नहीं हो पाया। आखिर जानते है कि क्यों इसे पूरा होने में 6 दशक लग गए।  

1962 में पहली बार पुल निर्माण का विचार आया- 

दरअसल, साल 1962 में कांग्रेस सरकार के समय  मुंबई को हार्बर से जोड़ने के लिए एक अमेरिकन फर्म विल्बर स्मिथ असोसिएशन ने इस पुल के निर्माण का विचार दिया था। लेकिन लेकिन इस ब्रिज की फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार करने में ही महाराष्ट्र सरकार को  करीब 34 साल लग गए। जिसके कारण ये परियोजना ठंडे बस्ते में पड़ी रही।  साल 1996 में पीवी नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री थे, उस समय महाराष्ट्र सरकार ने इसकी फिजिबिलिटी रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी थी। इस समय केंद्र में अस्थिरता का दौर चल रहा था।  जिसके कारण सरकार इस प्रोजेक्ट पर कोई काम नहीं कर सकी।  

साल 2006 में पहली बार टेंडर - 

साल 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके लिए पहली बार टेंडर जारी किए। साल 2008 में अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रास्टक्चर ने इसकी बोली लगाई और जीत गए। पीपीपी मॉडल  के तहत रिलायंस कंपनी को ये पुल  9 साल 11 महीने में बनाकर तैयार करना था। उस समय इसकी लागत 6000 करोड़ आंकी गई थी।  

अनिल अंबानी ने छोड़ा काम - 

इस प्रोजेक्ट का टेंडर मिलने के बाद अनिल अंबानी ने काम शुरू करने से पहले ही प्रोजेक्ट को छोड़ दिया।  इसके बाद टेंडर पर टेंडर बिडिंग पे बिडिंग हुई पर प्रोजेक्ट जैसे वहीं का वहीं रुक गया।  कोई भी कंपनी इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए तैयार नहीं थी।  ऐसे में 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार बनने के बाद इस प्रोजेक्ट की नोडल एजेंसी को बदला गया। सरकार ने पुल बनाने की जिम्मेदारी मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) को सौंपी।

2018 में मोदी ने रखी नींव - 

आखिरकार साल 2017 में एमएमआरडीए ने इस प्रोजेक्ट के लिए नए सिरे से टेंडर जारी किए। एमएमआरडीए ने जापान की एजेंसी जापान इंटरनेशनल कोर्पोरेशन के साथ समझौता किया।  जिसके बाद साल 2018 में इस प्रोजेक्ट की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी।  

अटल सेतु पुल की खासियत 

  • अब 6 साल अब पूरे 5 साल बाद 7500 मजदूरों ने रात दिन मेहनत कर के पस पुल को बनाया है। 
  • पुल का निर्माण 17,840 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है।
  • यह पुल लगभग 21.8 किमी लंबा और 6-लेन वाला है।
  • यह पुल 16.5 किमी. समुद्र के ऊपर और करीब 5.5 किमी जमीन पर बना है।
  • अब मुंबई से पुणे, गोवा और दक्षिण भारत की यात्रा में लगने वाला समय कम हो जायेगा।
  • इस समुद्री पुल से मुंबई और नवी मुंबई की दूरी सिर्फ 20 मिनट में तय हो सकेगी। अभी दो घंटे का वक्त लगता था।
  • अटल सेतु के निर्माण में करीब 177,903 मीट्रिक टन स्टील और 504,253 मीट्रिक टन सीमेंट का इस्तेमाल किया गया है।
  • इस पुल पर प्रतिदिन लगभग 70,000 वाहन अधिकतम 100 किमी प्रति घंटे की स्पीड से चलेंगे और यह 100 वर्ष चलता रहेगा।
  • मानसून के दौरान उच्च-वेग वाली हवाओं का सामना करने के लिए विशेष रूप से लाइटिंग पोल डिजाइन किए गए हैं।
  • बिजली से होने वाली संभावित क्षति से बचाने के लिए लाइटिंग प्रोटेक्शन सिस्टम भी लगाया गया है।
  • शिवड़ी से 8.5 किमी लंबा नॉइज बैरियर स्थापित किया गया है, क्योंकि पुल का हिस्सा फ्लेमिंगो प्रोटेक्टेड एरिया और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र से होकर गुजरता है।
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