Dhanteras 2024: धनतेरस धन प्राप्ति का नहीं आरोग्य प्राप्ति का दिवस है…

Update: 2024-10-28 12:55 GMT

राजेश्वरी भट्ट बुरहानपुर: क्या आप भी इस दिन धन,आभूषण या फिर तिजोरी का पूजन करते हैं? अगर आप ऐसा ही करते हैं तो आप अभी तक अनभिज्ञ हैं' धनतेरस ' के वास्तविक अर्थ से। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की धनतेरस का वास्तविक संबंध धन से न होकर स्वास्थ्य से है स्वास्थ्य ही मानव की सबसे बड़ी पूंजी है।

सर्वभय व सर्वरोग नाशक देवचिकित्सक आरोग्यदेव धन्वंतरि।

हम इस दिन उत्तम स्वास्थ्य की शुभेच्छा के बजाय धन वर्षा की शुभकामनाएं देते चले आ रहे है।हमने धनतेरस को धन से तो जोड़ दिया परंतु धन का वास्तविक अर्थ पहचान नहीं पाए! मानव का वास्तविक धन है उसका उत्तम आरोग्यमय जीवन,,' पहला सुख निरोगी काया' इसीलिए कहा गया है। शास्त्रों में वर्णित समुद्र मंथन की कथा के अनुसार समुद्र मंथन के पश्चात सबसे अंत में अमृत की प्राप्ति हुई थी।जिसे भगवान धन्वंतरि समुद्र से अपने कर कमलों में कलश में लेकर प्रकट हुए थे।

जिस दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए वह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी इसलिए धनतेरस या धनत्रयोदशी के दिन उत्तम स्वास्थ्य की कामना हेतु भगवान विष्णु के अंश धन्वंतरि की पूजा का विधान है न कि,जेवर,नकदी और तिजोरी का हां,क्योंकि धनवंतरी अपनी चार भुजाओं में,शंख, चक्र,अमृत कलश और औषधि लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन पूजन में शंख, पीतल या स्वर्ण का कलश एवम औषधि का क्रय व पूजन शुभ माना गया है।(धनतेरस के अवसर पर कांच,चीनीमिट्टी,प्लास्टिक,लोहा,स्टील,एल्युमिनियम से बनी वस्तुओं का क्रय नहीं करना चाहिए और न ही, काला कंबल,काले वस्त्र,नीले रंग के कपड़े खरीदना चाहिए. इनका संबंध शनि,राहु और केतु से है।)

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरये

अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणाय

त्रैलोक्यपतये त्रैलोक्यनिधये श्रीमहाविष्णुस्वरूपाय

श्रीधन्वन्तरीस्वरूपाय श्री श्री श्री औषधचक्राय नारायणाय नमः

समुद्र से निकलने के पश्चात उन्होंने श्री हरि से लोक में स्वयं का स्थान मांगा, श्रीहरि ने कहा कि यज्ञ का विभाग तो देवताओं में पहले ही हो चुका है अत: यह अब संभव नहीं है,देवों के पश्चात आने के कारण आप (देव) ईश्वर नहीं हो परंतु आपको अगले जन्म में सिद्धियाँ प्राप्त होंगी और आप लोक में प्रसिद्ध होगे,आपको उसी शरीर से देवत्व प्राप्त होगा और सभी आपकी आराधना करेंगे,आप ही आयुर्वेद का अष्टांग विभाजन भी करोगे।द्वापर में आप पुन: जन्म लोगे।इस वर के अनुसार पुत्रकाम काशिराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान ने उसके पुत्र के रुप में जन्म लिया और 'धन्वंतरि' यह नाम धारण किया।

'धन्वंतरि' समस्त रोग निवारण में निष्णात थे उन्होंने भरद्वाज से आयुर्वेद ग्रहण कर उसे अष्टांग में विभक्त कर अपने शिष्यों में बाँट दिया।वैदिक काल में जो महत्व अश्विनी को प्राप्त था वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को प्राप्त हुआ जहाँ अश्विनी के हाथ में मधुकलश था, धन्वंतरि को अमृत कलश मिला।

धन्वंतरि का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था।धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों अनुसार एक सौ प्रकार की मृत्यु है उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं।आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।धन्वंतरि आरोग्य, स्वास्थ्य,आयु और तेज के आराध्य देवता हैं।रामायण,महाभारत, सुश्रुत संहिता,चरक संहिता, काश्यप संहिता,अष्टांग हृदय,भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण आदि में उनका उल्लेख मिलता है।

एक अन्य पुराण-कथा में उल्लेख है कि एक बार वायुयान से भूलोक पर दृष्टिपात करने पर इंद्र ने मनुष्यों को बड़ी संख्या में रोगग्रस्त पाया तब उन्होंने धन्वंतरि को आयुर्वेद का संपूर्ण ज्ञान देने के लिए ज्ञान परंपरा की परिपाटी चलाने का अनुरोध किया तत्पश्चात धन्वंतरि ने काशी के राजा दिवोदास के रूप में जन्म लिया और काशीराज कहलाए।अपने पिता विश्वामित्र की आज्ञा पाकर महर्षि सुश्रुत अपने साथ अन्यान्य एक सौ ऋषि-पुत्रों को लेकर काशी पहुंचे और वहां सुश्रुत ने ऋषि-पुत्रों के साथ धन्वंतरि से आयुर्वेद की शिक्षा ली। इसके बाद इस समूह ने लोक कल्याणार्थ संहिताओं एवं ग्रंथों की रचना की और उनके माध्यम से समस्त भूमंडल के लोगों को निरोगी बनाने की उपचार पद्धतियां शुरू कीं।यही आयुर्वेद भारतीय चिकित्सा विज्ञान की आधारशिला है।

एक प्रश्न मन में उठता है कि आखिर इतनी उत्कृष्ट चिकित्सा पद्धति होने के पश्चात भी इसका पतन क्यों हुआ? हमारे यहां संकट तब उत्पन्न हुआ, जब तांत्रिकों, सिद्धों और पाखंडियों ने इनमें कर्मकांड से जीवन की समृद्धि का घालमेल शुरू कर दिया।इसके तत्काल बाद एक और बड़ा संकट तब आया, जब भारत पर यूनानियों,शकों, हूणों और मुस्लिम शासकों के हमलों का सिलसिला आरंभ हुआ इस संक्रमण काल में आयुर्विज्ञान की ज्योति नष्टप्राय हो गई,नवीन शोध व मौलिक ग्रंथों का सृजन थम गया। इन आक्रमणों के कारण जो अराजकता, हिंसा और अशांति फैली,उसके चलते अनेक आयुर्वेदिक ग्रंथ छिन्न-भिन्न हो गए परिणामस्वरूप जड़ी-बुटियों और औषधियों के स्थान पर तंत्र-मंत्र के प्रयोग आरम्भ हो गए खैर हमारे लिए यह सुखद है कि इतनी त्रासदी के पश्चात भी आयुर्वेद का अस्तित्व बरकरार है।

धन्वंतरि जयंती को आयुर्वेदिक दिवस घोषित किया गया है।धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धन्वंतरि के बताए गए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी उपाय अपनाना ही धनतेरस का प्रयोजन है।

सनद रहे कि धन और वैभव का भोग बिना उत्तम स्वास्थ्य के सम्भव नहीं है,लिहाजा ऐश्वर्य के भोग के लिये कालांतर में धन्वन्तरि की अवधारणा सहज रूप से प्रकट हुई।वैद्यगण इस दिन धन्वंतरि देवता (देवताओं के वैद्य) का पूजन करते हैं और ‘प्रसाद’ के रूप में बारीक कटी हुई नीम की पत्तियां और चीनी का प्रयोग करते हैं।

जानिए धनवंतरी पूजन विधि

निश्चित ही वैद्यों और आयुर्वैदिक संस्थानों के अतिरिक्त सामान्य जनों के घर में धनवंतरी का चित्र या मूर्ति नहीं होगी मेरे स्वयं के पास नहीं है तो इसके लिए बाजार से या गुगल से लेकर प्रिंट कराया जा सकता है,श्री विष्णु की मूर्ति का भी पूजन किया जा सकता है क्योंकि धनवंतरी उन्ही का अवतार माने गए हैं और अगर यह भी न हो सके तो सर्वोत्तम है धनवंतरी का मानसिक ध्यान करें।

पूजन सामग्री में धूप,घी का दीपक,फूल हार,शंख, नैवेद्य के अतिरिक्त औषधि के रूप में तेरह प्रकार प्राकृतिक की जड़ी बूटी रखें जैसे;- तुलसी, नीम की पत्ती,करी पत्ता( मीठा नीम) पीपल का पत्ता,हल्दी की गांठ, आंवला, इलायची,लौंग,कालीमिर्च के दाने, साबुत धनिया,दालचीनी,नींबू और गिलोय आदि रखें इन सभी का बहुत महत्त्व है,इनका वर्णन आयुर्वेद में किया गया है जिसके रचियेता स्वयं धनवंतरी हैं साथ ही अगर आपके घर में कोई रोगी व्यक्ति है या आपका कोई उपचार चल रहा है तो एक पात्र में समस्त दवाइयों की एक -एक टेबलेट भी रखें और इस मंत्र का एक सौ आठ पर जप करें..

ओम नमो भगवते धन्वंतराय

विष्णुरूपाय नमो नमः

पूजन और सपरिवार उत्तम स्वास्थ्य की कामना के पश्चात जो भी वस्तुएं पूजन में उपयोग की गई हैं (आपकी दवाइयों को छोड़कर) उनका दान कर दें,गौ माता को खिलाएं या नदी में प्रवाहित कर दें।तो इस धनतेरस सबसे उत्तम धन,आरोग्य और स्वास्थय की मंगलकामना हेतु पूजन करें!

आपके उत्तम स्वास्थ्य की मंगल कामना के साथ धनत्रयोद्शी की हार्दिक शुभकामनाएं... 

राजेश्वरी भट्ट बुरहानपुर:


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