सनी राजपूत, अधिवक्ता, उज्जैन: हमें अक्सर यह देखने के लिए मिलता है कि प्रशासन में बैठे लोग कभी-कभी अपने मन की बातें जनता पर थोपने का काम भी करते हैं। ऐसा ही कुछ निर्णय पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर नगर प्रशासन के द्वारा लिया गया है।
अंग्रेजी समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स में 17 दिसम्बर 2024 को एक खबर प्रकाशित हुई, जिसमे यह बताया गया कि इंदौर प्रशासन ने नगर की सड़को पर भिक्षा देने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। और इसी के साथ 01 जनवरी 2025 से ऐसा करने वालो पर मामला दर्ज किया जाएगा।
हो सकता है कि पहली बार सुनने में यह आदेश मनभावन लगे। लेकिन यह आदेश संविधान की मूल भावना को चोट पहुंचाने का काम करता दिखाई दे रहा है।
इंदौर नगर प्रशासन ने अपने आदेश में कहा हैं कि भिक्षा देने वालों पर कार्यवाही की जाएगी, प्रशासन के इस आदेश से ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो प्रशासन अपनी नाकामी को छुपाने के लिए ऐसे कठोर तुगलकी फरमान जारी कर रहा है।
जबकि केंद्र सरकार की जिस SMILE योजना का हवाला देकर यह आदेश दिया गया है। उस योजना में ऐसे अभावग्रस्त लोग जो मूलतः अनेक कारणवश भिक्षावृत्ति को मजबूर हैं, उनके सम्बल और पुनर्वास को प्रेरित करती हैं। किन्तु इंदौर प्रशासन राष्ट्रीय सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के दुरूपयोग का प्रयास करते नजर आ रहा है। इस आदेश से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देने वालों के कारण शहर में भीक्षावृत्ति बढ़ रही है।
लेकिन देने वाले लोग भावना के वशीभूत होकर सहयोग की मंशा से ऐसा करते प्रतीत होते है। इंदौर प्रशासन का तुगलकी फरमान ऐसा है, जिससे सामाजिक दूरी बढ़ने का खतरा और गहरा होने की सम्भावना है। क्योंकि समाज का प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि समाज के कमजोर वर्ग को उचित सहायता पहुंचे, किन्तु विभिन्न कारणों से लोग सहायता से वंचित रह जाते हैं।
प्रशासन का आदेश भ्रम भी उत्पन्न करता दिख रहा है, क्योंकि प्रशासन को यह बताना होगा कि किस परिभाषा के अंतर्गत भिक्षावृत्ति को अवैध माना गया है। हमारे द्वारा सड़क किनारे और ट्रैफिक सिग्नलों के आसपास ऐसे लोग भी देखने को मिलते हैं, जो कि अपनी पारम्परिक कला का प्रदर्शन करते हुए धन अर्जित करने का काम करते हैं या फिर किसी प्रकार से वस्तु विनिमय के द्वारा अपनी आवश्यकता के अनुसार अर्जन के काम में लगे हैं। अब उनका क्या होगा। इस बात को स्पष्ट नहीं किया जा रहा है।
समाज को करणीय कार्य के लिए प्रेरित करना शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। लेकिन इस प्रकार से सहायता के भाव किये जाने वाले कामों को अपराध की श्रेणी में रखकर समाज के लोगों को प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है।