Kanwar Yatra: क्या है आर्टिकल 15(1) और 17, जिसका हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई है रोक, यहां जानिए
जानकारी के लिए बता दें कि टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने इस नेम प्लेट वाले आदेश के खिलाफ़ कोर्ट में याचिका दायर की थी।
Supreme Court on Kanwar Yatra: सुप्रीम कोर्ट की तरफ से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकार को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने कांवड़ यात्रा के मार्ग पर दुकानों के मालिकों को अपने अपने नेम प्लेट लगाने वाले दोनों राज्यों के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। कोर्ट में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के खिलाफ़ इस निर्देश को लेकर याचिका दायर की गई थी, इसके अलावा इसमें मध्य प्रदेश का भी नाम है, तो अब कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एवं मध्य प्रदेश सरकारों को नोटिस भी जारी किया है।
किसने दायर की थी याचिका
जानकारी के लिए बता दें कि टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने इस नेम प्लेट वाले आदेश के खिलाफ़ कोर्ट में याचिका दायर की थी, महुआ मोइत्रा की तरफ से अभिषेक सिंघवी ने अपनी दलील जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एस वी एन भट्टी की पीठ के समक्ष रखीं। कोर्ट ने कहा कि दोनों राज्यों की सरकार का यह आदेश विभाजनकारी और संविधान में दिए गए अधिकारों के खिलाफ है। इसके साथ ही कोर्ट ने आर्टिकल 15 (1) और आर्टिकल 17 का भी जिक्र किया।
जस्टिस रॉय ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह आदेश यह देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का उल्लंघन है। न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि दुकान मालिकों को अपने नाम और पते के साथ ही अपने कर्मचारियों के नाम वाली नेमप्लेट लगाने के लिए मजबूर करने से शायद ही आदेश का मकसद पूरा हो, मगर यह संविधान के आर्टिकल 15(1) और 17 के तहत दिए गए अधिकारों का उल्लंघन भी होता है, आखिर क्या है 15(1) और 17 आइए आपको बताते हैं।
क्या है आर्टिकल 15(1) और 17
संविधान में आर्टिकल 15 को धर्म, जाति, नस्ल, या लिंग, जन्म स्थान या फिर इसके किसी भी आधार पर अगर देश के किसी भी कोने में को भेदभाव करने की कोशिश कर रहा है तो आर्टिकल 15 इस पर रोक लगाता है। संविधान के मुताबिक इस आर्टिकल 15 में प्रमख तौर पर चार बिंदुओं पर इंगित किया गया है और कहा गया है किसी भी राज्य में कोई भी व्यक्ति लिंग या फिर रंग को लेकर भेदभाव नहीं कर सकता है।
क्या कहता है आर्टिकल 17
आर्टिकल 17 में अस्पृश्यता के उन्मूलन' का जिक्र है। यानी अगर देखा जाए तो इसका सीधा इशारा छुआछूत की तरफ है और आर्टिकल 17 में सीधे तौर पर छुआछूत को खत्म करने की बात कही गई है। आर्टिकल 17 में कहा गया है, "छुआछूत को खत्म कर दिया गया है और किसी भी रूप में ऐसा करने पर पाबंदी है और आज के दौर में किसी भी जाति धर्म के व्यक्ति से छुआछूत करना दंडनीय अपराध है। आर्टिकल 17 समानता देने के अधिकार की बात करता है। आज के दौर में समानता का अधिकार मिलना बहुत ही जरूरी है। आर्टिकल 17 से न सिर्फ समानता बल्कि सामाजिक न्याय भी मिलता है।