Mahatma Gandhi: सुलतानपुर से जुड़ी हैं गांधी की कई यादें, उनकी लिखी चिट्ठियां आज भी सुरक्षित, चिट्ठियों में झलकता है लोगों के लिए उनका प्यार…

'कस्तूरबा' संग 'केश कुटीर' में रुके थे 'महात्मा गांधी' धर्मशाला में हुई थी उनकी सभा

Update: 2024-10-01 13:15 GMT

संतोष कुमार यादव, सुलतानपुर। 'बापू' की 155वीं जयंती पर जिले में भी लोग अपने तरीक़े से याद कर रहे हैं। यहां से भी 'महात्मा गांधी' की ढेर सारी यादें जुड़ी हैं। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ माहौल बनाने भारत भ्रमण पर निकले 'बापू' ने यहां रात्रि प्रवास भी किया था। 'बापू' जब आजादी की अलख जगाने देश भ्रमण पर थे तो उसी दौरान उनके पांव 1929-30 में यहां की जमीं पर भी पड़े थे। 'गांधी' जी के इस दौरे की खास बात यह रही कि वे यहां अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ आए थे और रात्रि भर यही रुके थे।

अगली सुबह उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हुंकार भरी, लोगो में जोश भरे, सहयोग मांगा, फिर यहां से अगले पड़ाव की ओर रवाना हुए। स्वराज आंदोलन को गति देने निकले महात्मा गांधी जब यहां आए तो जिले के संभ्रांत बाबू गनपत सहाय की गोमती नदी के तट पर सीताकुंड घाट स्थित मशहूर 'केश कुटीर' नामक कोठी 'गांधी' एवं उनकी पत्नी का ठिकाना बनी। रात्रि प्रवास के अगले दिन सुबह रेलवे स्टेशन के समीप जगरामदास धर्मशाला में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उनकी सभा भी हुई। यहाँ सैकड़ो की संख्या में जुटे छात्रों, नवजवानों, देश प्रेमियों को उन्होंने एकजुटता का संदेश दिया।

आंदोलन को और तेज करने का आह्वान करते हुए गुरुमंत्र भी दिया। सभा में आए देशभक्त आजादी के दीवानों ने बाबू गनपत सहाय, बाबा रामलाल, रामयश यादव, राम नारायण सिंह, सुंदरलाल, भगवती प्रसाद यादव, संगम लाल, रमाकांत सिंह, रामप्रताप त्रिपाठी, राम हर्ष, अनंत बहादुर, भगवती प्रसाद यादव, चंद्रबली पाठक, उमादत्त, हरिहर आदि लोगों ने उन्हें भरोसा ही नही बल्कि आर्थिक सहयोग भी कराया था। इतिहासकार राजेश्वर सिंह ने भी 'सुल्तानपुर इतिहास की झलक' नामक अपनी पुस्तक में देशव्यापी भ्रमण पर निकले गांधी जी के सुल्तानपुर आगमन का जिक्र किया है।

'गांधी' जी का यहां के लोगों पर प्यार, स्नेह ही रहा कि कभी वे यहां खुद आए तो कभी अपने दूतों को भेजकर जिले की समस्याओं का निदान कराया। सुलतानपुर के सपूत राष्ट्र कवि पंडित राम नरेश त्रिपाठी की कविताओं के दीवाने 'गांधी' जी उनके पत्रों को न सिर्फ ध्यान से पढ़ते थे, बल्कि सभी पत्रों का जवाब भी देते थे। बापू के हाथ की लिखी चिट्ठियां स्व0 राम नरेश त्रिपाठी के परिजनों ने आज भी सहेज कर रखी हैं।

और जब सबके सामने 'बापू' ने गिना 'रुपैया'

बापू के व्यक्तित्व से जुड़े किस्से, कहानियां आज भी लोग कहते, सुनाते नही थकते हैं। ट्रेन से हाबड़ा (कोलकाता) जाते समय सुलतानपुर जिले से 40 किलोमीटर दूर गौरीगंज रेलवे स्टेशन पर बापू से जुड़ा एक ऐसा वाकया आज भी लोगों की जुबां पर है। इस घटना से वहां मौजूद लोगों में गांधी जी के प्रति श्रद्धा और बढ़ गई। उनको जैसा सुना था वैसा ही पाया। आजादी के दिवानों की दीवानगी देख, बापू ट्रेन का ठहराव न होने के बाद भी चेन पुलिंग कर नीचे उतर आए थे।

बापू को देख लोगों का उत्साह दुगुना हो गया। बापू ने स्टेशन पर मौजूद लोगों को अपना संदेश सुनाया,और अगले पड़ाव की ओर निकल गए। उस घटना के चश्मदीद तो एक-एक कर स्वर्ग वासी हो गए, लेकिन उनके द्वारा सुनाए गए आजादी से जुड़े किस्से आज भी लोगों की जुबां पर तैर रहे है। गौरतलब है कि 1947 में देश के हुए बंटवारे बाद महात्मा गांधी कोलकाता के नोआखली में हुए दंगे की तहकीकात करने एवं शांति का संदेश देने पंजाब मेल ट्रेन से गौरीगंज के रास्ते नोआखली जा रहे थे।

यह जानकारी जब यहां के स्थानीय देशभक्तों, सेनानियों को हुई तो सभी ने मिलकर गांधी जी का स्वागत एवं उनको देश के लिए सहयोग स्वरूप 51रुपये की थैली भेंट करने की योजना बनाई। थैली के ऊपर 51 रुपये सहयोग राशि लिख भी दी गई। लेकिन अचानक बनी इस योजना में 45 रुपये ही इकठ्ठा हो पाए थे। शुभ अंक 51 में 6 रुपये की कमी को पूरा करने की जिम्मेदारी साथ में रहे एक व्यवसायी को दे दी गई।

संयोग से रुपये की व्यवस्था नही हो पाई और थैली बांधकर बापू को सौंप दी गई। हाथ में थैली मिलते ही बापू ने सबके सामने ही रुपया गिनना शुरू कर दिया। थैली के कवर पर लिखी गई राशि से 6 रुपये कम की बात जब बापू ने बताई तो सभी बगले झांकने लगे। फिर गांधी जी ने थैली के ऊपर 51 रुपये की जगह 45 रुपये लिखने का इशारा किया जिस पर लोगों ने पूर्व में थैली पर लिखी राशि काटकर 45 रुपये लिखकर उन्हें दिया तब बापू ने मुस्कराते हुए अपनी झोली में थैली को डाल लिया। ऐसे थे 'बापू'।

इस घटना के साक्षी रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं पूर्व विधायक स्व0 बाबू गुरुप्रसाद सिंह के सुपुत्र अभियोजन अधिकारी रहे वीरेंद्र बहादुर सिंह ने बताया कि बाबू जी अक्सर गांधी जी की चर्चा चलने पर इस घटना का जिक्र किया करते थे।

Tags:    

Similar News