राष्ट्र सर्वोपरि: संघ समाज परिवर्तन के लिए मन बनाने का कार्य करता है…

देश पहले है, संघ की यात्रा इसी भाव का विस्तारीकरण है...

Update: 2024-11-02 04:02 GMT

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आवश्यकता क्या है? पहले यह प्रश्न पूछा जाता रहा है और आज अधिक आग्रहपूर्वक पूछा जाता है। जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वैचारिक प्रभाव देश भर में बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हिंदुत्व और राष्ट्र के प्रति समर्पित संगठन के बारे में जानने समझने की ललक भी नागरिकों के बीच बढ़ती जा रही है। 1925 में अपनी स्‍थापना के बाद से संघ ने भारतीय समाज जीवन की दिशा को राष्ट्रभाव की ओर परिवर्तित किया है। साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा, राजनीतिक, सेवा आदि समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र और समाज के लिए कार्य ना कर रहे हों।

आगामी विजयादशमी पर संघ 100वें वर्ष में प्रवेश करेगा। समाज को नई दिशा देने के लिए संघ ने शताब्दी वर्ष में जिन ‘पंच परिवर्तनों’ की प्रतिबद्धतों का आव्हान किया है, उस पर स्वदेश के आगरा/झांसी संस्करण के संपादक मधुकर चतुर्वेदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर से वार्ता की। प्रस्तुत हैं वार्ता के अंश...

प्र. राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ अगले वर्ष शताब्दी वर्ष में प्रवेश करेगा। संघ की इस गौरवमयी यात्रा को आप किस तरह देखते हैं ?

उ. संघ देश में हिंदुओं को संगठित करने के लिए आगे बढ़ा था और ऐसे लोगों को तैयार किया, जिनकी मन, वाणी और कर्म में देश प्रथम हो और जो अपनी पूरी शक्ति देश सेवा में लगा दें। संघ की पूरी यात्रा इसी सोच और उद्देश्य के साथ आगे बढ़ी। देश पहले है और इस भाव का विस्तारीकरण करना संघ की यात्रा है।

प्र. इस 99 वर्षीय यात्रा में चुनौती कितनी रही ?

उ. प्रत्येक कार्य में चुनौती रहती ही है। आक्रांताओं का शासन रहा, समाज को प्रताड़नाएं झेलनी पड़ीं। इसके कारण आत्मविश्वास के साथ साथ भारत के संगठित और सशक्त स्वरूप में भी कमी आई। पहली चुनौती थी कि अपने देश का सही परिचय लोगों के सामने कैसे रखा जाए। क्योंकि ब्रिटिश या उससे पहले के शासकों ने भारत की परंपराओं को धूमिल किया। दूसरी चुनौती ‘हिंदू’ शब्द को लेकर थी। बहुत सी धारणाएं ऐसी बनाई गईं कि समाज अपनी जाति, भाषा, प्रांत के बारे में अलग-अलग सोचे, सामाजिक विषमताएं, जाति के नाम पर भेद बनाए गए। प्रतापी साम्राज्य और ज्ञान का भंडार रखने वाले हिंदू समाज के वैभव को विस्मृत करने के प्रयत्न हुए। संघ ने इस बात को चुनौती के रूप में लिया। गलत धारणाओं के कारण भारत का विभाजन हुआ। उस संकट से गुजर रहे समाज और लोगों को संभालकर रखना बहुत बड़ी चुनौती थी। संघ पर लगा प्रतिबंध भी बड़ी चुनौती थी। तब भी स्वयंसेवकों ने पूर्ण निष्ठा व समर्पण के साथ बिना झुके, बिना रुके ध्‍येय यात्रा जारी रखी। इसी आधार पर संघ बढ़ता गया और परिणाम आज आपके सामने है।

प्र. राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखंडता पर संघ का दृष्टिकोण क्या है ?

उ. देश की एकता, अखंडता सर्वोपरि है और राष्ट्र की सांस्कृतिक धारा इसी आधार पर बढ़ती और बनती रही है। हमारी अखंडता राजनीतिक नहीं है, उसके लिए भूमि चाहिए और भूमि की अखंडता भी चाहिए। भूमि की अखंडता निर्भर है, लोगों की सांस्कृतिक एकता पर। इसलिए संघ ने सांस्कृतिक एकता की धारा के अनुकूल अपनी कार्यपद्धति विकसित की है। जैसे परमात्मा एक है लेकिन, कई रूपों में प्रकट होता है, ऐसे ही हमारी हिंदू संस्कृति धारा मत, भाषा, प्रांत आदि बहुत स्वरूपों में है। इन विविधताओं को हम अलग-अलग मानें तो देश की एकता, अखंडता के लिए वह बाधक होता है। उसकी एकसूत्रता समझने पर ही हमें भारत की एकता-अखंडता समझ आती है। इसी आधार पर हजारों वर्षो तक भारत एक रहा। आने वाले समय में अगर सांस्कृतिक एकता की यह धारा पुष्ट होती है तो भारत की एकता अखंडता निश्चित है।

प्र. हाल ही सम्पन्न लोकसभा चुनाव से पूर्व एक वक्तव्य चर्चा में आया था, क्या वास्‍तव में संघ प्रेरित संगठनों में आपसी समन्वय की कमी है?

उ. संघ प्रेरित सभी संगठनों का एक सूत्र है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है। सभी लोक कल्याण के लिए कार्य करते हैं। सभी के अपने समर्पण हैं, उद्देश्य हैं और लक्ष्य भी। वे उनको प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं, सभी संगठनों की मूल प्रकृति यही है। ये सभी व्यक्ति आधारित नहीं, उद्देश्य आधारित संगठन हैं और उनका कार्य भी सामूहिक है। वे स्थापना से लेकर अभी तक सही दिशा में चल रहे हैं। संघ और विविध संगठनों में समन्वय का आधार भी यही है। राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रहित के अनुसार सभी का कार्य सामूहिक पद्धति पर चलता है। समय-समय पर सब मिलते हैं, चर्चा करते हैं। इसलिए समन्वय की कोई कमी नहीं है। हम सभी संगठनों से यही अपेक्षा करते हैं कि वे इस ताने-बाने को बनाए रखें और राष्ट्र प्रथम के लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ते रहें।

प्र. पूजनीय सरसंघचालक जी ने पंच-परिवर्तन का आव्हान किया था। ये क्या हैं और इनकी दिशा क्या होगी ?

उ. स्वाधीनता के 75 वर्ष हो गए हैं। हर समाज स्वाधीनता के साथ ‘स्व-तंत्र’ का विकास, और गलत पंरपराओं को दूर कर निखार चाहता है इसे ही समाज परिवर्तन कहते हैं। समाज के सहभाग से ही यह परिवर्तन संभव है। परिवर्तन के लिए समाज का मन बनाना जरूरी है। फिर उस परिवर्तन को प्रत्यक्ष व्यवहार में लाने के लिए समाज को सक्रिय व संगठित करने का प्रयास करना। संघ ने इस दिशा में 99 वर्ष सतत् प्रयोग किए। भारत आर्थिक, सामाजिक दृष्टि से मजबूत हो रहा है। राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिल गई पर हमें अभी सामाजिक दृष्टि से स्वतंत्र बनना है। अपनी व्यवस्था बनानी है, उस दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। संघ ने पंच परिवर्तन को इसीलिए अपना महत्वपूर्ण कार्यक्रम बनाया है। शताब्दी वर्ष के निमित्त पांच विषय हैं, सामाजिक समरसता, कुटम्ब प्रबोधन, पर्यावरण, स्व आधारित जीवन पद्धति और नागरिक कर्तव्य। इनको लेकर स्वयंसेवकों ने प्रयोग किए हैं और इन पर व्यापक अनुभव भी समाज से आए हैं। उसी आधार पर ध्यान में आया कि समाज का मन अभी तैयार है। कल्‍पना यह है कि समाज की विभिन्न शैक्षिक, धार्मिक संस्थाओं, मठ-मंदिर सभी को जोड़कर इसे समाज परिवर्तन का व्यापक अभियान बनाना। आज सभी लोग अनुभव कर रहे हैं कि हिंदुओं की एकता, सामाजिक समरसता का महत्वपूर्ण आधार है। हम अलग-अलग सोचते हैं, रहते हैं, फिर भी सौहार्दपूर्ण सम्बंध बने हैं। पंच परिवर्तन के लिए समाज जीवन स्तर के जो प्रमुख लोग हैं, वह पहल करें।

प्र. भविष्य में किन लक्ष्यों को लेकर संघ आगे बढ़ेगा ?

उ. भारत को ऐसी स्थिति में लाना है कि वह स्वयं तो समृद्ध और समर्थ रहे, साथ ही विश्व का मार्गदर्शन भी करे। दुनिया में कहीं भी अन्याय ना हो। मत, संप्रदाय, पूजा पद्धति के आधार पर कोई विवाद ना हो, जो भारत की परंपरा, ज्ञान भंडार है, लोक कल्याण के कार्य निरंतर आगे बढ़ते रहें। समाज को साथ लेकर इन सभी कार्यो की गति बनी रहे, भारत परम वैभव पर पहुंचे, ऐसी अपेक्षा है। संघ कार्य का हेतु हिंदू समाज को संगठित करना है। संघ की शाखा सामाजिक अनुसंधान का प्रमुख केंद्र है। वहां हम केवल व्यक्तिगत विकास नहीं करते, बल्कि संपूर्ण समाज और राष्ट्रहित का चिंतन और उसके लिए आवश्यक कार्य की प्रेरणा भी प्राप्त करते हैं।

प्र. संघ प्रत्येक चुनाव में जनमत परिष्कार का कार्य करता है, राजनीति में सीधा हस्तक्षेप क्यों नहीं करता?

उ. संघ एक सामाजिक संगठन हैं और चाहता है कि अच्छे परिवर्तन समाज के द्वारा हों। संघ समाज की इच्छा बनाने का काम करता है। लोकमत परिष्कार के समय यही विषय लेकर संघ के स्वयंसेवक जाते हैं। संकीर्ण बातों में ना फंसते हुए समाज और राष्ट्र को सर्वोपरि रखना और अपने मत का प्रयोग करना, यही आव्हान संघ करता है। 

मणिपुर का राजनीतिक समाधान निकले

प्र. पूर्वोत्तर में आए दिन हिंसा की खबरें आती हैं, स्थायी शांति कैसे स्थापित होगी ?

उ. पूर्वोत्तर में स्थायी शांति जरूर होगी। बहुत से क्षेत्रों में शांति है और मणिपुर में भी बहुत वर्षो से शांति ही चल रही थी, लेकिन कुछ तत्व ऐसे भी हैं, जो विवाद को भड़काने का काम करते हैं। मणिपुर का विवाद केवल मणिपुर तक सीमित हैं, बाकी पूर्वोत्तर में शांति है। जमीनी स्तर पर संघ के स्वयंसेवक काम कर रहे हैं। संघ के सेवा कार्य वहां पर चल रहे हैं, सरकार से भी आग्रह कर रहे हैं कि राजनीतिक समाधान निकालें।

Similar News