69 हजार शिक्षक भर्ती मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक...

16 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 69000 शिक्षकों की भर्ती पर सुनवाई पर करते हुए भर्ती परीक्षा का रिजल्ट नए सिरे से जारी करने का आदेश दया था।

Update: 2024-09-09 10:41 GMT

उत्तरप्रदेश में 69000 सहायक अध्यापक भर्ती मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हुए 16 अगस्त को आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। अगली सुनवाई 23 सितंबर को होगी।

सीजेआई ने सभी पक्षकारों से कहा कि आप लिखित नोट दाखिल करें। हम 23 सितंबर को इस पर सुनवाई करेंगे।

हाईकोर्ट का आदेश

16 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 69000 शिक्षकों की भर्ती पर सुनवाई पर करते हुए भर्ती परीक्षा का रिजल्ट नए सिरे से जारी करने का आदेश दया था। बेसिक शिक्षा विभाग को 3 महीने में नई चयन सूची जारी करनी थी।

कोर्ट में शिक्षकों की भर्ती में 19 हजार सीटों पर आरक्षण घोटाला सामने आया था। ऐसे में बेंच ने आदेश दिया कि आरक्षण नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का पालन करके नई लिस्ट बनाई जाए। इससे पहले लखनऊ हाईकोर्ट की सिंगल बेंच भी ये मान चुकी थी कि 69,000 शिक्षकों की भर्ती में 19,000 सीटों पर आरक्षण का घोटाला हुआ था।

क्‍या है उत्‍तरप्रदेश का 69 हजार शिक्षक भर्ती मामला

उत्तर प्रदेश का 69 हजार शिक्षक भर्ती मामला एक बड़ा विवाद है, जो राज्य में 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती से जुड़ा है। इस मामले की शुरुआत 2018 में हुई थी, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी को दूर करने के लिए इस भर्ती का आयोजन किया। हालांकि, भर्ती प्रक्रिया के दौरान कई विवाद और कानूनी मुद्दे सामने आए।

कट-ऑफ मार्क्स:

प्रारंभ में, 2018 में यूपी सरकार ने शिक्षक भर्ती परीक्षा के लिए न्यूनतम कट-ऑफ अंक 60% (जनरल कैटेगरी) और 55% (आरक्षित वर्ग) तय किए थे।

हालांकि, परीक्षा के बाद अचानक से कट-ऑफ को 65% और 60% कर दिया गया, जिससे कई उम्मीदवार प्रभावित हुए और इस फैसले के खिलाफ उन्होंने विरोध और कानूनी लड़ाई शुरू कर दी।

परीक्षा में अनियमितताएं:

परीक्षा में कई अनियमितताओं के आरोप लगाए गए, जैसे पेपर लीक, गलत मूल्यांकन, और कुछ उम्मीदवारों को अनुचित लाभ मिलना।

कई जगहों पर परीक्षा की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए गए, जिसके चलते मामला कोर्ट में पहुंचा।

विभिन्न याचिकाएं और अदालत का हस्तक्षेप:

उम्मीदवारों द्वारा कट-ऑफ और अनियमितताओं के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल की गईं। इसने भर्ती प्रक्रिया को लंबे समय तक रोके रखा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई की और अपनी टिप्पणियाँ दीं, जिसके बाद भर्ती प्रक्रिया में धीरे-धीरे प्रगति हुई।

आरक्षण और मेरिट लिस्ट में विवाद:

आरक्षण नियमों को सही तरीके से लागू न करने को लेकर भी विवाद उठे। कई उम्मीदवारों ने दावा किया कि मेरिट लिस्ट में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के साथ न्याय नहीं किया गया।

भर्ती में देरी:

कानूनी विवादों और प्रक्रिया में देरी के कारण कई उम्मीदवारों को लंबे समय तक नौकरी का इंतजार करना पड़ा। कई बार कोर्ट के आदेशों और सरकार के फैसलों के कारण भर्ती प्रक्रिया ठप रही।

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