सुप्रीम कोर्ट: चाइल्ड पोर्नोग्राफी मामले में SC ने आरोपी को जारी किया नोटिस

Update: 2024-08-12 11:07 GMT

केरल हाईकोर्ट ने अपने सुनवाई के दौरान कहा था कि किसी व्यक्ति पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67बी के तहत ऑनलाइन बाल पोर्न देखने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता और उसे दंडित नहीं किया जा सकता। "इस प्रावधान की आत्मा बच्चों को यौन रूप से स्पष्ट कृत्यों में चित्रित करने वाली सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करना है। याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप था कि उसने एक अश्लील वेबसाइट देखी थी।

अब इसी चाइल्ड पोर्नोग्राफी वाले मामले में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को नोटिस जारी किया है और उससे दो सप्ताह के भीतर ही जवाब देने को कहा है। अपने आदेश में केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई कहीं अकेले में बैठकर पोर्न देख रहा है तो वह किसी भी तरह से अपराध की श्रेणी में नहीं आता, अगर कहीं कोई दूसरे को दिखा रहा है तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा।

.बता दें कि इस मामले के खिलाफ़ बचपन बचाओ आंदोलन नामक एनजीओ की ओर से याचिका दायर की गई है। जिसपर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले में सुनवाई कर रही है।

अकेले में पोर्न देखना नहीं है अपराध- हाई कोर्ट

याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप यह है कि उसने एक अश्लील वेबसाइट देखी है। न्यायालय के विचार में, यह सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण नहीं होगा, जैसा कि धारा 67बी के तहत आवश्यक है। तो इस पर आदेश देकर केरल हाईकोर्ट के जज ने कहा था कि अगर अकेले में कोई व्यक्ति पोर्न देख रहा है तो वह अपराध या उसकी श्रेणी में नहीं आता, आईपीसी की धारा 292 के तहत अपराध नहीं है वहीं वह जबरदस्ती किसी को दिखाने की कोशिश कर रहा है तो फिर वह 292 के तहत अपराध है।

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