#विश्वहिंदीसम्मेलन : औपनिवेशिक मानस से बाहर आना ही होगा - जयशंकर
- नादी, फिजी से अतुल तारे
नादी/वेबडेस्क। प्रशांत महासागर की गहराई, पारदर्शिता और तरलता जैसे हैं भारत और फिजी के संबंध। विश्व हिन्दी समेलन का आयोजन इन संबंधों को हिमालयी ऊंचाई तो देगा ही, इससे निश्चित ही हिन्दी वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित होगी।यह संकल्प बुधवार को देनेराऊ कन्वेंशन सेंटर नादी में विश्व हिन्दी समेलन के मंच से फिजी के राष्ट्रपति विलिमे काटोनिवेरे एवं भारत के विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने तो लिया ही बल्कि विश्व के कोने-कोने से आए प्रतिनिधियों ने करतल ध्वनि के साथ इस संकल्प पर अपनी प्रतिबद्धता प्रगट की।
राष्ट्रपति विलिमे काटोनिवेरे ने कहा कि विश्व हिन्दी समेलन की मेजबानी फिजी के लिए सौभाग्य का विषय है। अभी हमारे यहां एक ही बोली है जिसे फिजी हिन्दी कहते हैं, यह भाषा के स्तर पर पल्लवित हो, इसका प्रयास रहेगा। भारत के विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने कहा है कि वैश्विक होने का अर्थ एक जैसा होना नहीं है। बल्कि अपनी विविधता को बचाकर सबके लिए कार्य करना है। हमें औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आना ही होगा और हिन्दी इसका माध्यम बनेगी।
प्रगति का मानक पश्चिमीकरण नहीं -
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि वह युग बीत गया, जब प्रगति का मानक पश्चिमीकरण को माना जाता था। अब अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में धीरे-धीरे व्यापक बहुध्रुवीयता उत्पन्न हो रही है और पुनर्संतुलन भी हो रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में हिन्दी को बढ़ावा देने की जरूरत है। यह भाषा न केवल पहचान की अभिव्यक्ति है बल्कि भारत और अन्य देशों को जोडऩे का माध्यम भी है। शुरू में विदेश राज्यमंत्री पी. मुरलीधरन ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी। गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा ने हिन्दी के विकास के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी। फिजी के शिक्षा राज्य मंत्री ने स्वागत भाषण दिया और आभार भी जताया। उद्घाटन सत्र के बाद शाम तक चले विभिन्न सत्रों में विद्वान वक्ताओं ने भाग लिया। इस मौके पर विदेश मंत्री जयशंकर एव फिजी के राष्ट्रपति काटोनिवेरे ने संयुक्त रूप से एक डाक टिकट भी जारी किया।
क्या फिजी, भारत का ही सांस्कृतिक विस्तार है ?
फिजी, भारत से 11597 किलोमीटर की दूरी पर है। यह एशिया महाद्वीप में नहीं है। बीच में विशाल प्रशांत महासागर है। रंगरूप अलग, जीवन शैली अलग, पहनावा एकदम अलग, पर गुरुवार को जब इस समेलन का उद्घाटन हो रहा था तो ऐसा लगा कि हम भारत में ही हैं। 'सेबों सबो यहां का एक अत्यंत पवित्र धार्मिक रिवाज है। विवाह का प्रसंग हो, या कोई मंगल कार्य, या फिर कोई बड़ा आयोजन, सेबों सबो की रस्म यहां अनिवार्य है।
भारत में जिस तरह शांति पाठ या स्वस्ति वाचन या फिर दुर्गा, गणेश का आवाहन होता है, यहां भी होता है। लगभग 12 पुरुष और इतनी ही महिलाएं पूरे विधान से चरणबद्ध देवताओं को निमंत्रण देते हैं। सकारात्मक ऊर्जा को निमंत्रण और कहीं कोई नकारात्मकता है तो उसका विलोप हो, ऐसी प्रार्थना की जाती है। समुद्र मंथन तो नहीं कह सकते पर ऐसी कल्पना होती है जब नारियल की बड़ी सी रस्सी का घर्षण होता है। एक बड़े से कढ़ाव में पानी आता है।
फलों का रस, जिसे यगोना भी कहते हैं। आमंत्रित अतिथि को पान के लिए दिया जाता है। यह एल्कोहल नहीं है। दिमाग को शांत करता है। ऊर्जा देता है। गर्भवती स्त्री को भी यह दिया जाता है। मंच के नीचे एक रस्सी को इस प्रकार फेरा जाता है जैसे हम माला फेरते हैं। यही नहीं फिजी के राष्ट्रपति भी उतनी ही आस्था के साथ स्वयं यह विधि निर्देशानुसार पूरी करते हैं। यह लगभग 50 मिनिट चलती है। वह क्या बोले एक शब्द में लिखना संभव नहीं, जब तक आप पूछें नहीं। पूछ कर लिख भी सकता था पर यह फिर कभी। कारण, भाव पूरा सप्रेषित हो रहा था फिर शब्द का अर्थ क्या? सत्र के बाद रिसोर्ट में ही जानबूझकर स्वागत कक्ष पर प्रबंधक आरुषि जो जयपुर से हैं से पूछा यह क्या रस्म है कौन बताएगा? उसने एक युवती से भेंट करवा दी, यह सब उसने बताया। एक छोटी सी लड़की की उस रस्म के प्रति आस्था, आँखों को नम कर रही थी। मंच पर राष्ट्रपति को देख कर मुदित था। देवताओं का आवाहन इस प्रकार? क्या फिज़ी, भारत का ही सांस्कृतिक विस्तार है?