दिग्विजय समर्थकों द्वारा लगाए पोस्टर में जयवर्धन को बताया 'भावी मुख्यमंत्री'
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्र और पूर्व कैबिनेट मंत्री जयवर्धन सिंह के जन्मदिन पर लगाए गए एक पोस्टर ने बवाल खड़ा कर दिया है। जिसमे जयवर्धन को भावी मुख्यमंत्री बताया गया है। अब सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या यही वह वजह है, जिसके कारण मध्यप्रदेश कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है और जिसकी वजह से मध्य प्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को प्रदेश में 24 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उप चुनाव की रणनीति और उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया से दूर रखा है। सो इस सवाल का ठीक-ठीक जबाव तो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ही दे सकते हैं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम पर भाजपा तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ पर तंज कस रही है। 'ये लो कमलनाथ जी राज्यसभा का रिटर्न गिफ्ट। '
होर्डिंग्स में क्या है संदेश?
तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्र और कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे जयवर्धन सिंह का गुरुवार को जन्म दिन था। सो उनके प्रशंसकों ने राजधानी के कोने-कोने को शुभकामना संदेश दर्शाने वाले होर्डिंग और पोस्टरों से पाट दिया। इसमें कोई बुराई भी नही है, सबका हक बनता है कि वह अपने नेता या शुभचिंतक के जन्मदिन पर बधाई संदेश दें। लेकिन इन बधाई संदेशों के जरिए प्रदेश की राजनीति में खास कांग्रेस और कमलनाथ के लिए जो एक संदेश दिया गया, उससे राजधानी का राजनीतिक पारा आसमान पर पहुंचा गया है। पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह के जन्मदिन पर उनके समर्थक सोशल मीडिया पर बधाई संदेश दे रहे हैं, साथ ही पोस्टर भी शेयर कर रहे हैं। इस बीच राजधानी भोपाल के एमपी नगर के मुख्य चौराहे पर लगा एक पोस्टर अचानक राजनीति की सुर्खिया बन गया है। यह पोस्टर युवक कांग्रेस द्वारा लगाया गया है, जिसमे लिखा है 'मध्य प्रदेश के 'भावी मुख्यमंत्री' जयवर्धन सिंह को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं, प्रदेश की शक्ति, कांग्रेस की शक्ति, युवा शक्ति'।
राजनीतिक दांव-पेंच
बहरहाल हम आपको बताते हैं कांग्रेस की राजनीति का वह कड़वा सच जिसके कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। कमलनाथ को अपनी सरकार की बलि देनी पड़ी और जिस एक वजह से इन दिनों मध्य प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में दिग्विजय सिंह बनाम कमलनाथ आमने-सामने आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। तो कांग्रेस की इस सच्चाई को जानने के लिए अतीत के पन्नों को पलटना होगा। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आलाकमान ने मध्य प्रदेश का रण जीतने की बागडोर ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर सौंपी। उनके सहयोगी के रुप में 40 साल का राजनीतिक अनुभव रखने वाले कमलनाथ को मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाकर युवा जोश और अनुभवी सारथी की जोड़ी को मैदान में उतारा। लेकिन कांग्रेस के एक और क्षत्रप दिग्विजय सिंह को यह बेमेल गठजोड़ रास नहीं आया और फिर शुरु हुए राजनीति के वह हथकंडे जिनके चलते कांग्रेस में ही यह धारणा जन्म लेने लगी कि इन हालातों में बहुमत का जादुई आंकड़ा छूना तो दूर उसके आसपास भी पहुंचना संभव नहीं है। तब रणनीति के तहत ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रुप प्रस्तुत किया गया। इसका असर यह हुआ कि ग्वालियर-चंबल अंचल में जहां कांग्रेस उम्मीदवारों को अपनी जमानत बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था, वहां करिश्माई परिणाम सामने आए अंचल की 34 में से 28 सीटों पर कांग्रेस को सफलता मिली। लोगों ने सिंधिया को मुख्यमंत्री के रुप में देखने के लिए मतदान किया। परन्तु मध्य प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति के भाग्य विधाता को सिंधिया की यह सफलता रास नहीं आई। फिर शुरु हुए कांग्रेस के भाग्य विधाता के दांव-पेंच। पहले अपने पुत्र के लिए व्यूहरचना रची गई। जब उनको अपना यह पांसा उल्टा पड़ता दिखा, तो तुरत-फुरत गुलाटी मारकर कमलनाथ के साथ खड़े हो गए। इनका एकमेव मकसद सिंधिया को मुख्यमंत्री बनने से रोकना था। इसके बाद वही हुआ जो कांग्रेस के इस भाग्य विधाता ने पटकथा में लिख रखा था।
अंततः सिंधिया को मिले जनसमर्थन को भुला कर कमलनाथ के सिर पर मध्य प्रदेश की सत्ता का ताज रख दिया। जिसके नेपथ्य में मुख्य भूमिका में वही चेहरा रहा, जिसने ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया को भी इसी तरह छला था। लेकिन अब समय बदल चुका है। आज की पीढ़ी अपमान का घूंट पीकर आगे बढ़ने वाली नहीं है। वह अपमान का हिसाब सूद सहित चुकाने में विश्वास रखती है। अपने मकसद में सफल होने के बाद भाग्य विधाता प्रफुल्लित तो थे ही साथ-साथ आत्मविश्वास से लवरेज भी थे। लेकिन वह यह भूल बैठे कि इसबार उनके राजनीति के घोड़ों को थामने के लिए 1998 वाले माधव नहीं 2020 के ज्योतिरादित्य हैं। सो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के इस भाग्य विधाता की चालों के रुख को मोड़ दिया। 15 महीने के अंतराल में ही न केवल कमलनाथ सरकार का पतन हो गया, 40 साल के राजनीति के अनुभव की डुगडुगी बजाने वाले कमलनाथ को यह भी समझ आ गया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनदेखी नहीं करना चाहिए थी। खैर अब कमलनाथ अभूतपूर्व से भूतपूर्व हो चुके हैं। सिंधिया प्रदेश की राजनीति में उभरकर आए हैं। लेकिन इतना सब कुछ घटनाचक्र चला इसकी मूल वजह रही भाग्य विधाता को अपने पुत्र को अपने उत्तराधिकारी के रुप में स्थापित करना। जिसके लिए पहले सिंधिया और बाद में कमलनाथ सरकार की बलि ली गई और अब पुत्र को प्रदेश की सत्ता की बागडोर दिलाने के लिए गोटियां बैठाई जा रही हैं। यह अलग बात है कि इस बार उनको बलि का बकरा बनाने के लिए कोई सिंधिया या कमलनाथ नहीं मिल पाया है। बाकी सब कुछ आपके सामने राजधानी में लगे होर्डिंग्स और पोस्टर सारी कहानी बयां कर ही रहे हैं।
राजनीतिक जानकार बताते हैं गुटों में बंटी कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद दिग्विजय सिंह खेमा सक्रिय हो गया है। कमलनाथ की जगह जयवर्धन सिंह को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया जा रहा है। हालांकि इस पोस्टर से बवाल के बाद इसे हटा लिया गया है। लेकिन सोशल मीडिया पर यह पोस्टर वायरल है और भाजपा इसको लेकर कांग्रेस पर निशाना साध रही है।
भाजपा ले रही चुटकी
कांग्रेस में चल रही वर्चस्व की लड़ाई के बीच राजधानी में लगे इन होर्डिंग्स को लेकर जहां भाजपा ने चुटकी ली हैए तो अन्य यूजर्स भी दिग्विजय सिंह को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं दे रह हैं। भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष ब्रिजेश लूनावत ने होर्डिंग्स की तस्वीर साझां करते हुए ट्वीट कर लिखा ये लो कमलनाथ जी राज्यसभा का रिटर्न गिफ्ट दिग्गी राजा के सौजन्य से!!!