उपचुनाव से पहले कमलनाथ ने वीडियो में कहा मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं, शीशे से कब तक तोड़ोगे

Update: 2020-06-03 11:38 GMT

भोपाल।  प्रदेश में 24 सीटों पर होने वाले उपचुनावों को लेकर राजनीति गरमाना शुरू हो गई है।  आगामी समय में प्रदेश में उपचुनाव होने है।  जिसे लेकर दोनों ही दलों में तैयारियां शुरू हो गई है। इसी बीच कमलनाथ ने मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं… मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं, शीशे से कब तक तोड़ोगे, मिटने वाला मैं नाम नहीं… कविता से अपने इरादे जाहिर कर दिए है , 

दरअसल, आज बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की पीआर टीम ने उनका एक वीडियो जारी किया है।जिसके शुरुआत में पूर्व सीएम कह रहे हैं कि अब उनकी सरकार नहीं है और वे प्रदेश को ज्यादा समय देंगे।  इसके बाद प्रख्यात कवि विकास बंसल की अमिताभ बच्चन की आवाज में एक कविता शुरू होती है।  'मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं' सुनाई गई है। वीडियो में कमलनाथ केअलग- अलग मुद्राओं में कई फोटो लगाए गए हैं। इस वीडियो के अंत में कमलनाथ कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश को लेकर उनका एक सपना था, उसे साकार करें।

 गौरतलब है की प्रदेश में हुए सियासी फेरबदल के बाद से दोनों ही दल उपचुनावों को लेकर राजनीति गरमा रही है। दोनों ही दलों के नेताओं की ओर से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है।  ऐसे समय में कमलनाथ का यह वीडियों चुनावों को लेकर उनकी तैयारी और इरादों को जता रहा है।   

वीडियो में प्रख्यात कवि विकास बंसल की है ये कविता -

मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं ।

दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं… कुछ कर जाएं… । ।

सूरज-सा तेज नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे ।

सूरज-सा तेज नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे…

अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे…तुम मुझको कब तक रोकोगे… । ।

मैं उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है…

मैं उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है …

बंजर माटी में पलकर मैंने…मृत्यु से जीवन खींचा है… ।

मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं… मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं ..

शीशे से कब तक तोड़ोगे..

मिटने वाला मैं नाम नहीं… तुम मुझको कब तक रोकोगे… तुम मुझको कब तक रोकोगे…।।

इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है…

इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है ….

तानों के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है । ।

मैं सागर से भी गहरा हूँ.. मैं सागर से भी गहरा हूँ…

तुम कितने कंकड़ फेंकोगे ।

चुन-चुन कर आगे बढूँगा मैं… तुम मुझको कब तक रोकोगे…तुम मुझको कब तक रोकोगे..।।

झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं..

झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं..

अपने ही हाथों रचा स्वयं.. तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं…

तुम हालातों की भट्टी में… जब-जब भी मुझको झोंकोगे…

तब तपकर सोना बनूंगा मैं… तुम मुझको कब तक रोकोगे…तुम मुझको कब तक रोकोगे…।। 

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