बारह वर्षों बाद इस बार श्राद्ध पक्ष सोलह दिनों का, जानिए कैसे करें पितरों का तर्पण

Update: 2022-09-06 09:46 GMT

वेबडेस्क। श्राद्ध के पंद्रह दिनों में प्रत्येक दिन होता है कुतप काल, इसी समय श्राद्ध वं ब्राह्मण भोजन कराना श्रेष्ठ होता है। भारतीय संस्कृति में पितृ ऋण को विशिष्ट स्थान प्राप्त है । क्योंकि भारतीय मनीषा पुनर्जन्म में आस्था और विश्वास रखती है । जो अब विज्ञान सिद्ध भी हुआ है । श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी ने बताया कि पितृ कृपा प्राप्त करने के लिए पूरे वर्ष में एक पक्ष पितृ के लिए समर्पित है ।

पितृपक्ष को श्राद्धपक्ष भी कहा जाता है। भारतीय पंचांग के अनुसार पितृपक्ष का प्रारंभ भाद्रपद पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या को समाप्त होता है। पितृ पक्ष 2022 प्रारंभ तिथि अंग्रेजी तारीख के अनुसार इस बार पितृपक्ष का प्रारंभ 10 सितंबर 2022 शनिवार से हो रहा है जो 25 सितंबर तक रहेगा। 25 सितंबर पितृ विसर्जन की तिथि है। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा पर 10 सितंबर से श्राद्ध पक्ष शुरू होगा, जो आश्विन कृष्ण अमावस्या पर 25 सितंबर तक रहेगा। 12 साल बाद इस बार फिर श्राद्ध पक्ष 16 दिन का रहेगा, ज्योतिष शास्त्र में इसे शुभ नहीं माना गया है। हालांकि इस बीच 17 सितंबर को कोई श्राद्ध नहीं होगा। पहले दिन 10 सितंबर को पूर्णिमा और प्रतिपदा का श्राद्ध रहेगा। इससे पहले साल 2011 में 16 दिन का श्राद्ध पक्ष पडा था । डॉ तिवारी ने बताया कि इस बार 16 दिन का श्राद्ध पक्ष रहेगा। श्राद्ध पक्ष बढना जनता के लिए शुभ नहीं होता है, अशांति का माहौल रहता है। इसके लिए पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन विशेष तर्पण करना, गीता के 18वें अध्याय का पाठ के अतिरिक्त विष्णु सहस्रनाम और गजेन्द्र मोक्ष के पाठ करने चाहिए, इससे सुखशांति रहेगी, इससे पितरों का आशीर्वाद मिलता है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को ही पितृपक्ष कहा जाता है। पितृपक्ष की तिथियां इस प्रकार हैं

  • 10 सितंबर, शनिवार : पूर्णिमा का श्राद्ध/ प्रतिपदा का श्राद्ध
  • 11 सितंबर, रविवार : द्वितीया का श्राद्ध
  • 12 सितंबर, सोमवार : तृतीया का श्राद्ध
  • 13 सितंबर, मंगलवार : चतुर्थी का श्राद्ध
  • 14 सितंबर, बुधवार : पंचमी का श्राद्ध
  • 15 सितंबर, गुरुवार : षष्ठी का श्राद्ध
  • 16 सितंबर, शुक्रवार : सप्तमी का श्राद्ध
  • 17 सितंबर, शनिवार : सप्तमी-अष्टमी का श्राद्ध
  • 18 सितंबर, रविवार : अष्टमी का श्राद्ध
  • 119 सितंबर, सोमवार : नवमी श्राद्ध/ इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहा जाता है।
  • 20 सितंबर, मंगलवार : दशमी का श्राद्ध
  • 21 सितंबर, बुधवार : एकादशी का श्राद्ध
  • 22 सितंबर, गुरुवार : द्वादशी/सन्यासियों का श्राद्ध
  • 23 सितंबर, शुक्रवार : त्रयोदशी का श्राद्ध
  • 24 सितंबर, शनिवार : चतुर्दशी का श्राद्ध
  • 25 सितंबर, रविवार : अमावस्या का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध, महालय श्राद्ध

कुतप काल में ही श्राद्ध करना श्रेयस्कर 

ज्योतिषाचार्य डॉ तिवारी के अनुसार इन सभी तिथियों में श्राद्ध करने का सही समय कुतप काल कहा गया है । धर्माशात्रो में इसकी विशेष मान्यता है । श्राद्ध पक्ष के सोलह दिनों में सदैव कुतप बेला में ही श्राद्ध संपन्न करना चाहिए। दिन का आठवां मुहूर्त कुतप काल कहलाता है। दिन के अपरान्ह 11:36 मिनिट से 12:24 मिनिट तक का समय श्राद्ध कर्म के विशेष शुभ होता है। इस समय को कुतप काल कहते हैं। इसी समय पितृगणों के निमित्त धूप डालकर, तर्पण, दान व ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। पितृ प्रसन्न तो देव भी प्रसन्न होते हैं इसीलिए इन दिनों प्रत्येक व्यक्ति को अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भाव रखकर श्राद्ध एवं ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।

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