देहरादून। मानव जीवन सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ योनी है। धर्मशास्त्रों में भी मनुष्य जीवन की श्रेष्ठता का उल्लेख किया गया है और इस जीवन का एक मात्र उद्देश्य ईश्वर, प्रभु प्राप्ति है। मनुष्य जीवन में ही प्रभु प्राप्ति कर जन्म-जन्मान्तरों के बन्धनों से मानव मुक्त हो सकता है। ब्रह्मज्ञानी भक्तों के जीवन में ज्ञान और कर्म, दोनों की हमेशा से विशेषता रही है।
इस आशय के प्रवचन सन्त निरंकारी भवन रेस्ट कैम्प में रविवारीय सत्संग कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बहन शीतल डोला ने प्रकट किये। उन्होंने आगे फरमाया समस्त विश्व को कल्याण के लिए सद्गुरू माता सुदीक्षा महाराज ने निरंकार पार ब्रह्म की दिव्य ज्योति मानव मनों में प्रज्जवलित करने के लिये इसका आयोजन किया जा रहा है। हमेशा ही अवतारी महापुरूषों, सन्तों और भक्तों की भारत भूमि ने सदा ही विश्व को शांति और सद्भाव का संदेश दिया है। जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति, पहनावे, देश व प्रान्त के आधार पर तमाम प्रकार की दूरियां बना रखी हैं जिस कारण इन्सान परस्पर सद्भाव को अपनाने की बजाय संकीर्णता में जी रहा है। आज जरूरत है दिव्य ज्ञान के उजाले से युक्त होना यानि प्यार व भाईचारे की भावना को जागृत करना। केवल नारों से बात नहीं बनती कि 'आवाज दो हम एक हैं', 'एकत्व' की भावना से ही इन्सान-इन्सान के करीब आयेगा।
इस अवसर पर हम जाति-मजहब भाषा और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर, सभी तरह के भेदभाव छोड़कर, केवल एक मानवता का धर्म निभायेंगे, प्रेम और नम्रता से युक्त होकर, वैर और नफरत से मुक्त होकर सदा सत्य की राह पर चलेंगे, और सदा सत्य की राह पर चलेंगे, और हम ये प्रतिज्ञा करते हैं कि हमेशाा एकत्व को अपनायेंगे।
सत्संग समापन से पूर्व अनेक भक्तों ने गीतों एवं प्रवचनों के द्वारा गढ़वाली, पंजाबी, हिन्दी भाषा का सहारा लेकर संगत को निहाल किया। मंच संचालन दयानन्द नौटियाल ने किया।