एक संत से एक युवक ने पूछा- गुरुदेव, हमेशा खुश रहने का कोई उपाय हो तो बताएं। संत बोले-बिल्कुल है, आज तुमको वह राज बताता हूं। संत उस युवक को अपने साथ सैर को ले चले, अच्छी बातें करते रहे, युवक बड़ा आनंदित था। एक स्थान पर ठहर कर संत ने उस युवक को एक बड़ा पत्थर देकर कहा- इसे उठाए साथ चलो। पत्थर को उठाकर वह युवक संत के साथ-साथ चलने लगा। कुछ समय तक तो आराम से चला.. लेकिन थोड़ी देर में हाथ में दर्द होने लगा, पर दर्द सहन करता चुपचाप चलता रहा। संत पहले की तरह मधुर उपदेश देते चल रहे थे, लेकिन युवक का र्धय जवाब देने लगा।
उस युवक ने कहा- गुरु जी, आपके प्रवचन मुझे प्रिय नहीं लग रहे, भारी पत्थर को उठाए मेरा हाथ दर्द से फटा जा रहा है। पत्थर रखने का संकेत मिला तो उस युवक ने पत्थर को फेंक दिया और कुछ राहत महसूस की। साथ ही आनंद में भरकर गहरी सांस लेने लगा।
संत ने कहा- यही है खुश रहने का राज़ ! मेरे प्रवचन तुम्हें तभी आनंदित करते रहे जब तुम बोझ से मुक्त थे, परंतु पत्थर के बोझ ने उस आनंद को छीन लिया। जैसे पत्थर को ज़्यादा देर उठाए रखने से दर्द बढ़ता जाएग, उसी तरह हम दुखों या किसी की कही कड़वी बात के बोझ को जितनी देर तक उठाए रखेंगे उतना ही दुःख और कष्ट होगा। साथ खुशी जीवन से बहुत दूर चली जाएगी।
शिक्षा : अगर खुश रहना चाहते हो तो दु:ख रूपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और हो सके तो उसे उठाओ ही नहीं।