भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी (जिन्हें राजनैतिक विपक्षी चुनावी अरसे से चौकीदार चोर है चिल्ला चिल्लाकर गला बिठा बैठे हैं) ने 27 मार्च , बुधवार को राष्ट्र के नाम लगभग 10 मिनिट का महत्वपूर्ण संदेश देते हुए गर्व के साथ बताया कि भारत ने स्पेस में लो अर्थ आर्बिट अर्थात् अंतरिक्ष की निचली सतह में शक्ति मिसाइल से तीन सौ किलोमीटर दूर प्रक्षेपित करते हुए एक लाईव सैटेलाइट को मार गिराया है।
इस प्रकार भारत का मिशन शक्ति वैज्ञानिकों की कड़ी, अनथक मेहनत से अभूतपूर्व ढंग से कामयाब हुआ है। इस सिद्धि से भारतवर्ष यह क्षमता अर्जित करके अब अमेरिका, रूस व चीन के साथ विश्व की चौथी अंतरिक्ष महाशक्ति बन गया है। उसने स्वदेशी संसाधनों से निर्मित मिसाइल से तीन सौ किलोमीटर दूर स्थित लाईव स्पेस सैटेलाइट को मार गिराकर सिर्फ तीन मिनिट में ऑपरेशन पूरा कर महान् सिद्धि अर्जित कर ली। प्रधानमंत्री जी ने इस मिशन में जुटे भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई दी और इस ऐतिहासिक उपलब्धि को समूचे देश के लिए गौरवशाली क्षण बताया। यह सही भी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अविस्मरणीय रूप से सफल रहे अनवरत् सक्रिय कार्यकाल के अंतिम दिनों में नेतृत्व की अदम्य राजनैतिक इच्छा शक्ति के फलस्वरूप इतनी महत्वपूर्ण सामरिक उपलब्धि देश के वैज्ञानिकों द्वारा अर्जित करना, वास्तव में गर्व और प्रसन्नता की बात है। देश की सुरक्षा हेतु अंतरिक्ष में मारक क्षमता अर्जित करके वहाँ भी अदृश्य सीमाओं की मजबूत नाकेबंदी करना यह दर्शाता है कि नया भारत भविष्य को सुनहरा व सुरक्षित बनाने के लिए जिस दृढ़ता और बेबाकी से आगे बढ़ रहा है इसके लिए प्रधानमंत्री जी सहित सभी वैज्ञानिक भी अनंत - अनंत अभिनंदन के पात्र हैं।
इस ऐतिहासिक सफल परीक्षण पर पूरा देश खुशी मना रहा है वहीं विपक्ष के लिए तो यह घटना भी मोदी जी की राजनैतिक कलाकारी मात्र है, बकौल उनके इसे मोदी जी ने विपक्षियों पर हमला करने के लिए 'अंतर्राष्ट्रीय नाट्य दिवस ( थियेटर डे )' के दिन ही चुना है। साथ ही वे सब के सब मन ही मन मोदी जी को अजेय मानते हुए भी जाहिरातौर पर उन्हें गरियाने में लगे हुए हैं।
एक तरफ यह गौरवगाथा स्वर्णाक्षरों में रची/ लिखी जा रही है तो दूसरी तरफ हमारे बाल बबुआ जी अपनी गिरती साख और खोती हुई विश्वसनीयता से परेशान होकर अमेठी छोडक़र केरल की तरफ उसी तरह भागने के फेर में दिख रहे हैं जैसे कि मोदी जी के सफाई अभियान को धता बता कर , किसी के खेत में बड़े नेचुरल काल की हाजत शांत करने गए व्यक्ति के पीछे कोई बिगड़ैल सांड पड़ जाए, उसे दौड़ाये और वह नेता बिना आगे पीछे देखे, आंख बंद करके बाहर की ओर भागता ही चला जाए, उस समय उसे अपने कपड़ों को संभालने का भी होश नहीं रहे । इसके बाद भी हमारे बाल बबुआ जी अपनी ओछी मानसिकता के कारण उन्हें सराहने के बजाय, स्वयं के मन को कल्पना के घोड़े दौड़ाते हुए तीनों लोकों की सैर कर रहे हैं । किसी ने कहा भी है --
'तन को सौ सौ बंदिशें, मन को लगी ना रोक'
'तन की दो गज कोठरी, मन के तीनों लोक'
सो बेचारे घूम रहे हैं चहुँ ओर कि कहीं से कुछ तो ऐसा कानों में सुनाई पड़ जाए कि हां भइया! इस बार इस चुनावी अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को तुम ही थामोगे। पर वाह री जनता! बिनका मन रखने के लिए भी वह ऐसा नहीं कह रही। इसके उलट जनता विपक्षी नेताओं की सभा में छप्पन इंचिया की जय जयकार कर रही है। भले ही दिदिया जू इलाहाबाद और अयोध्या के फेरे लगातीं रहें, मिस्टर बंटाढार जी ढिंढोरा पीट पीट कर, घनघोर सेक्युलरवादी अर्थात् विधर्मी व पाकिस्तान समर्थक होने का खुल्लमखुल्ला दिखावा करने वाले अब स्वयं को असली हिंदू बताते हुए खम ठोकते रहें, पर जनता का रूख तो साफ - साफ उन्हें धता बताता नजर आ रहा है।
अभी तो सारे विपक्षी इक पासे और हमारा मोदी इक पासे -- पाताल से अंतरिक्ष तक हर हर मोदी - घर घर मोदी हो रही है। तेरी सभा में - मेरी सभा में, हर कहीं ---- मोदी मोदी मोदी का संकीर्तन हो रहा है। विपक्षी रब्बा से खैर माँग रहे हैं -- या मौला! हमें बचा!! कहीं राष्ट्रवाद की यह सुनामी हमें नेस्तनाबूदना कर दे।
-नवल गर्ग