नई दिल्ली। सफलता मिलने पर अपने पराए हो जाते हैं। दंभ जब हिलोरंे मारने लगता है तब संघर्ष के साथी पिछे छूटने लगते हैं लेकिन मीराबाई चानू के साथ ऐसा नहीं है। रजत पदक विजेता बनने के बाद मीराबाई चानू को अपने वही संघर्षकाल के साथी याद आ रहे हैं। जिन्होंने कभी तंगहाली के दिनों में दिल से मदद की थी। इन मददगारों में वे लोग शामिल हैं जिनका नाम लेने में लोग अपनी तौहीन समझते हैं। घर पहुंचते ही चानू ने लगभग 150 ट्रक चालकों और खलासियों को सम्मानित किया। जिनकी वजह से चानू शीर्ष मुकाम को हासिल कर सकीं।
दरअसल ये वे लोग हैं जिनकी वजह से ओलम्पिक तक उनका सफर संभव हुआ। मीराबाई चानू के गांव नोंग्पोक काक्चिंग से इंफाल की खेल अकादमी 25 किमी दूर थी। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि रोज अपने खर्च से वहां तक जा सकें। तो इसलिए वे रेत लेकर इंफाल जा रहे ट्रक वालों से लिफ्ट लिया करती थीं। ये सिलसिला बरसों चला। ये ट्रक ड्राइवर न होते तो क्या पता मीराबाई चानू का सफर अपने पहले ही लक्ष्य में खत्म हो गया होता। ओलम्पिक पदक जीतकर लौटी मीराबाई ने इन लोगों को शर्ट और मणिपुरी स्कार्फ देकर सम्मानित किया।
बचपन में लकड़ियां बीना करती थीं रजत पदक विजेता
टोक्यो ओलम्पिक में भारत के लिए पदक का खाता खोलने वाली मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गांव में हुआ था। शुरुआत में मीराबाई का सपना तीरंदाज बनने का था, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने भारोत्तोलन को अपना कॅरियर चुनना पड़ा। मणिपुर से आने वालीं मीराबाई चानू का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। मीराबाई का बचपन पहाड़ से जलावन की लकडिय़ां बीनते बीता। वह बचपन से ही भारी वजन उठाने की मास्टर रही हैं। बताते हैं कि मीराबाई बचपन में तीरंदाज बनना चाहती थीं। लेकिन कक्षा आठ तक आते-आते उनका लक्ष्य बदल गया। दरअसल कक्षा आठ की किताब में मशहूर भारोत्तोलन कुंजरानी देवी का जिक्र था।
"कुंजरानी" भारतीय भारोत्तोलन इतिहास की सबसे डेकोरेटेड महिला
उल्लेखनीय है कि इम्फाल की ही रहने वाली कुंजरानी भारतीय भारोत्तोलन इतिहास की सबसे डेकोरेटेड महिला हैं। कोई भी भारतीय महिला भारोत्तोलन कुंजरानी से अधिक पदक नहीं जीत पाई है। बस, कक्षा आठ में तय हो गया कि अब तो वजन ही उठाना है। इसके साथ ही शुरू हुआ मीराबाई का कॅरियर। मीराबाई की मेहनत आखिरकार रंग लाई, जब उन्होंने 2014 में ग्लास्गो राष्ट्रमण्डल खेलों में 48 किलो भारवर्ग में उन्होंने भारत के लिए रजत पदक जीता। लगातार अ'छे प्रदर्शन की बदौलत उन्होंने रियो ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई कर लिया था। हालांकि रियो में उनका प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा था। वह क्लीन एंड जर्क के तीनों प्रयासों में भार उठाने में नाकामयाब रही थीं। रियो ओलम्पिक की नाकामी को भुलाकर मीराबाई चनू ने 2017 के विश्व भारोत्तोलन चैम्पियनशिप में शानदार प्रदर्शन किया। 2018 में एक बार फिर राष्ट्रमण्डल खेलों में मीराबाई चानू ने स्वर्ण पदक जीतकर अपनी श्रेष्ठता साबित की। मीराबाई 2021 ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई करने वाली इकलौती भारतीय भारोत्तोलन हैं। उन्होंने एशियन चैम्पियनशिप में 49 किलो भारवर्ग में कांस्य जीतकर टोक्यो का टिकट हासिल किया था।