देश की एक पहचान हुनर से भी जिसे राज्यों को पहचानने की कड़ी जरुरत
अतुल मलिकराम (राजनीतिक विश्लेषक)
हर राज्य की मिट्टी से उपजते हैं होनहार खिलाड़ी; सिर्फ पहचान की जरुरत
भारत देश वैसे तो कई छोटी-बड़ी बातों के लिए दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन इसकी एक बड़ी पहचान में हुनर भी शामिल है। बात यहाँ की अरसों पुरानी कला की हो या खेल की, हर एक क्षेत्र में भारत के परचम मजबूती से लहराते दिखाई पड़ते हैं। खेल का नाम सुनते ही यदि सबसे पहले कुछ ध्यान में आता है, तो वह है हरियाणा। खेलों की राजधानी कहलाने वाले हरियाणा के खिलाड़ी सीधे तौर पर देश के दाहिने हाथ हैं। गोल्ड लाना हो या सिल्वर, यहाँ के धुरंधरों का अन्य राज्यों के मुकाबले में दाँव काफी मजबूत है।
वह कहते हैं न कि ताली दोनों हाथों से बजती है। जहाँ एक तरफ हरियाणा की मिट्टी से होनहार खिलाड़ी उपजते हैं, वहीं सरकार भी उन्हें फलदार बनाने को खाद-पानी देने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। यह राज्य हर दिन न सिर्फ नई सुविधाएँ देकर यहाँ के बच्चों के हुनर को तलाशने का भरसक प्रयास करता है, बल्कि उन्हें बखूबी तराशता भी है, जिसके किस्से पूरी दुनिया में सिर चढ़कर बोलते हैं।
बतौर उदाहरण समझें, तो विगत वर्ष ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले भारतीय एथलीट्स में से 31 हरियाणा के थे। वहीं, पंजाब दूसरे नंबर पर था, जिसके 19 खिलाड़ियों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। भारत ने टोक्यो ओलंपिक में जो इकलौता गोल्ड जीता, वह भी हरियाणा के एथलीट ने ही दिलाया था। यहाँ तक कि भारत द्वारा विगत वर्ष टोक्यो ओलंपिक में जीते गए सात पदक में से चार हरियाणा के धुरंधर ही भारत लेकर आए थे। हाल ही में हरियाणा के पंचकूला में चौथे 'खेलो इंडिया यूथ गेम्स' के लोगो लॉन्च के मौके पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि युवा एथलीट्स को बढ़ावा देने के लिए 140 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। खेल की यह पहल भी अपने आप में किसी मिसाल से कम नहीं है।
मुश्किल से मुश्किल खेलों में भी यहाँ के खिलाड़ियों को महारत हासिल है, इसकी वजह है यहाँ की खेल नीति। सरकार खिलाड़ियों को स्कूल स्तर से ही निखारने लगती है और उन्हें हर सुविधा देती है। कॉमनवेल्थ, एशियन और ओलंपिक गेम्स में सबसे ज्यादा पदक यहीं के हुनरबाज लेकर आते हैं। इसके मुकाबले जब अन्य राज्यों से निकलने वाले हुनरबाजों की कमी पर गौर करता हूँ, तो पाता हूँ कि हुनर सिर्फ और सिर्फ पहचान का मोहताज है, और इन हुनरबाजों की तलाश करने में देश के कई राज्य आज भी पीछे हैं।
कई दफा अपने राज्य में खेलों की सुख-सुविधाएँ ना मिलने पर बच्चे इस राज्य में पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं। यह अपने में बेहद विचारणीय मुद्दा है। क्यों न उन्हें अपने ही राज्य में उचित पहचान दी जाए? क्यों न एजुकेशन के साथ ही स्कूल इस दायित्व को भी प्रखर रखें और कम उम्र में ही खेल के प्रति दिलचस्पी रखने वाले बच्चों को इस क्षेत्र में मजबूत बनाएँ? सरकार द्वारा विविध स्पोर्ट्स इंस्टिट्यूशंस का गठन इसमें प्रत्यक्ष रूप से सराहनीय योगदान देगा, जिससे कि हर राज्य के स्कूल जुड़कर खेल में रूचि रखने वाले बच्चों को नई दिशा प्रदान करने के साथ ही नए भारत को जन्म देने में मददगार साबित होंगे।
यहाँ एक दायित्व पेरेंट्स का भी बनता है। जिन बच्चों में पढ़ाई के प्रति कम और खेल के प्रति लगाव ज्यादा है, उनके पेरेंट्स को बच्चों के लिए जागरुक रहने की बेहद जरुरत है। बच्चे की जिस खेल के प्रति रुचि है, उसमें निखार लाने के लिए उन्हें हर संभव प्रयास करने चाहिए। इसके लिए वे उम्र में ही बच्चों को स्कूल या ओपन कॉम्पिटिशंस में हिस्सा दिलवाएँ और उन्हें प्रोत्साहित करें, जिससे कि सभी राज्यों के उभरते होनहार सितारे देश का नाम रोशन कर सकें और उनके हुनर को भारत में नई पहचान मिल सके।