स्वदेश विशेष: भारतीय सिनेमा का नया केंद्र 'मध्य प्रदेश', मगर संस्कृति की अनदेखी?

Update: 2024-12-01 10:13 GMT

भारतीय सिनेमा का नया केंद्र 'मध्य प्रदेश', मगर संस्कृति की अनदेखी?

फ़िल्म निर्माता व निर्देशक, गुना @माही दुबे : हाल के वर्षों में अपना मध्यप्रदेश फिल्मांकन का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है, राज्य सरकार द्वारा 2020 में लागू की गई वर्तमान फिल्म पॉलिसी में प्रदान की जा रही सुविधाएं जैसे लोकेशन चार्ज में छूट, सुविधाजनक शूटिंग परमिट, सब्सिडी, पर्यटन स्थलों का आसानी से मिल जाना और फ्रेंडली इनवायरमेंट ने फिल्मकारों को हर साल यहां दर्जनों फिल्में और वेब सीरीज़ शूट करने को आकर्षित किया है, असर यह हुआ है कि प्रदेश में न केवल बड़े प्रोडक्शन हाउस आ रहे हैं, बल्कि यहां रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं, फिल्मों के जरिए पर्यटन को बढ़ावा देने में मध्य प्रदेश की वर्तमान फिल्म पॉलिसी ने अहम भूमिका निभाई है। 

'स्त्री,' 'बदनाम आश्रम', 'दबंग 3', 'लापता लेडिस', 'भूल भुलैया 3', ओर हालही में 'स्त्री 2' जैसी फिल्मों ने चंदेरी, मांडू, 'ओरछा' 'भोपाल' और 'उज्जैन' जैसे स्थलों को स्क्रीन पर दिखाया जो हमारे लिए प्रसन्ता का विषय बना। इन फिल्मों ने इन स्थानों को पर्यटकों के बीच लोकप्रिय तो बनाया लेकिन यह केवल सतही प्रदर्शन था। गहराई से विचार के बाद एक प्रश्न उठना स्वाभाविक है 'क्या प्रदेश में फिल्म पॉलिसी का उद्देश्य मात्र टूरिज़म बढ़ाना है? क्या जिस लक्ष्य को लेकर हम चले थे, उसमें यह पॉलिसी सार्थक भूमिका निभा रही है?

बरहाल, इन कहानियों में स्थानों की गहराई, उनकी सांस्कृतिक धरोहर, और ऐतिहासिक महत्त्व को कहीं भी नही उभारा गया। उदाहरण के तौर पर, 'स्त्री' ओर 'स्त्री 2' जैसी फिल्में 'चंदेरी' में शूट हुई। चंदेरी मध्य प्रदेश की केवल एक पर्यटक नगरी नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, कला, और अध्यात्म का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती हुई ऐतिहासिक नगरी है।

चंदेरी अपनी रेशमी साड़ियों, समृद्ध स्थापत्य कला, और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है, यहां के मंदिर, स्तूप, और दुर्ग भारतीय हिन्दू इतिहास के गौरवशाली अध्यायों को दर्शाते हैं.. यह नगर 1600 से अधिक वीरांगनाओं के जोहर, बुद्ध के तप, और सांस्कृतिक अध्ययन का प्रतीक है लेकिन हालिया बॉलीवुड फिल्मों, खासकर 'स्त्री' और इसकी आगामी श्रृंखला 'स्त्री 2', ने चंदेरी की सभी सकारात्मक पहलुओं को नजरअंदाज करते हुए, चंदेरी को एक हास्यास्पद, काल्पनिक-भूतिया कहानी का केंद्र बना दिया है। 

जिसने भी फिल्म देखकर चंदेरी को समझा उसके लिए चंदेरी "पुरुषसत्तात्मक और रूढ़िवादी" समाज बनकर रह गई जहां महिलाओं का सम्मान नही होता और सरकटे जैसे पुरुषों का आतंक है जो महिलाओं की स्वतंत्रता देख तिलमिला उठते हैं। 'स्त्री' का कथानक केवल मनोरंजन के नाम पर नगर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक छवि को नष्ट करता है। यदि हम इसे समझने की कोशिश करें तो बॉलीवुड का एक बड़ा वर्ग लंबे समय से मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित है या समझो कुछ पूंजीवादी वामपंथी बॉलीवुडिये जो फिल्मों को अपने एजेंडे के फुलफिलमेंट के लिए उपयोग करते हैं।

दूसरा उदाहरण जो विचारणीय है जैसे दिवाली पर रिलीज हुई 'भूल भुलैया 3' जो श्री राम लला की नगरी 'ओरछा ' में शूट हुई, वहां की संस्कृति और विरासत को न केवल नजरअंदाज करती है बल्कि सॉन्ग हुश-खुश, फुस-खुश में "जहां-जहां पांव पड़े संतन के वहां वहां बंटाधार" जैसे लिरिक्स, फिर पांडित्य का मजाक उड़ाना हिंदू परंपराओं को गलत तरीके से प्रस्तुत करती है। इस श्रृंखला में दर्जनों फिल्में हैं जिनमें जो बार-बार मध्य प्रदेश की संस्कृतिक ओर आध्यात्मिक विरासतों पर प्रहार किया जा रहा है।

क्या है सांस्कृतिक मार्क्सवाद और सभ्यताओं को कमज़ोर करने में इसकी भूमिका?

बॉलीवुड में साम्यवादी विचारधाराएँ अक्सर हिंदू परंपराओं और प्रतीकों को निशाना बनाती हैं, उन्हें नकारात्मक रूप से चित्रित करती हैं। अनगिनत फिल्मों में बलात्कारी या भ्रष्ट किरदारों को जानबूझकर तिलक या रुद्राक्ष की माला जैसे पवित्र प्रतीकों को पहने हुए दिखाया जाता है, जिससे हानिकारक रूढ़िवादिता को बल मिलता है। इसी तरह, चंदेरी और ओरछा जैसे ऐतिहासिक स्थानों को गलत तरीके से पेश किया गया। 'स्त्री' चंदेरी को अंधविश्वास के केंद्र में बदल देती है, जबकि भूल भुलैया 3 अपमानजनक संवाद के माध्यम से ओरछा का मज़ाक उड़ाती है। ये संयोग मात्र हीं हैं, बल्कि जानबूझकर मनोरंजन की आड़ में सांस्कृतिक गौरव को खत्म करने की साजिश है।

यह केवल विचारधारा की नहीं, बल्की एक सभ्याता के अस्तित्व की लड़ाई है

यदि ऐसा सतत चलता रहा तो हम एक दिन अपनी पहचान खो देंगे, यह केवल एक मनोरंजन की समस्या नहीं है, बल्कि एक गहरी बामपंथी साजिश है जो भारतीय संस्कृति को धीरे-धीरे मिटाने का प्रयास करती है। यह केवल एक सांस्कृतिक लड़ाई नहीं, बल्कि एक सभ्यता के अस्तित्व की लड़ाई है, हमें अपनी नई पीढ़ी को सही जानकारी देने और उनकी सोच को सकारात्मक दिशा में ले जाने के लिए अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को सही तरीके से प्रस्तुत करना होगा। मध्य प्रदेश के पास दुनिया को बताने के लिए कालिदास, बाबा महाकाल, सांची, चंदेरी, ओरछा, ओम्कारेश्वर, भीमबैठका ओर पता नही क्या क्या है। यदि हम अपनी पहचान और इतिहास को सही तरीके से प्रस्तुत करने में असमर्थ रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी संस्कृति केवल किताबों में सिमटकर रह जाएगी।

वर्तमान फिल्म नीति में क्या परिवर्तन करने की आवश्यकता है?मध्य प्रदेश सरकार की वर्तमान फिल्म पॉलिसी ने निश्चित रूप से शूटिंग के लिए राज्य को एक पसंदीदा स्थान बना दिया है लेकिन यह पॉलिसी केवल पर्यटन तक सीमित न रह कर अपने मध्य प्रदेश के सांस्कृतिक अभ्युदयब का शशक्त माध्यम भी बने। ऐसे हमे वर्तमान फ़िल्म पॉलिसी में कुछ संसोधन करने की ज़रूरत है, जेसे

स्क्रिप्ट मूल्यांकन, सांस्कृतिक शर्तें, स्थानीय परंपराओं का प्रचार आदि: फिल्मों में स्थानीय परंपराओं और विरासत का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए सांस्कृतिक दिशा-निर्देश पेश करना। 

क्षेत्रीय फिल्म निर्माण के लिए प्रोत्साहन: प्रत्येक 20 किलोमीटर पर भाषा का बदलना विविधता में एकता का उदाहरण बनता है, ब्रज, बुंदेली, निमाड़ी, मालवी और बुंदेलखंडी जैसी स्थानीय बोलियों में क्षेत्रीय कलाकारों और विषयों पर आधारित फिल्मों के लिए अतिरिक्त सब्सिडी प्रदान करना।

स्थानीय प्रतिभाओं के लिए अवसर: स्थानीय फिल्म शोधार्थी एवं शिक्षार्थीयों को बड़े प्रोडक्शन हाउस में काम मिले ऐसे नियम सशक्त हों, जब टेक्निकल क्रू, कहानीकार, फिल्ममेकर, मध्य प्रदेश के निवासी होंगे तो उनके मन में अपनी विरासतों के प्रति श्रद्धा और सम्मान भी होगा।

ऐसा करके, मध्य प्रदेश न केवल अपनी विरासत को संरक्षित कर सकेगा, बल्कि एक समृद्ध क्षेत्रीय फिल्म अर्थव्यवस्था के निर्माण के साथ भारत के सांस्कृतिक अभुदय में सहायक साबित होगा।

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