पंजाब : चन्नी मंत्रिमंडल के 15 नए मंत्रियों का संक्षिप्त परिचय

Update: 2021-09-26 13:11 GMT

चंडीगढ़/वेब डेस्क। पंजाब मंत्रिमंडल में आज शामिल किए 15 मंत्रियों में से छह नए चेहरे हैं। अंतिम समय में विधायक कुलजीत सिंह नागरा का नाम काट कर काका रणदीप सिंह नाभा का नाम शामिल किया गया। कैप्टन अमरिंदर सिंह कैबिनेट के पांच चेहरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। जिन मंत्रियों का पत्ता कटा है- उनमें बलबीर सिद्धू और गुरप्रीत कांगड़ ने प्रेस कांफ्रेंस कर अपना दर्द बयां किया है।

ब्रह्म मोहिंदराः हिंदू चेहरा हैं। छह बार के विधायक हैं। वह चन्नी कैबिनेट में सबसे सीनियर मंत्री होंगे। वह हाईकमान के करीबी माने जाते हैं। सरकार के संकटमोचक रहे हैं। पहले उनका नाम उप मुख्यमंत्री के लिए भी चला था। नवजोत सिंह सिद्धू इसमें बाधा बने।

मनप्रीत बादलः पांच बार के विधायक हैं। राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। पूर्व अकाली-भाजपा सरकार द्वारा पंजाब पर 31 हजार करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ाने के बावजूद वित्त विभाग को अच्छे तरीके से चलाया। आर्थिक संकट के बावजूद छठे वेतन आयोग को लागू किया। रिटायरमेंट एज को 60 से 58 करना जैसे बड़ा फैसला लेकर रहे चर्चा में रहे।

तृप्त राजिंदर सिंह बाजवाः चार बार के विधायकहैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को बदलने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाला सीनियर मंत्री रहे। इससे पहले प्रताप सिंह बाजवा को उतारकर कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी का प्रधान बनवाया और उनके साथ मिलकर लड़ाई लड़ी।

अरुणा चौधरीः तीसरी बार विधायक बनी हैं। अरुणा चौधरी का नाम पहले इसलिए कट गया था क्योंकि वह मुख्यमंत्री की नजदीकी रिश्तेदार भी हैं। लेकिन, देररात एक बार फिर चन्नी ने उनकी पैरवी की और कहा कि उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। वह माझा की एकमात्र महिला अनुसूचित जाति की नेता हैं। कैप्टन सरकार में वे पहले परिवहन मंत्री थी और बाद में उन्हें महिला एवं बाल कल्याण मंत्री बनाया गया था।

सुखबिंदर सिंह सरकारियाः तीसरी बार के विधायक हैं। कैप्टन को सीएम पद से बदलने वाली माझा की तिकड़ी के अहम नेता हैं सरकारिया। कैप्टन सरकार में सबसे पावरफुल मुख्य प्रमुख सचिव सुरेश कुमार से उनका टकराव चर्चा में रहा।

राणा गुरजीत सिंहः वह व्यापारी हैं। यूपी से 1980 में पंजाब आए। शराब और चीनी के व्यापारी हैं। रोपड़ में एक पेपर मिल के भी मालिक हैं। वह 2017 के पंजाब चुनाव में 170 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ सबसे अमीर उम्मीदवार थे। वह 2002 में कपूरथला से विधायक बने। 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के बेटे नरेश गुजराल को हराकर जालंधर से सांसद बने। राणा गुरजीत सिंह के लिए यह कैबिनेट में वापसी है। उन्हें 2017 में बिजली और सिंचाई मंत्री के रूप में शामिल किया गया था। वह बालू खदान आवंटन को लेकर एक घोटाले में फंस गए, जिससे उन्हें जनवरी 2018 में इस्तीफा देना पड़ा।

रजिया सुल्ताना : तीसरी बार की विधायक हैं और अल्पसंख्यक कोटे से कांग्रेस की एकमात्र विधायक हैं। उनके पति मोहम्मद मुस्तफा इस समय कांग्रेस प्रधान नवजोत सिद्धू के प्रिंसिपल रणनीतिक सलाहकार हैं। कैप्टन के तख्ता पलट में इनका भी अहम रोल है।

विजयइंदर सिंगलाः पहली बार विधायक बने हैं और हिंदू चेहरा हैं। कैबिनेट के युवा चेहरे में हैं। राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड के नेता हैं। वह पहले संगरूर से संसदीय चुनाव भी जीत चुके हैं। इस बार विधायक बनने के बाद उन्हें शिक्षा मंत्री बनने का मौका मिला। उनके काम की सराहना हुई।

भारत भूषण आशुः दूसरी बार विधायक बने हैं। वे पार्टी का हिंदू चेहरा है। वे कैप्टन सरकार में भी कैबिनेट मंत्री थे। उन्हें राहुल गांधी की टीम का सदस्य माना जाता है।

काका रणदीप सिंह नाभा : अमलोह के विधायक काका रणदीप सिंह नाभा ने लॉरेंस स्कूल सनावर स्कूल में पढ़ाई की और गवर्नमेंट कॉलेज चंडीगढ़ से अर्थशास्त्र (ऑनर्स) से स्नातक किया। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1997 में नाभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय के रूप में लड़ा लेकिन अकालियों से हार गए। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव लड़े और जीते। चार बार के विधायक हैं। वह 1985 में ब्लॉक कांग्रेस नाभा के प्राथमिक सदस्य के रूप में कांग्रेस में शामिल हुए। उन्होंने अफगानिस्तान के शाही परिवार में शादी की है। उनकी पत्नी उनके निर्वाचन क्षेत्र को संभालने में उनकी मदद करती हैं।

राज कुमार वेरकाः 58 वर्षीय वेरका अमृतसर पश्चिम से विधायक हैं। कांग्रेस के एससी चेहरे के रूप में 2002 में वेरका से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीतकर राजनीतिक पारी की शुरुआत की। वह 2010 से 2016 तक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में सबसे लंबे समय तक उपाध्यक्ष रहे। वेरका को तत्कालीन कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार के दौरान पंजाब स्टेट वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। उन्होंने चार विधानसभा चुनाव में से तीन में जीत हासिल की है। 2007 के चुनाव में उन्हें अमृतसर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में आरक्षित घोषित किए जाने के बाद स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन हार गए। बाद में वेरका ने इस निर्वाचन क्षेत्र से 2012 और 2017 का चुनाव जीता। नवजोत सिंह सिद्धू के पूर्व मुख्यमंत्री से असहमति के बाद उन्हें कैबिनेट बर्थ के लिए एक मजबूत दावेदार माना जाता था।

संगत सिंह गिलजियाः वे हाल ही में पीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए। गिलजिया का सादा जीवन और तेज कौशल शायद उर्मर विधानसभा सीट से उनकी लगातार तीन जीत के मूल में हैं। पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। वह उड़मुड़ और आसपास के भुलत्थ , हरगोबिंदपुर और सुल्तानपुर लोधी निर्वाचन क्षेत्रों सहित कुछ खास इलाकों में केंद्रित लुबाना समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। गिलजिया ने पहली बार 2002 में विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। इसके बाद 2007 में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। बाद में फिर पार्टी में शामिल हो गए। गिलजिया गांव के सरपंच के स्तर से ऊपर उठकर उन्होंने खुद को काफी हद तक अपने क्षेत्र तक ही सीमित रखा। 2018 में उचित स्थान नहीं मिलने का विरोध करते हुए पार्टी के सभी पदों को छोड़ दिया था ।

परगट सिंहः जालंधर छावनी क्षेत्र का प्रतिनिधितत्व करते हैं। हॉकी ओलंपियन से नौकरशाह बने राजनेता को हाल ही में पीसीसी का महासचिव (संगठन) नियुक्त किया गया है। पीसीसी प्रमुख नवजोत सिद्धू के विश्वासपात्र परगट पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ हमलों में सबसे आगे थे। उन्होंने कई प्रेस मीट आयोजित कीं, जिससे नेतृत्व परिवर्तन हुआ। परगट, 2011 के अंत तक खेल निदेशक थे। उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत शिअद के साथ की। उन्हें पार्टी प्रमुख सुखबीर बादल ने जालंधर कैंट सीट के लिए उम्मीदवार के रूप में चुना। उन्होंने 2016 में पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए।

अमरिंदर सिंह राजा वड़िंगः राहुल गांधी के भरोसेमंद युवा नेता हैं। 2012 में तत्कालीन पीपीपी प्रमुख मनप्रीत सिंह बादल को गिद्दड़बाहा से हराकर राज्य विधानसभा में पदार्पण किया। वह 2014 में भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने। वड़िंग ने 2017 में विधानसभा सीट बरकरार रखी। 2019 में उन्हें तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के राजनीतिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया। वड़िंग को पीसीसी प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू और डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा का करीबी माना जाता है। एक अच्छे वक्ता के रूप में वड़िंग ने अतीत में अपनी सार्वजनिक टिप्पणियों को लेकर विवाद खड़ा किया है। उन्होंने हाल ही में निवर्तमान वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल के कामकाज पर सवाल उठाया था। 2019 के संसदीय चुनाव के दौरान दायर एक हलफनामे में उन्होंने अपनी योग्यता के रूप में मैट्रिक का हवाला दिया।

गुरकीरत सिंह कोटलीः खन्ना क्षेत्र का प्रतिनिधितत्व करते हैं। कोटली पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह परिवार की तीसरी पीढ़ी के हैं जो मंत्री बने हैं। कोटली पहली बार 2012 में पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए और फिर 2017 में। कोटली ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत गवर्नमेंट कॉलेज, चंडीगढ़ से थी। स्नातक करने के बाद अपने दादा बेअंत सिंह से राजनीति के गुणों को आत्मसात किया। 1992 से 1995 तक उनके साथ समय बिताया। उनके पिता तेज प्रकाश सिंह ने परिवहन मंत्री के रूप में कार्य किया। कोटली खन्ना सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन वह पायल क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। उनका पैतृक गांव इस निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। विधानसभा की याचिका समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के अलावा विभिन्न संवैधानिक निकायों के सदस्य रहे। वर्ष 1995 में वे एक विदेशी महिला से छेड़छाड़ के आरोपों में चर्चा में रहे।

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