जस्टिस शेखर कुमार यादव ने मुसलमानों पर दिए अपने विवादित बयान पर सुप्रीम कोर्ट में दी सफाई: बोले- 'कठमुल्ले' वाला मेरा बयान सही...
Justice Shekhar Kumar Yadav: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने मुसलमानों पर अपने विवादित बयान पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह अपने बयान पर अडिग हैं और इसे न्यायिक आचार संहिता का उल्लंघन नहीं मानते। जस्टिस शेखर को विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में मुसलमानों से संबंधित बयान के कारण चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम के समक्ष पेश होना पड़ा था। लगभग एक महीने बाद, जस्टिस शेखर ने अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए एक चिट्ठी लिखी।
जस्टिस शेखर ने 8 दिसंबर वाले विवादित बयान पर दी सफाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने 8 दिसंबर, 2024 को प्रयागराज में एक कार्यक्रम में मुसलमानों पर दिए अपने बयान को लेकर स्पष्टीकरण दिया है। उन्होंने 17 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश अरुण भंसाली को भेजे गए जवाब में कहा कि उनका बयान कुछ स्वार्थी तत्वों ने गलत तरीके से प्रस्तुत किया। जस्टिस शेखर ने अपने भाषण को संविधानिक मूल्यों पर आधारित और सामाजिक मुद्दों पर विचार व्यक्त करने के रूप में बताया, न कि किसी समुदाय के प्रति नफरत फैलाने के रूप में।
उन्होंने इस पर खेद भी नहीं जताया और कहा कि न्यायपालिका के वे सदस्य जो सार्वजनिक रूप से अपनी बात नहीं रख सकते, उन्हें वरिष्ठों द्वारा सुरक्षा दी जानी चाहिए।
जस्टिस शेखर कुमार यादव की टिप्पणियाँ-
सहिष्णुता और दया की भारतीय संस्कृति
जस्टिस शेखर यादव ने भारतीय संस्कृति में सहिष्णुता और दया के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि हम किसी भी जानवर को नुकसान न पहुँचाएं, यहां तक कि चींटियों को भी न मारें। यह संस्कृति और शिक्षा हमारे अंदर गहरे तक समाई हुई है। वैदिक मंत्रों और अहिंसा की शिक्षा के साथ बच्चे बड़े होते हैं, जिसके कारण हमारी सहिष्णुता और दया की भावना विकसित होती है।
विकसित होते बच्चों में दया का अभाव
जस्टिस यादव ने यह भी कहा कि कुछ अन्य संस्कृतियों में बच्चों को बचपन से ही जानवरों के वध के बारे में सिखाया जाता है। इस कारण, वहां बच्चों में दया और सहिष्णुता की भावना विकसित नहीं हो पाती। ऐसे में, उन बच्चों से सहिष्णुता और दया की उम्मीद करना कठिन होता है।
महिलाओं के अधिकार और सम्मान
जस्टिस यादव ने मुस्लिम समुदाय के संदर्भ में महिलाओं के अधिकारों को लेकर अपनी सख्त टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि कोई भी समुदाय या समूह तीन तलाक जैसे अधिकारों का दावा नहीं कर सकता। महिलाएं हमारे शास्त्रों और वेदों में देवी के समान सम्मानित हैं। इसलिए, चार पत्नियां रखने, हलाला करने, या तीन तलाक देने का दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा। महिलाओं को भरण-पोषण के अधिकार से वंचित रखना भी गलत है।