बड़ा मुद्दा: अब तक नहीं हो सकी है पूर्व उद्यान निदेशक द्वारा किए गए करोड़ों के बीज खरीद घोटाले की जांच...

उद्यान विभाग में किसानों को अनुदान देने के नाम पर करोड़ों के घोटालों को अंजाम दे गए निदेशक पर मेहरबान रहे विभागीय मंत्री। भ्रष्टाचार के प्रति सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के बावजूद करोड़ों के बीज खरीद घोटाले की जांच करवाये जाने की शिकायत पर अब तक जांच शून्य क्यों ?

Update: 2024-09-15 15:20 GMT

अजय सिंह चौहान, लखनऊ। उ. प्र. विधानसभा सदन के सत्र का मौका हो या अधिकारियों के साथ बैठकों का या फिर विभिन्न जिलों के दौरे और जनसभाओं के दौरान भाषणों का मौका हो, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भ्रष्टाचारियों, माफियाओं और गुंडे बदमाशों के विरुद्ध अपनी जीरो टोलरेंस नीति के तहत कार्रवाई करने के सख्त लहजे में संदेश देते रहे हैं। हालांकि गुंडई के मामले में इन सख्त संदेशों के कुछ अच्छे नतीजे भी सामने आए हैं।

लेकिन मुख्यमंत्री के सख्त संदेश के बाद भी सरकारी महकमों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगता नजर नहीं आ रहा बल्कि बढ़ोतरी ही नजर आ रही है।इसी क्रम में उद्यान विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर गौर फरमाएं तो मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति अभी तक इस विभाग में बेअसर नजर आ रही है।

वहीं बीज खरीद घोटाले की लिखित शिकायतों के बाद भी अब तक उक्त करोड़ों रूपये के घोटाले की जांच न किया जाना भी मुख्यमंत्री जी की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति को बट्टा लगा रहा है।वहीं विभागीय सूत्रों का कहना है कि यदि इस घपले की निष्पक्ष जांच हो जाए तो अगस्त 2023 में सेवानिवृत हो गए पूर्व उद्यान निदेशक डा. आरके तोमर सहित कई बड़े अधिकारियों का फंसना तय है। इसलिए जांच संबंधी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ने दी जा रही है।

अब यहां सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर ऐसे कौन से कारण है जिससे करोड़ों के घोटाले की जांच नहीं हो रही है ?पूर्व उद्यान निदेशक द्वारा किये गये इतने बड़े घोटाले को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के उद्यान मंत्री दिनेश प्रताप सिंह तथा विभागीय अधिकारी और सरकार गंभीर क्यों नहीं है ? सवाल यह भी खड़ा होता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति उद्यान विभाग में क्यों पूरी तरह से विफल क्यों है? इसलिए सरकार को इस विषय पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग से सेवानिवृत्त वित्त एवं लेखाधिकारी जमाल अहसन उस्मानी ने बताया कि विभाग के पूर्व निदशक डा. आरके तोमर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग में नवम्बर 2015 में आरकेवीवाई (राष्ट्रीय कृषि विकास योजना) में डीबीटी की व्यवस्था लागू की गयी थी तथा शासनादेश दिनांक 07 अप्रैल 2016 के द्वारा विभाग में संचालित एमआईडीएच योजना तथा अन्य संचालित योजनाओं में कैश में की व्यवस्था लागू की गयी, जो दिसम्बर 2020 तक सफलता पूर्वक विभाग में लागू थी, जिससे एक ओर प्रदेश के कृषकों को अपनी स्वेच्छानुसार प्लाटिंग मैटिरियल (पौध, बीज, खाद, औषधि पौध, फूलो के बीज एवं पौध तथा अन्य निवेश) क्रय करने की सुविधा थी तथा योजनान्तर्गत अनुमन्य अनुदान सीधे उनके खाते में प्राप्त हो रहा था।

वहीं दूसरी ओर विभाग के फील्ड लेवल के कर्मचारी व अधिकारी कैश डीबीटी की व्यवस्था से बहुत खुश एवं संतुष्ट थे। क्योंकि उनके ऊपर विभागीय अधिकारियों का किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं था। वर्तमान निदेशक डा. आरके तोमर को जनवरी 2021 में अपर निदेशक से निदेशक का पदभार दिया गया। उस समय श्री तोमर अपर निदेशक के पद पर आसीन थे, और वर्तमान में अपने मौलिक पद निदेशक (उद्यान) के रूप में कार्यरत थे।

श्री तोमर के द्वारा तत्कालीन प्रमुख सचिव उद्यान से साठ-गांठ कर कैश डीबीटी के स्थान पर काईन्ड डीबीटी का प्रस्ताव शासन भेजकर स्वीकृत करा लिया।उन्होंने यह भी बताया कि भारत सरकार के अनुसार इन दोनों योजनाओं में काईन्ड डीबीटी का कोई प्राविधान नहीं है। काईन्ड डीबीटी परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य मध्यस्त सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के माध्यम से अपनी स्वेच्छानुसार बीज, पौध एवं अन्य प्लाटिंग सामग्री क्रय कर मोटा कमीशन प्राप्त किया जाये तथा अपनी स्वेच्छा से क्रय किये गये प्लाटिंग मैटिरिल को कृषकों में काईन्ड डीबीटी के रूप में वितरित किया जाये।

इस परिवर्तन के कारण कृषकों को अपनी स्वेच्छानुसार प्लाटिंग मैटिरियल क्रय करने की स्वतंत्रता छीन ली गयी तथा विकासखण्ड स्तर के कर्मचारियों पद दबाव बनाकर अमूक कम्पनी का बीज क्रय कराने के लिए लाभार्थी कृषकों को बाध्य किया गया, जिसकी शिकायत कर्मचारी संगठनों के द्वारा मुख्यमंत्री जी को की गयी है।

काईन्ड डीबीटी में परिवर्तन के शासनादेश दिनांक 21 सितंबर 2021 में दिये गये निर्देशों तथा भारत सरकार के पत्र दिनांक 30 जून 2021 में दिये गये निर्देशों के अनुसार न तो संस्थाओं के चयन के लिए खुली एवं पारदर्शी निविदा आमंत्रित की गयी और न ही न्यूनतम दरों को सुनिश्चित करने के लिए संस्थाओं से खुली एवं पारदर्शी प्रतिस्पर्धात्मक दरे निविदा के माध्यम से आमंत्रित की गईं, बल्कि शासनादेशों के विपरीत बिना निविदा कराये ही संस्थाओं का चयन निदेशक उद्यान डा० आरके तोमर द्वारा स्वयं कर लिया गया तथा इन चयनित संस्थाओं से सीधे पत्र के माध्यम से दरें आमंत्रित की गयी। जिसमें से एक संस्था नैफेड द्वारा पत्र निर्गत के दिनांक को ही अपनी दरें विभाग को उपलब्ध करा दी थी।

जिससे स्पष्ट है कि वर्तमान निदेशक डा. आरके तोमर की इस संस्था के साथ साठ-गांठ थी। इस संस्था के माध्यम से डा. आरके तोमर निदेशक उद्यान द्वारा केवल शाकभाजी मसाला बीज एवं अन्य निवेश (प्लास्टिक क्रेटस) में विगत दोनों वर्षो में लगभग 100 करोड़ से अधिक का अनियमित क्रय कराकर भ्रष्टाचार किया जा चुका है। यदि अन्य कार्यक्रम फल क्षेत्र विस्तार, औषधीय पौध क्षेत्र विस्तार, टिश्यू कल्चर केला क्षेत्र विस्तार तथा फूल क्षेत्र विस्तार कार्यक्रय एवं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में किये गये भ्रष्टाचार की निष्पक्ष जाँच करायी जाये तो करोड़ों का घोटाला एवं भ्रष्टाचार सामने आयेगा। 

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