ईडी की कार्यवाही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी

रवीन्द्र दीक्षित अधिवक्ता

Update: 2022-11-05 07:26 GMT

वेबडेस्क। भारतीय अर्थव्यवस्था का संतुलन बिगाडने मे सबसे ज्यादा प्रभाव ऐसे अज्ञात धन संग्रह का है जिसके संरक्षक देष के ही भीतर सफेद पोष धारण वाले नेता या मंत्री हो या फिर सफेद काॅलर वाले उद्योगपति या ब्यूरोके्रटस। लेकिन लगातार जाॅच एजेन्सी के छापे या धरपकड इस बात का प्रमाण है कि काला धन वापसी मे वर्तमान सरकार अपनी प्रतिबद्वता से लगातार बढ रही है। हालांकि कभी कभी आरोप सरकार पर भी उनके रवैये को लेकर या जाॅच या छापे की कार्यवाही की टाईमिंग को लेकर लगते है, जोकि जायज भी है, क्योंकि इतने बडे लोकतंत्र की सरकार को चलाना है, तो कडे फैसले लेने ही पडते है और घर की सफाई जब होती है तो घर के लोगो के साथ साथ आस पडोसियो को भी तकलीफ उठाना पडती है। काॅकरोच मारने की दवाई छिडकी है तो काॅकरोच जान बचाने के लिए इधर उधर भागेंगे और माहौल खराब भी करेंगें।

वर्ष 2014 मे काला धन वापसी को लेकर सवोच्च न्यायालय के आदेष के बावजूद भी पूर्व की यूपीए सरकार न तो उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आगे पुर्नविचार याचिका तक डाली थी कि उक्त समिति के गठन को कैसे भी करके रोका जाए, क्योंकि यूपीए सरकार जानती थी कि, उक्त समिति उनके लिए ज्यादा घातक सिद्व होगी। किन्तु वर्तमान एनडीए सरकार ने वर्ष 2014 मे सरकार बनाते ही सबसे पहले उक्त समिति के गठन को लेकर कदम उठाया। तब से लेकर आजतक मोदी सरकार नितनए कडे कानून लाकर एनजीओ की विदेषी फंडिग पर लगाम कस रही है। साथ ही साथ भारत की अर्थव्यवस्था को विष्वस्तर की मंदी के भारी दौर मे भी मजबूती के साथ प्रदर्षन सुधारने मे लगातार प्रयासरत है।

किन्तु जब सरकार अपनी जाॅच एजेंसियों को कर चोरी एवं भ्रष्टाचार के द्वारा काला धन संचय करने वालो के खिलाफ कार्यवाही करने की खुली छूट देती है, तो उन एजेन्सियो के दुरूपयोग करने का आरोप विपक्षी राजनैतिक दल मडने लगते है। इन सभी आरोपो के मध्य दो बाते उभरकर सामने आती है कि, एक तो सरकार अपने निर्णय पर प्रतिबद्वता से आगे बढ रही है क्योेकि मजबूत जनतंत्र के परिणामस्वरूप पूर्ण बहुमत उसके पास है। दूसरा जो जाॅच एवं अनुसंधान एजेन्सियाॅ 2014 के पूर्व से सुसुप्त अवस्था मे थी, उनको भी सरकार ने जामवन्त की भूमिका निभाकर हनुमानजी की भांति उनकी षक्तियो से परिचित कराया है। ऐसी ही एक एजेन्सी है श्प्रवर्तन निदेषालयश् इन्फोर्समेन्ट डायरेक्टरेट, (ईडी), जोकि आजकल पूरे देष मे सबसे ज्यादा चर्चा मे है। ईडी की कार्यप्रणाली पर सबसे ज्यादा विपक्ष हो हल्ला मचा रही है और उसके दुरूप्योग का आरोप सत्ता दल पर लगा रही है। लेकिन ईडी की सक्रियता उसका दुरूप्योग कहलाएगा या अब उसके सही तरीके के उपयोग मे होने का परिचय देगा। ये भारत की जनता भविष्य मे तय करेगी।

ईडी भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अंतर्गत राजस्व विभाग की एक एक जाॅच एजेन्सी है जोकि विषेषकर धनषोधन संबंधी अपराध एवं विदेषी मुद्रा कानूनो के उल्लंघन की जाॅच करती है। ईडी की कानूनी कार्यवाही धनषोधन निवारण अधिनियम 2022 (च्डस्।), विदेषी मुद्रा प्रबंधन अधियिम 1999 (थ्म्ड।), भगोडा आर्थिक अपराधी अधिनियम 2018 (एफ.ई.ओ.ए), विदेषी मुद्रा विनियमन अधिनियम 1973 (थ्म्ड।) एवं विदेषी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियो की रोकथाम अधिनियम 1974 (सी ओ एफ पी ओ एस ए) संबंधी कानूनो के उल्लंघन संबंधी अपराध की जाॅच एजेन्सी है।

उक्त सभी कानूनो मे से केवल भगोडा आर्थिक अपराधी अधिनियम (थ्म्व्।) कानून 2018 मे वर्तमान सरकार द्वारा, यह सोचकर बनाया कि ऐसे आर्थिक अपराधी जो भारत के भीतर बडे बडे अपराध करके भारतीय न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार से बाहर विदेषो मे भाग गए है, उनकी भारत से बाहर भागने से रोकने के लिए एवं उनकी सम्पत्तियो को कुर्क करके भारत सरकार मे षामिल करने का अधिकार देती है। बाकि सभी कानून वर्ष 2014 के पूर्व यानि की यूपीए के कार्यकाल के समय भी प्रभावषील थे, किन्तु न तो ईडी को उसकी षक्तियो के अनुरूप कार्य करने के लिए स्वतंत्रता थी ओैर न ही ईडी द्वारा 2014 के पूर्व इतनी सक्रियता दिखाई, इसलिए देष की जनता इतनी षक्तिषाली जाॅच एजेन्सी से बेखबर थी। ईडी की षक्तियो को कम करने या कहे तो षक्तिविहीन करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विपक्ष एवं उसके समर्थित लोगो या ईडी का षिकार हुए लोगो द्वारा लगभग 200 से ज्यादा याचिका प्रस्तुत की। जिसका निराकरण करते हुए एस.एल.पी (क्रिमिनल) क्रमांक 4634/2014, श्विजय मदनलाल चैधरी विरूद्ध भारत सरकारश् के मामले मे, दिनंाक 27 जुलाई 2022 को एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ईडी के विरूद्ध लामबंद हुई तमाम षक्तियो को आईना दिखा दिया और ईडी की देषभर एवं विदेषो मे की जा रही कार्यवाही को न्यायपालिका की मोहर भी सवोच्च न्यायालय मे लगा दी। न्यायालय ने इस निर्णय मे धारा 5, 8(4), 15, 17 एवं 19 धन षोधन निवारण अधिनियम 2002 (च्डस्।) की वैधता को पुष्ट करते हुए कहा कि, श्ईडी एक ऐसी जाॅच एजेन्सी है जिसके च्डस्। 2002 के कानून के अनुसार धन षोधन (मनी लोड्रिंग) रोकने या धन षोधन के परिणामस्वरूप अर्जित सम्पत्ति को पता लगाने हेतु अनुसंधान करने की विस्तृत षक्ति प्राप्त है एवं ईडी को उक्त धन षोधन से अर्जित सम्पत्ति को जप्त करने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त है। साथ ही साथ ऐसे आर्थिक आपराधियो के विरूद्ध मुकदमा चलाने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त है।

सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय ने, न सिर्फ ईडी की विष्वसनीयता को प्रमाणित किया, बल्कि सरकार की काले धन लाने की दृढ इच्छा षक्ति पर आधारित कार्यवाही पर भी मुहर लगाई, क्योंकि च्डस्। कानून 2002 मे बना था किन्तु इसे कभी भी 2014 के पूर्व अमल मे लाया गया हो ऐसा मामला प्रकाष मे कभी भी नही आया। अब इसी सक्रियता को राजनैतिक विरोध स्वरूप मे विपक्ष द्वारा देखा जा रहा है, जो इस देष के लिए कतई उचित नही है, क्योंकि ये कानून और ईडी एजेन्सी पूर्व मे भी थी और आगे भी रहेगी और सरकार इनका बेहतर इस्तेमाल पूर्व मे भी कर सकती थी और भविष्य मे भी कर पाएगी और वर्तमान मे तो भरपूर इस्तेमाल हो ही रहा है, क्योंकि वर्तमान सरकार ने जामवन्त जैसी भूमिका निभाते हुए ईडी को उसकी षक्तियाॅ याद दिला दी है। लोकतंत्र मे कोई भी सर्वषक्तिमान नही होता है, यदि कोई कार्यवाही ईडी द्वारा पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर करी भी जाती है तो पीडित व्यक्ति के पास न्याायालय के सामने जाने का रास्ता हमेषा खुला हुआ है।

हालांकि उक्त फैसले के विरूद्ध एक बार फिर ईडी की षक्तियो से घबराकर कुछ सामाजिक संगठन ने पुनः विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट मे प्रस्तुत की है, जो सर्वोच्च न्यायायालय ने केवल दो बिन्दुओ पर सुनवाई हेतु लंबित रखा है। प्रथम की च्डस्। कानून मे म्ब्प्त् (म्दवितबमउमदज बंेम पदवितउंजपवद तमवचवतज) की प्रति अपराधी को देने का प्रावधान नही है। दूसरा च्डस्। कानून मे अपराध को सिद्व करने का भार अपराधी पर ही होता है। जबकि भारतीय कानून व्यवस्था मे अपराध न्याय षासन मे अपराध सिद्व करने का भार सदैव ही अभियोजन पक्ष पर होता है। अब इस देष की जनता को ही तय करना है कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ हो रही कार्यवाही मे ईडी की जाॅच एजेन्सियाॅ नेताओ और भ्रष्ट अधिकारियो के खिलाफ जो मुहिम छेड रखी है। वह इस देष के हित मे है कि नही, क्योंकि अभी तक ईडी जैसी एजेन्सी के बारे मे जनता ने केवल सुन रखा था किन्तु उनका भरपूर इस्तेमाल होते हुए अब देखा जा रहा है।

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