भारत को सदैव ही एक सूत्र में पिरोए रही हिंदी

डॉ राघवेंद्र शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार)

Update: 2022-09-09 09:31 GMT

समुद्र के उत्तरी भाग में स्थापित विशाल सिंधु प्रदेश के लोग हिंदी बोलते हैं, इसलिए उक्त बड़े भूभाग का नाम हिंदुस्तान पड़ा। हिंदुस्तानी अपनी अभिव्यक्ति का अधिकतम माध्यम जिस भाषा को बनाए रहे, उसे हिंदी कहा गया। यानि कि हम हिंदी बोलते हैं इसलिए हिंदुस्तानी कहलाए अथवा हिंदुस्तानी होने के नाते हमारे द्वारा बोली गई भाषा हिंदी कहलाई। मतलब साफ है हिंदुस्तान का मतलब हिंदी और हिंदी का मतलब हिंदुस्तान अर्थात भारत या फिर भारतवर्ष। वर्तमान भारत में जबकि सैकड़ों भाषाएं प्रचलन में हैं, फिर भी इसे हिंदी ने ही एक सूत्र में बांधे रखा है। इस बात को हमारे पूर्वज पहले से ही मान्यता देते रहे। यही वजह रही कि बर्ष 1949 में भारतीय आजादी के बाद 9 सितंबर को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।

हालांकि इस बात में कोई भेद अथवा विवाद नहीं है कि इस देश की पुरातन भाषा संस्कृत, देवनागरी और हिंदी ही है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि क्षेत्रीय भाषाओं का कोई महत्व ही नहीं रहा। पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण दिशाओं में जितनी भी क्षेत्रीय भाषाएं बोली जाती हैं अथवा पहले प्रचलन में रही हैं, उन सभी ने इस देश की सनातन परंपराओं, संस्कारों को बचाए रखने में महती भूमिका निभाई है। जबकि हिंदी उपरोक्त सभी कार्य सक्षमता के साथ करते हुए इन सभी भाषाओं को और भारतीयों को एक सूत्र में पिरोए रखने का काम करती रही है। कालांतर में हमारे देश पर अनेक हमले हुए। उस दौरान सभी विदेशी आक्रांता शासकों ने भारतीयों पर अपनी अपनी भाषाएं थोपने का काम किया। चूंकि तत्कालीन विदेशी शासकों द्वारा राज कार्य अपनी मातृभाषा में कराए जाते रहे तो फौरी तौर पर विदेशी भाषाएं हमारे परिवेश में घुलती रहीं। इनमें अंग्रेजी, फारसी, अरबी प्रमुख हैं। भाषाओं के अनेक आगमन और पलायनों के चलते समय-समय पर यह सवाल उठते रहे कि आखिर हमारी असल भाषा, राष्ट्रभाषा अथवा मातृभाषा क्या है? मुगल शासकों और अंग्रेजों ने फूट डालो राज करो की नीति अपनाते हुए हिंदी को शेष भाषा भाषियों से दूर करने का कुचक्र 1947 तक बनाए रखा। एक समय ऐसा भी आया जब दक्षिण भाषी लोग हिंदी को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं के मुकाबले विरोधी अथवा प्रतिस्पर्धी भाषा के रूप में देखने लगे।

यह विरोध के स्वर कहीं कम तो कहीं ज्यादा अन्य गैर हिंदी प्रांतों में भी देखने को मिले। फल स्वरुप काफी लंबे समय तक हिंदी को लेकर विषाक्त वातावरण बना रहा। फिर भी भारत के अधिकतम भूभाग पर हिंदी में अभिव्यक्ति की परंपरा बनी रही। लेकिन हमारे देश के अनेक महात्माओं ने इस बात को समझा और अंततः इस निर्णय पर पहुंचे कि केवल हिंदी ही वह भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा या फिर राजभाषा से कमतर तो आंका ही नहीं जा सकता। शुरुआती महापुरुषों का स्मरण करें तो हिंदी के प्रचार प्रसार और उत्थान में स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद के अलावा दक्षिण प्रांत के वल्लभाचार्य, रामानुज, रामानंद, असम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर और नामदेव महाराज, गुजरात के नरसी मेहता, बंगाल के चैतन्य महाप्रभु, ऐसे संत महात्मा और महापुरुष रहे जिन्होंने अपने धार्मिक और सामाजिक विचारों को सभी प्रांतों में व्यापक रूप से पहुंचाने के लिए हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया। यही नहीं, इनमें से अधिकांश विभूतियों ने अपने ग्रंथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के साथ साथ हिंदी भाषा में भी लिखे। जहां तक स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय संप्रभुता के लिए लड़ने वालों की बात है तो उनमें राजा राममोहन राय का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। वे कहते थे कि समग्र देश की एकता के लिए हिंदी अनिवार्य है। केशव चंद्र सेन ने कहा - सारे भारत में एक ही भाषा हिंदी का व्यवहार उचित है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का उद्घोष था - हिंदी में ही भारत की राष्ट्रभाषा बनने का सामर्थ्य है। महात्मा गांधी मानते थे कि हिंदी ही हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है और इसे होना भी चाहिए। सी राजगोपालाचारी ने वक्तव्य दिया था कि हिंदी ही जनतंत्रात्मक भारत की राजभाषा होगी। सबसे पहले स्वतंत्र भारत की सरकार स्थापित करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मत रहा कि प्रांतीय ईर्ष्या द्वेष को दूर करने में हिंदी ही सक्षम है। इनके अलावा आत्माराम पांडुरंग और एनी बेसेंट जैसे नाम भी हिंदी के लिए कार्य करने वाले लोगों के रूप में लिए जा सकते हैं। स्वतंत्र भारत के नेताओं की बात करें तो उनमें पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई और वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। कुल मिलाकर हिंदी भारतवर्ष से लेकर नए भारत की यात्रा पूरी करने तक इस देश को एक सूत्र में पिरोए रखने में सफल रही और भविष्य में भी होती रहेगी। आज ही के दिन 9 सितंबर 1949 को भारत के माथे की बिंदी हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला। इसके लिए सभी देशवासियों को बधाइयां...

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