'जनसंख्या शक्ति' बनेगी 'राष्ट्र शक्ति', बशर्ते...
शक्ति सिंह परमार, संपादक, स्वदेश इंदौर
वेबडेस्क। किसी भी राष्ट्र के लिए जनसंख्या अभिशाप नहीं, अवसर होती है... बशर्ते उस जनसंख्या शक्ति का सही तरीके से नियमन करते हुए उसकी उपादेयता को राष्ट्रहित से जोड़ा जाए... स्वाधीनता के अमृतकाल में भारत विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र की सूची में सिरमौर है... स्वाधीनता की 100वीं वर्षगांठ के लिए हमें इस जनसंख्या शक्ति को राष्ट्र शक्ति के रूप में परिवर्तित करने का लक्ष्य लेकर आगे बढऩा होगा।
दुनिया के लिए भारत-चीन प्रत्येक पहलू से अहम हैं .. दोनों देशों की विकास नीतियां एवं कार्यक्रम, संसाधन, जनसंख्या, तकनीक और सुरक्षा मानक न केवल प्रतिस्पर्धात्मक रूप से दुनिया को चकित करते हैं, बल्कि इन सभी मामलों में भारत-चीन आगे बढऩे के लिए भी सदैव भी प्रतिस्पर्धी हैं... संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) की स्टेट ऑफ वल्र्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट जो फरवरी 2023 में तैयार हुई थी, उसमें 19 अप्रैल 2023 को खुलासा हुआ कि भारत की जनसंख्या 2022 में डेढ़ फीसदी बढ़ोतरी के साथ चीन को पछाड़ चुकी है... आज दुनिया में सर्वाधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र के रूप में भारत सिरमौर है... यह रिपोर्ट और इससे जुड़ी विश्लेषण सूचना देश-दुनिया के लिए अनेक तरह की शंकाओं एवं संभावनाओं के द्वार खोलने वाली रही..! हो भी क्यों नहीं, जब एक वर्ष पूर्र्व ही चीन की जनसंख्या में 6 दशक में पहली बार गिरावट देखी गई, तब चीन इस घटती जनसंख्या शक्ति के मामले में बेचैन नजर आया था... अब भारत एक वर्ष बाद इसी जनसंख्या शक्ति के पैमाने पर चीन के आगे खड़ा है... स्कूलों में निबंध लेखन के समय बार-बार यह पढ़ाया-बताया गया कि जनसंख्या और विज्ञान क्या किसी समाज-राष्ट्र के लिए वरदान है या अभिशाप..? तो इसका जवाब तब भी यही था और आगे भी यही रहेगा कि किसी भी समाज-राष्ट्र में उपस्थित कामगार लोग और श्रमशक्ति अगर मजबूती के साथ खड़ी है तो उस समाज-राष्ट्र के लिए आने वाले समय में अनेक तरह के अवसर स्वयं निर्मित होते चले जाते हैं... तभी तो चीन ने जनसंख्या के मामले में भारत के वैश्विक सिरमौर बनने के बाद बिफरते हुए यह तक कह दिया कि चीन में कामगारों की संख्या 90 करोड़ से अधिक है... हम अपनी कुशल श्रमशक्ति की बदौलत दुनिया की एक बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आगे बढ़ते रहेंगे.., तब क्या भारत भी अपनी श्रमशक्ति के कौशल उन्नयन को लेकर प्रतिबद्ध है..?
भारत में अभी ताजा जनगणना नहीं हुई है, लेकिन जारी रिपोर्ट में 1 अरब, 42 करोड़, 86 लाख जनसंख्या के साथ भारत ने चीन की 1 अरब, 42 करोड़, 57 लाख जनसंख्या शक्ति को पीछे छोड़ते हुए यह महत्वपूर्ण संकेत तो दिया है कि आने वाला समय भारत का ही है... फिर चाहे वह जनसंख्या व संसाधन के मान से चुनौतीपूर्ण हो या फिर तकनीक और श्रमशक्ति की क्षमताओं के पैमाने पर अवसरों से लबरेज हो... क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने 1950 में जनसंख्या के आंकड़े एकत्रित करना शुरू किया था और उसके बाद भारत पहली बार दुनिया में सर्वाधिक आबादी के साथ आगे निकल गया है... वैसे तो चीन की वृद्धि दर 1980 से ही घटती जा रही है... चीन की जनसंख्या पिछले साल चरम पर पहुंचकर गिरने लगी थी और जनसंख्या गिरावट का यह क्रम आगे भी जारी रहेगा, क्योंकि वहां पर सर्वाधिक आबादी बुजुर्गों की है... जबकि भारत की जनसंख्या वृद्धि दर बढ़ रही है... सर्वाधिक जनसंख्या किसी भी समाज-राष्ट्र के लिए दु:ख या संकटों का कारक नहीं हो सकती अगर उसे नैसर्गिक रूप से प्राप्त होने वाले संसाधनों को लेकर जवाबदेह बनाया जाए... क्योंकि समाज में जब असमानता बढ़ती है और गरीबी के साथ ही नैसर्गिक व अन्य वैकल्पिक संसाधनों पर भार बढऩे लगता है, तभी जनसंख्या असंतुलन से जुड़े मामलों पर समाज-सरकार चिंतित नजर आती है... अगर आबादी को उसकी आवश्यकताओं के मान से संसाधनों के उचित उपयोग एवं प्रबंधन दृष्टि से शिक्षित किया जाए, तो संसाधनों की समान भागीदारी संभव है... आज भारत 142.8 करोड़ की आबादी के साथ चीन, अमेरिका, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और ब्राजील से ऊपर है... 1901 में भारत की यह आबादी 23.83 करोड़ थी, जो 2020 में 138.3 करोड़ तक पहुंची... आने वाली जनगणना में हमारा वर्तमान आंकड़ा भी पीछे छूट जाएगा.., लेकिन उस मान से क्या हम जनसंख्या प्रबंधन के लिए तैयार है..?
भारत के लिए आने वाले समय में यह 'जनसंख्या शक्तिÓ बहुत बड़ी 'राष्ट्र शक्तिÓ बनेगी बशर्ते हम इस जनसमूह को उसकी आयु, लिंग, कौशल एवं क्षमता के मान से अवसर उपलब्ध करवाएं... क्योंकि आज भारत में लिंग संबंधी भेदभाव या असमानता पूर्णत: दूर हो चुकी है... इसलिए भारत आज कुशल कामगार आबादी बनने की सबसे बड़ी ताकत रखता है... देश में उपलब्ध बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए अगर उनसे गड्ढे खुदवाकर पुन: भरवाए जाएं, तब भी बेरोजगारी खत्म नहीं हो सकती... यह बात किसी अर्थशाी ने कही थी... क्योंकि उनका मानना था कि आबादी के मान से रोजगार के अवसर भी विभक्त होते चले जाते हैं और उपलब्ध संसाधनों की आपूर्ति भी सीमित होती चली जाती है... लेकिन भारत की दृष्टि से देखें तो ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कामगारों की संख्या वर्ष 2018-19 में 19.7 फीसदी थी, जो 2020-21 में बढ़कर 27.7 फीसदी हो गई है... इस मान से भारत में आने वाले समय में 50 करोड़ कामगार होंगे... 15 साल से अधिक उम्र के कामगारों को शामिल करने पर यह आंकड़ा 100 करोड़ से अधिक है... क्या यह श्रमशक्ति भारत के लिए एक अवसर नहीं बन सकती..? आज देश की तकनीकी कंपनियों में 54 लाख लोग काम करते हैं... 2.90 लाख लोगों को इन कंपनियों में 2022-23 में ही नौकरियां मिली हैं... जो अपने कौशल और हुनर का बेहतर प्रदर्शन स्वाभाविक रूप से करेंगे ही... ऐसे में अगर कहें कि भारत अपनी दक्ष श्रमशक्ति की बदौलत 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनेगा और हर क्षेत्र में तेजी आएगी, तो इसके पीछे 15 से 64 साल की 68 फीसदी वह आबादी है, जो आने वाले समय में 'आत्मनिर्भरÓ और 'सशक्तÓ भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाएगी... बशर्ते इस आबादी को आपसी उलझनों, वैमनस्य से दूर रखकर नैसर्गिक संसाधनों की उपलब्धता एवं उपयोगिता को लेकर सचेत करना होगा...किसी भी राष्ट्र के लिए जनसंख्या अभिशाप नहीं, अवसर होती है... बशर्ते उस जनसंख्या शक्ति का सही तरीके से नियमन करते हुए उसकी उपादेयता को राष्ट्रहित से जोड़ा जाए... स्वाधीनता के अमृतकाल में भारत विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र की सूची में सिरमौर है... स्वाधीनता की 100वीं वर्षगांठ के लिए हमें इस जनसंख्या शक्ति को राष्ट्र शक्ति के रूप में परिवर्तित करने का लक्ष्य लेकर आगे बढऩा होगा।