संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रही उप्र की भीमबैठका
- आगरा की 'अरावली में छिपा हुआ मानव सभ्यता का 'हजारों वर्ष पुराना इतिहास
- फतेहपुर सीकरी के चार किमी दूर बिखरे पड़े मानव सभ्यता के चिन्ह
- गुफाओं व पहाडिय़ों में 'शैलचित्रों की लंबी श्रंखला
- मधुकर चतुर्वेदी
आगरा। आज हम चंद्रमा और मंगल ग्रह से लेकर अंतरिक्ष तक की यात्रा आसानी से कर रहे हैं लेकिन, हजारों साल पहले एक ऐसा भी समय था जब हमारे पूर्वज (आदिमानव) मानव सभ्यता के विकास के दौर से गुजर रहे थे और जीवन चक्र को आगे बढ़ा रहे थे। हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता के निशान आज भी हमारे बीच मौजूद हैं लेकिन, सरकारी उपेक्षा और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता के कारण प्राचीन मानव सभ्यता के यह सब साक्ष्य नष्ट होने की ओर हैं।
जी हां, हम बात कर रहे ऐतिहासिक नगरी आगरा की। जिसे लोग ताजमहल के कारण जानते हैं लेकिन, आगरा का इतिहास ताजमहल से हजारों वर्ष पुराना है, पर दुर्भाग्य है कि यह सब हमारे सामने नहीं आया। आगरा से 35 किमी दूर फतेहपुरी सीकरी में ऐसी पहाडिय़ां हैं, जिसमें प्राचीन मानव सभ्यता के चिन्ह (शैलाश्रयों) आज भी मौजूद हैं, जिन्हें रॉक पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इनकी खोज कुछ वर्षों पहले हो चुकी है लेकिन, संरक्षण के अभाव में यह शैलाश्रय दम तोड़ रहे हैं।
मैंने पुस्तकों में इन शैलचित्रों के बारे पड़ा था लेकिन, पूरी तरह स्पष्ट नहीं था कि फतेहपुर सीकरी के गांवों में इस हजारों साल पुरानी संस्कृति के अवशेष मुझे मिलेंगे। यह पहाडिय़ां यहां के रसूलपुर, मदनपुरा, जाजाली और पतसाल गांव में हैं और माना जाता है कि यह अरावली पर्वत श्रंखला का हिस्सा है। इतिहासकारों की मानें तो यह रॉक शेल्टर (शैलाश्रय) पाषाण काल यानि, करीब पांच हजार साल से लेकर गुप्त काल तक के हैं।
सीकरी की पहाडिय़ों में फैले इन शैलाश्रयों को बचाने के लिए पेशे से चिकित्सक व पर्यावरणविद् डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य पिछले एक सप्ताह से इन गांवों की पहाडिय़ों में बने शैलाश्रयों पर शोध व सामग्री एकत्र कर रहे हैं। आगरा के पुरातत्व विभाग में अधिकारियों से मिले और उन्हें इन शैलाश्रयों के बारे में जानकारी दी। स्थानीय पुरातत्व अधिकारियों को बहुत पहले से इन श्रैलाश्रयों के बारे में जानकारी है लेकिन, उनका कहना है कि इन शैलाश्रयों को संरक्षण करने के लिए विभागीय स्तर से कोई नोटिफिकेशन उनके पास नहीं है, इसलिए वह इन शैलाश्रयों के संरक्षण के लिए कुछ नहीं कर सकते। हमने भी पुरातत्व विभाग के अधिकारियों से बात की। आगरा रीजन के अधीक्षक पुुरातत्वविद् बसंत स्वर्णकार से इस बारे में बात करने का प्रयास किया लेकिन, उनसे संपर्क नहीं हो सका। सीकरी के इन गावोंं में शैलाश्रयों को बचाने का प्रयास कर रहे डॉ.
उप्र की भीमबेटका हैं यह पहाडिय़ां
फतेहपुर सीकरी के आस-पास के गांवों की पहाडिय़ों पर जो शैलचित्र पाये गये हैं वो हूबहू भीमबैठका के शैलचित्रों जैसे ही हैं। इस कारण ये भी हजारों साल पुरानी संस्कृति हुई। भीमबैठका के चित्रों की तरह ही फतेहपुर सीकरी की पहाडिय़ों के शैलचित्रों में खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ और लाल रंग ही प्रमुख हैं। पेड़ पौधों, हिरन, जंगली पशु, हथियार, यहां तक ही सूर्य सहित नवग्रह मंडल, बर्तनों के चित्र बने हुए हैं।
इनका कहना है -
फतेहपुर सीकरी के गांवों की पहाडिय़ों पर शैल चित्रों की अद्भुत श्रृंखला मौजूद है, जो यहां हजारों वर्ष पहले मानव सभ्यता के होने का प्रमाण देती हैं। इन पहाडिय़ों में भित्ति चित्रों की उम्र लगभग 5 हजार वर्ष है और आज तक इनका संरक्षण नहीं हुआ। इन सभी स्थानों पर शोध और संरक्षण की जरूरत है। जो सम्भावनाओं के नए द्वार खोल सकती है।
डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य, शोधकर्ता।
फतेहपुर सीकरी से 4 किमी दूरी पर मौजूद गांवों में प्राकृतिक शैल चित्र हैं, यह लाल, काले और भूरे रंग में हैं और ज्यादातर जानवरों के चित्र बने हैं। यह सभी ऐतिहासिक हैं। आगरा में अधीक्षक पुरातत्वविद् के पद रहते हुए इन पहाडिय़ों का दौरा कर चुके थे। इनका संरक्षण शीघ्र होना चाहिए।
दयालन दुरईस्वामी, जाने-माने इतिहासकार व पुरातत्वविद्।