आपातकाल के 45 साल : लोकतंत्र बहाली के लिये भूखे रहकर जेल में किया था आमरण अनशन
फिरोजाबाद। आपातकाल के उन दिनों की याद करके फिरोजाबाद के लोकतंत्र सेनानी आज भी गुस्से से भरकर कहते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिर गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाकर लोकतंत्र की जो सरेआम हत्या की उसे कभी भुलाया नही जा सकता। वह इतिहास का एक काला पन्न बन गया है। लोकतंत्र सेनानियों की रिहाई और लोकतंत्र की बहाली के लिये वह किशोर अवस्था में जेल ही नही गये बल्कि जेल में भूखे रहकर आमरण अनशन भी किया। जिससे जेल प्रशासन भी परेशान हो गया था।
नया रसूलपुर निवासी लोकतंत्र सेनानी दिनेश भारद्वाज बताते है कि 25 जून 1975 को जिस समय आपातकाल लगा वह गोपीनाथ इंण्टर कालेज के इण्टरमीड़िएट के छात्र थे। उस समय उनकी उम्र लगभग 16 वर्ष थी। इसके साथ ही वह राष्ट्रीय स्वंय सेवक संद्य की पेमेश्वर शाखा के स्वयसेवक भी थे। वह वर्तमान में लोकतंत्र रक्षक सेवा सेनानी मंच के बृजप्रांत के प्रांत अध्यक्ष है। आपातकाल लगते फिरोजाबाद में भी पूरे देश की भांति सभी विपक्षी दलों के राजनेताओं, समाजसेवियों व संद्य के अनेक कार्यकर्ता जिनमें जगदीश उपाध्याय, लक्ष्मीनारायण जैन, रामप्रकाश अग्रवाल, आश्चर्य लाल नरूला और पूर्व मंत्री रद्युवर दयाल वर्मा जैसे अनेक बडे लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसके पश्चात लोक जागरण के लिये साहित्य घर-घर पहुंचाना, दीवारों पर लोक जागरण के नारे लिखना एवं लोकतंत्र समर्थक जनता का मनोबल बढ़ाने का भार तत्कालीन प्रचारक हरिओउम के निर्देशन में हम नौजवानों के कंधों पर आ गया। उन्होंने बताया कि हमने अपने अन्य साथियों जिनमें नाहर सिंह सिकरवार, चन्द्र प्रकाश गुप्ता, दिनकर प्रकाश गुप्ता, हरिओम गुप्ता, गिरजा शंकर गुप्ता, सुशील मिश्रा व रवीन्द्र शर्मा के साथ इस जिम्मेदारी का निर्वहन किया।
श्री भारद्वाज बताते हिं कि 14 नवम्बर 1975 को लोक संघर्ष समिति के आह्वान पर पूरे देश में सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ और फिरोजाबाद में भी पहला जत्था चन्द्र प्रकाश गुप्ता के नेतृत्व में सत्याग्रह के लिये सड़क पर आ गया। इस जत्थे में उनके अलावा दिनकर प्रकाश गुप्ता, नाहर सिंह सिकरवार, सत्यप्रकाश अग्रवाल, उमाश्ंकर गुप्ता और सुरेश चन्द्र सरिता सहित करीब 300 से 400 लोग मौजूद थे। जत्था शहर की मशहूर बौहरान गली से जुलूस के रूप में नारेबाजी करते हुये जैसे ही घण्टाघर की तरफ बढ़ा तो रास्ते में शास्त्री मार्केट में पुलिस ने रोक लिया। पुलिस को देख भगदड़ मच गयी। पुलिस ने मौके से उनके अलावा सात लोगों को गिरफ्तार कर लिया। जवकि अन्य लोग पुलिस के ड़र से भाग गये। उन्होंने बताया कि गिरफ्तारी के बाद भी वह डरे नही उन्होंने पुलिस के सामने ही इंदिरा की जागीर नहीं है हिन्दुस्तान हमारा है, लोकतंत्र बहाल करो और भारत माता की जय जैसे जोशीले नारे लगाये।
उन्होंने बताया कि वह जेल में रहने के दौरान वीर रस के गीतों से जो जोश पैदा होता था वह उसे आज तक नहीं भूले है। प्रशासन ने उनके परिवार पर भी दवाब बनाया लेकिन परिवार घबराया नहीं। वह बताते हैं कि आगरा जेल में उन्होंने लोकतंत्र की बहाली और गिरफ्तार लोगों की रिहाई के लिये लगभग 8 दिन तक भूखे रहकर आमरण अनशन किया। जिससे जेल प्रशासन भी परेशान हो गया और उन्हें उनके साथी दिनकर प्रकाश गुप्ता के साथ एटा जेल भेज दिया गया। लगभग पांच माह से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद अप्रैल 1976 को वह जेल से बाहर आये।
दिनेश भारद्वाज ने बताया कि लोकतंत्र सेनानी का दर्जा उन्हें वर्ष 2006 में तत्कालीन मुलायम सरकार में मिला। जिसे 2012 में अखिलेश सरकार द्वारा कानून बनाकर स्थायी किया गया।
लोकतंत्र सेनानी भारद्वाज का कहना है कि लोकतंत्र सेनानी इस राष्ट्र में लोकतंत्र बचाने के लिये कष्ट और कांटो का जीवन स्वीकार कर आपातकाल में जेल गये थे जिसके कारण आज देश में लोकतंत्र जिंदा है। उनकी मांग है कि बलिदानी लोकतंत्र सेनानियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिया जाये तथा स्वतंत्रता सेनानियों की तरह ही सुविधा मिलनी चाहिये।