ज्ञानवापी केस में कोर्ट ने ख़ारिज की मुस्लिम पक्ष की आपत्तियां, हिंदुओं को सौंपने की मांग पर होगी सुनवाई

अब दो दिसंबर को होगी मामले की अगली सुनवाई

Update: 2022-11-17 14:17 GMT

वाराणसी।  ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने सहित तीन मांगों को लेकर भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान की याचिका पर गुरुवार को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) फास्ट ट्रैक कोर्ट महेंद्र कुमार पांडेय की अदालत में सुनवाई हुई। अदालत ने दाखिल वाद को सुनवाई योग्य माना है। अब इस मुकदमे में अगली सुनवाई दो दिसंबर को होगी। 

अदालत के इस फैसले से प्रतिवादी मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है। इस याचिका पर विगत 15 अक्टूबर को अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई थीं। तभी से आदेश में पत्रावली लंबित थी। इस मामले में वादिनी किरन सिंह की तरफ से उनके अधिवक्ता ने याचिका के जरिये ज्ञानवापी परिसर में मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित करने, परिसर हिंदुओं को सौंपने और शिवलिंग की पूजा-पाठ, राग-भोग की अनुमति मांगी गई थी। विश्व वैदिक सनातन संघ के अधिवक्ता के अनुसार अदालत ने मुस्लिम पक्ष की आपत्ति को खारिज कर दिया है। वादिनी किरन सिंह के अधिवक्ताओं ने अपनी दलील में कहा था कि वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस मुद्दे पर अंजुमन इंतजामिया की तरफ से जो आपत्ति उठाई गई है, वह साक्ष्य एवं ट्रायल का विषय है। ज्ञानवापी का गुंबद छोड़कर सब कुछ मंदिर का है जब ट्रायल होगा तभी पता चलेगा कि वह मस्जिद है या मंदिर।

देवता को अपनी प्रॉपर्टी पाने का मौलिक अधिकार - 

वादी पक्ष के अधिवक्ताओं ने कहा कि दीन मोहम्मद के फैसले में कोई हिंदू पक्षकार उस मुकदमे में नहीं था इसलिए हिंदू पक्ष पर लागू नहीं होता है। यह भी दलील दी कि विशेष धर्म स्थल विधेयक 1991 इस वाद में प्रभावी नहीं है। स्ट्रक्चर का पता नहीं कि मंदिर है या मस्जिद, जिसके ट्रायल का अधिकार सिविल कोर्ट को है। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने और मस्जिद बनवाने का आदेश दिया था। वक्फ एक्ट हिन्दू पक्ष पर लागू नहीं होता है। ऐसे में यह वाद सुनवाई योग्य है और अन्जुमन की तरफ से पोषणीयता के बिंदु पर दिया गया आवेदन खारिज होने योग्य है। इसके अलावा अधिवक्ताओं ने दलीलें रखी थी कि राइट टू प्रॉपर्टी के तहत देवता को अपनी प्रॉपर्टी पाने का मौलिक अधिकार है। ऐसे में नाबालिग होने के कारण वाद मित्र के जरिये यह वाद दाखिल किया गया है।

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