CG News: जिहादियों का शिकार बन रहीं गांव की आदिवासी युवतियां

Update: 2025-03-22 16:45 GMT
जिहादियों का शिकार बन रहीं गांव की आदिवासी युवतियां
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  • साफ हो गई हिंदू आबादी, साईटांगरटोली में सभी ने बदला धर्म
  • गौ तस्करों की पनाहगाह बना गांव

आदित्य त्रिपाठी @ रायपुर। जशपुर जिले के ग्राम साईटांगरटोली यह एक ऐसा गांव है, जहां भोली-भाली आदिवासी युवतियां जिहादियों का शिकार बन रही है। यहां की एसटी युवतियों से मुस्लिम वर्ग के लोग विवाह कर उन्हें अपने समुदाय का बना रहे हैं, लेकिन योजनाओं का लाभ पूरा परिवार एसटी वर्ग से ले रहा है। आज गांव का हर एक शख्स इस्लामिक तौर-तरीकों से जीवन यापन कर रहा हैं। पांच वक्त के नमाजी हैं, लेकिन योजनाओं का लाभ आज भी एसटी वर्ग से ले रहे हैं। चुनाव भी एसटी महिलाएं लड़ती है, लेकिन संचालन मुस्लिम समुदाय के हाथों में है। गांव पूरी तरह से मुस्लिम बाहुल गांव बन गया है।

आज यह गांव गौ तस्करी के लिए कुख्यात है। इस गांव में हिंदू आबादी अब इतिहास हो चुकी है। यदि इस गांव में पुलिस अधीक्षक को छापामार कार्रवाई करनी है तो 125 जवान और एके-47 लेकर घुसना पड़ता है।

अगर आपको डेमोग्राफी में बदलाव देखना है, तो जशपुर जिले का साईटांगरटोली इसका उदाहरण है। पिछले कुछ दशकों में यह गांव धीरे-धीरे मुस्लिम बहुल हो गया है, जबकि यह ग्राम पंचायत चुनावों में जनजातीय समाज के लिए आरक्षित है। साईटांगरटोली गांव में 1970 में जहां जनजातीय समुदाय के 32 घर और मुस्लिम समुदाय के 30 घर थे, वहीं अब यह गांव मुस्लिम बहुल हो चुका है। यहां 1760 मतदाता हैं, जिनमें 90 ईसाई हैं और बाकी सभी मुस्लिम।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि ग्राम पंचायत सीट जनजातीय समाज के लिए आरक्षित होने के बावजूद, चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत का सिलसिला जारी है। यह स्थिति पंचायत राजनीति की गहरी परतों को उजागर करती है, जहां धर्मांतरण और समाज की बदलती संरचनाओं का सीधा असर चुनावी राजनीति पर पड़ रहा है।

एसटी महिलाओं को चुनाव में उतारने बना लिया है परंपरा

साईटांगरटोली में मुस्लिमों ने गांव की एसटी महिलाओं से विवाह कर उन्हें पंचायत चुनावों में उतारने का चलन बना लिया है। 2004 में अहमद ने मार्शेल एक्का से निकाह किया और उसे चुनावी मैदान में उतारकर सरपंच बना दिया। 2009 में बारिस अली की पत्नी सुमंती बाई को सरपंच पद के लिए चुनाव में उतारा गया और वह जीत गईं। 2013 में जब्बार ने अपनी जनजातीय पत्नी प्रवीण कुजूर को सरपंच बना दिया।

इस प्रकार, गांव में मुस्लिम पुरुषों ने जनजातीय समाज की महिलाओं से शादी कर उन्हें पंचायत चुनावों में उतारने का एक परंपरागत तरीका अपनाया है। अब इस गांव में कम से कम छह मुस्लिम परिवारों ने जनजातीय महिलाओं से विवाह कर उन्हें चुनावी मैदान में उतारा है।

नाम हिंदू, लेकिन समुदाय मुस्लिम

वर्तमान सरपंच, दुबराज, जिनका नाम हिंदू है, लेकिन वे मुस्लिम समुदाय से हैं, इस बदलाव के उदाहरण हैं। उनका परिवार जनजातीय समाज से मुस्लिम समाज में धर्मांतरण कर चुका है। दुबराज के पिता, प्रसन्न राम, जिन्होंने नाम बदलकर बारिस अली रख लिया है, खुद को गौड़ जनजातीय समुदाय से मानते हैं और अब पांच वक्त का नमाजी हैं।

5 वक्तकी नमाज वाले भी यहां कागजों पर एसटी

पिछले 25 वर्षों में इस गांव के सरपंच चुनावों में बारिस अली का परिवार हावी रहा है। 1999 में जब यह सीट जनजातीय समाज के लिए आरक्षित हुई, तब से उनके परिवार के सदस्य लगातार सरपंच पद पर काबिज रहे हैं। इस बार भी चुनाव में बारिस अली के परिवार की योजना है कि उनकी पत्नी जयमुनी बाई और बेटी शगुफ्ता पंचायत चुनाव लड़ें।

गौ तस्करी के गढ़ के रूप में बदला गांव

गांव पूरे राज्य में गौ तस्करी के अड्डे के रूप में जाना जाता था, जहां पूरे राज्य से गायों को लाकर बांग्लादेश भेजने का काम होता था। जशपुर के एसपी शशिमोहन सिंह ने इस पर कार्रवाई शुरू की थी और ऑपरेशन शंखनाद की शुरुआत की थी। उन्होंने गांव में पुलिस बल भेजकर गौ तस्करों के खिलाफ सख्त कदम उठाए थे। एसपी ने 125 जवानों के साथ गांव में घेराबंदी की थी और स्वयं एके-47 लेकर ऑपरेशन का नेतृत्व किया था।

इस दौरान 10 गौ तस्करों को गिरफ्तार किया गया था, और 37 मवेशियों और 18 तस्करी के वाहनों को जब्त किया गया था। इसके बाद से गौ तस्करी अब छिपकर होती है, लेकिन पुलिस की कार्रवाई लगातार जारी रहती है। गांव में पुलिस की उपस्थिति को लेकर एक नया माहौल बन चुका है। जनवरी 2024 से लेकर अब तक इस ऑपरेशन के तहत जशपुर पुलिस ने 61 मामले दर्ज किए हैं, 109 आरोपितों की गिरफ्तारी की है और 700 से अधिक गोवंश को तस्करी से बचाया है।

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