भीमा कोरेगांव मामला : गिरफ्तार कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की बढ़ी अवधि, पुणे पुलिस के सबूत देखेगा सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पांच लोगों की गिरफ्तारी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम पुणे पुलिस के सबूत देखेंगे। अगर सबूत बनावटी लगे तो हम केस निरस्त कर देंगे। सोमवार को सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने सबूत देखने का आग्रह किया था। मामले की अगली सुनवाई 19 सितम्बर को होगी। तब तक पांचों आरोपितों को हाउस अरेस्ट (नजरबंद) में रखने का अंतरिम आदेश जारी रहेगा ।
पिछले 12 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई इसलिए टल गई, क्योंकि याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी उपलब्ध नहीं थे। महाराष्ट्र सरकार के वकील ने भी कुछ दस्तावेज जमा कराने की बात कही थी। पिछले छह सितम्बर को भी कोर्ट ने सुनवाई टाल दी थी। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने पुणे पुलिस के असिस्टेंट कमिश्नर को मीडिया में जाने के लिए फटकार लगाई थी। कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस के वकील से कहा था कि असिस्टेंट कमिश्नर से कहिए कि हमने इसे गंभीरता से लिया है।
पांच सितम्बर को महाराष्ट्र सरकार ने हलफनामा दायर कर भीमा कोरेगांव मामले में गौतम नवलखा समेत पांच लोगों को पुलिस हिरासत में भेजने की मांग की थी। महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि ये लोग समाज में हिंसा और अराजकता फैलाने की खतरनाक योजना का हिस्सा हैं। उनकी गिरफ्तारी ठोस सबूतों के आधार पर हुई। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा। फिलहाल पांच लोग हाउस अरेस्ट में हैं ।
महाराष्ट्र पुलिस ने सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सबूत सौंपा है। महाराष्ट्र पुलिस ने आग्रह किया कि उन्हें देख कर कोर्ट फैसला ले। महाराष्ट्र पुलिस ने कहा कि अब तक बरामद लैपटॉप, पेन ड्राइव से मिली सामग्री से साफ है कि ये पांच लोग माओवादी साज़िश का हिस्सा हैं। बड़े पैमाने पर अराजकता फैलाने की कोशिश में जुटे थे ।
पिछले 29 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा था कि विचारों का मतभेद हमारे लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है। अगर इसे खत्म कर दिया जाएगा तो वाल्व फट जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी गिरफ्तार लोगों को राहत देते हुए उन्हें जेल भेजने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि सभी अपने घर में हाउस अरेस्ट रहेंगे। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से छह सितम्बर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था ।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि एफआईआर में गिरफ्तार किये लोगों का नाम तक नहीं है। अगर इस तरह लोगों को गिरफ्तार किया गया तो लोकतंत्र ही खत्म हो जाएगा। तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि इसीलिए हम नोटिस जारी कर रहे हैं। वकील राजीव धवन ने कहा था कि उनमें से कुछ लोगों ने हमारा सहयोग किया है। हमने उनकी फंडिंग की है। अगर उन्हें गिरफ्तार किया गया तो उसके बाद कल हमारी भी गिरफ्तारी होगी। वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि उसके बाद हमारी भी गिरफ्तारी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों के खिलाफ क्या आरोप हैं। इस पर अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हां।
एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि अभियुक्तों में से कुछ पहले जेल में रहे हैं। तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वे प्रोफेसर हैं। उनका कहना है कि उनका विरोध दबाया जा रहा है।
जिन लोगों को गिरफ्तार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अपने घर में नजरबंद किया गया है उनमें गौतम नवलखा, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरिया और वरनोन गोंजालवेस हैं ।
भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में एफआईआर दर्ज करानेवाले तुषार डामगुडे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपने को मुख्य केस में पक्षकार बनाने की मांग की है।