सरहद से लौटे नरवणे, बनी चीन से निपटने की रणनीति

  • चीन ने लैप्सांग इलाके में सैनिकों, टैंक और हैवी मिलिट्री वाहन की तैनाती बढ़ाई
  • पैन्गोंग झील के फिंगर-4 क्षेत्र में अभी भी तनातनी बरकरार

Update: 2020-06-25 14:18 GMT
गलवान घाटी के विवादित क्षेत्र से चीन ​​को एक किमी. पीछे धके​ला गया

नई दिल्ली​। ​​​सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद ​​​​​​नरवणे दो दिन तक पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर रहकर भारतीय सेना की तैयारियों का जायजा लेने के बाद गुरुवार को दोपहर में वापस दिल्ली लौटे​। ​उन्होंने ​भारतीय सीमा में चीन ​का अतिक्रमण रोकने के मुद्दे पर रणनीति तैयार की है।​ गलवान घाटी के विवादित क्षेत्र से चीन को पीछे धकेल दिया गया है ​लेकिन पैन्गोंग झील पर अभी भी तनातनी बरकरार है। सेना प्रमुख ​आज शाम को रक्षा मंत्रालय, सीडीएस और एनएसए को एलएसी पर भारतीय सेना की तैयारियों के बारे में जानकारी देंगे। ​

​सेना प्रमुख ​​नरवणे​ ने बुधवार को​ पूर्वी लद्दाख में अग्रिम चौकियों का दौरा ​करके जमीन पर सेना की तैनाती की समीक्षा की। उन्होंने ​​​​चीन के साथ दो दौर की वार्ता करने वाले 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह से अब तक हुई प्रगति के बारे में जानकारी ली​​।​​ पैन्गोंग झील ​का फिंगर-4 क्षेत्र और गलवान में पेट्रोलिंग प्वाइंट-14 ​सबसे संवेदनशील माने जा रहे हैं, इसलिए सबसे ज्यादा यहीं पर फोकस किया जा रहा है​।​ इन्हीं दोनों जगहों पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं, इसलिए यहां का मसला सुलझने के बाद ही दोनों सेनाओं की वापसी संभव है। ​हालांकि चीनी सैनिक गलवान घाटी ​की ​पेट्रोलिंग प्वाइंट​-​14​ ​पर ​खूनी ​झड़प वाली जगह से​ सिर्फ एक किलोमीटर पीछे हट गए हैं​ और चीन के सैनिकों की संख्या में कमी देखी गई है​ लेकिन ​​अभी ​भी तनावपूर्ण स्थिति है क्योंकि चीन ने अपनी वह चौकी फिर स्थापित कर ली है जिसे भारतीय सैनिकों ने उखाड़ फेंका था और 20 जवानों ने शहादत दी थी।

सेना प्रमुख​ के दो दिवसीय दौरे के समय ​यह बात भी सामने आई कि चीन ने लैप्सांग इलाके में सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी है। यहां टैंक और हैवी मिलिट्री वाहन भी लाये गए हैं। यह चीन का जमीनी क्षेत्र है और भारत के दौलतबेग ओल्डी (डीबीओ) एयर स्ट्रिप के पास है जहां से काराकोरम 30 किमी है। 2013 में भी यहां दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आये थे, तब चीन ने भारतीय इलाके में टेंट लगा लिए थे। दोनों देशों के बीच यह गतिरोध तीन हफ्ते तक चला था।भारत के लिए लैप्सांग इसलिए महत्वपूर्ण जगह है क्योंकि हमारी सेना ​दौलतबेग ओल्डी​​, काराकोरम​ और ​गलवान में है।​ ​

लैप्सांग का यह इलाका काराकोरम और दौलतबेग ओल्डी की ओर जाता है। यहीं से गुजरने वाले ​​जी-219 ​​हा​ई-वे ​से महज 50 किमी की दूरी पर ​अक्साई चीन है। इसी हा​ई-वे से 6-7 फीडर रोड निकलती हैं जो काराकोरम, देंचोक, लैप्सांग, डीबीओ, गलवान, पेंगांग त्सो की तरफ जाती हैं। यह सभी इलाके ​हा​ई-वे ​​​जी-219​ से ​महज ​125​ से ​175 किमी की दूरी पर पड़ते हैं। यहां से नार्थ-साउथ इलाका करीब 10 किमी है। कुल मिलाकर यह एक ऐसी जगह है जहां चीन हर तरफ अपनी नजर रख सकता है। ​चीन को अपने जमीनी क्षेत्र लैप्सांग से इन पहाड़ी इलाकों में आने में दिक्कत होती है इसलिए यहां चीन ​को भारत के साथ भिड़ने में आसानी होगी।

​​भारत की एडवांस लैंडिंग ग्राउंड दौलत बेग गोल्डी में है​​। पेट्रोलिंग प्वाइंट 11, 12, 13 एलएसी के साथ-साथ हैं जहां से चीन करीब 10-12 किमी पीछे है। इसीलिए ​भारत ज्यादा ठीक तरह से एलएसी की निगरानी कर ​पाता है​​​।​ भारत ने पेट्रोलिंग 13 तक सड़कें बना ली हैं, इसलिए भारतीय सैनिकों को वहां तक पहुंचने में 6 घंटे लगते हैं जबकि पहले 6 दिन लगते हैं। चीन को अब यही परेशानी है कि पहले भारत पेट्रोलिंग के लिए 6-6 दिन बाद आता है और अब चंद घंटों में ही पहुंच जाता है क्योंकि चीन एलएसी से करीब 10-12 किमी पीछे है​।​​ सेना प्रमुख ने भारत की अग्रिम चौकियों का दौरा करके खुद सेना की तैनाती देखी और कमांडर से वार्ता करके हालातों को समझा​।​ इसके बाद उन्होंने आकाश के साथ-साथ समुद्र में भी अपनाए जाने वाले उपायों पर वायु सेना प्रमुख और नौसेना प्रमुखों के साथ चर्चा की। थल सेनाध्यक्ष जनरल ​​एमएम ​ ​नरवणे ​दिल्ली लौटकर ​​आज शाम रक्षा मंत्रालय,​ सैन्य बलों के प्रमुख (सीडीएस​) विपिन रावत और ​राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए​)​ अजीत डोभाल को एलएसी ​पर भारतीय सेना की तैयारियों के बारे में जानकारी देंगे।

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