वेबडेस्क। जब एक बिटकॉइन की कीमत लाखों रुपयों तक पहुँच गई तो आप-हम जैसे आम लोगों के मन में भी क्रिप्टोकरेन्सी के बारे में दिलचस्पी पैदा हो गई। आखिर ऐसा क्या है इस मुद्रा में जो मुद्रा है ही नहीं लेकिन उसकी कीमत लाखों में है? सवाल जायज है। लेकिन इसका उत्तर पाने से पहले उस मूलभूत अवधारणा को समझना होगा, जिसने क्रिप्टोकरेन्सी को संभव बनाया। और वह मूलभूत अवधारणा है- ब्लॉकचेन।
ब्लॉकचेन सूचनाओं को सुरक्षित और प्रामाणिक बनाए रखने का ठोस जरिया बनकर उभरी है। वास्तव में इसकी उपयोगिता धन के लेनदेन या इस लेनदेन की सूचनाओं को सहेजने तथा साझा करने तक सीमित नहीं है। वह जीवन के हर उस क्षेत्र में भूमिका निभा सकती है जिसमें सूचनाओं या डेटा की कोई अहमियत है। मिसाल के तौर पर सुरक्षित पहुँच, पहचान का प्रमाणन, गोपनीयता, शिक्षा, मीडिया, वित्तीय सेवाएँ, संपत्तियों का लेनदेन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, रोजगार, सरकारी सेवाएँ आदि आदि।
सैद्धांतिक रूप से ब्लॉकचेन एक सार्वजनिक (डिजिटल) खाताबही (लेजर) है जो अनगिनत लेनदेन का समय-वार क्रम में लेखाजोखा रखती है। कल्पना कीजिए कि इस खाताबही की प्रतियाँ सैंकड़ों हजारों लोगों के पास मौजूद हैं और वे सभी लोग अलग-अलग स्थानों पर रहते हैं। एक ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि ये खाताबहियाँ हमेशा एक दूसरे की सत्य प्रतिलिपि बनी रहती हैं। किसी एक खाताबही में कोई नई टिप्पणी हुई तो तमाम दूसरी खाताबहियाँ भी अपडेट हो गईं। आप कहेंगे कि ऐसा कैसे संभव है। पुरानी खाताबहियों के साथ तो ऐसा संभव नहीं है लेकिन डिजिटल दुनिया में यह संभव है। कल्पना कीजिए कि ये खाताबहियाँ असल में कंप्यूटरों में रखी हुई फाइलें हैं और तमाम कंप्यूटर इंटरनेट के जरिए जुड़े हुए हैं। तब तो ऐसा संभव हो जाएगा ना कि एक दूसरे से अलग रखी हुई तमाम फाइलें हमेशा अपडेट होती रहें। ज्यादा से ज्यादा हमें एक सॉफ्टवेयर की ज़रूरत होगी जो उन सबकोअपडेट करता रहे।
ब्लॉकचेन में इसी परिकल्पना को साकार किया गया है। जैसा कि नाम से ही जाहिर है, यह सूचनाओं के ब्लॉक्स (समूहों) की एक श्रृंखला (चेन) है जिसकी प्रतियाँ अनगिनत स्थानों पर सहेजी जाती हैं। मतलब दुनिया भर में फैले ऐसे अनगिनत लोगों के कंप्यूटरों पर, जो ब्लॉकचेन की इस विश्व-स्तरीय प्रणाली में प्रतिभागिता करते हैं। ये आपके और हमारे जैसे ही लोग हैं। उनमें से कुछ तकनीकी पृष्ठभूमि रखते हैं तो कुछ जीवन के दूसरे हिस्सों से आते हैं। लेकिन बस इतना समझ लीजिए कि उन्होंने अपने कंप्यूटरों का एक हिस्सा इस काम के लिए दे रखा है। ब्लॉकचेन की वैश्विक व्यवस्था के तहत उनके कंप्यूटरों को एक्सेस किया जाता है और उनमें रखी हुई सूचनाएँ लगातार अपडेट होती रहती हैं।
आप कुछ भ्रमित हो रहे होंगे कि भला सूचनाओं को अनगिनत स्थानों पर सहेजने की भला क्या ज़रूरत पड़ गई? बड़े से बड़े बैंक भी अपनी सूचनाओं को केंद्रीय डेटाबेस में स्टोर करते हैं और वह तमाम शाखाओं को उपलब्ध हो जाती हैं। तो यहाँ पर इतनी जटिल व्यवस्था की क्या आवश्यकता पड़ी?
इस बात का जवाब यह है कि ब्लॉकचेन पुराने तौरतरीकों को ध्वस्त करने के लिए ही बनी है। यह पुरानी कार्यप्रणालियों का विकल्प है और बैंकिंग की व्यवस्था पर संस्थागत एकाधिकार को चुनौती देती है। अब तक हम अपना लेनदेन वित्तीय संस्थानों के जरिए करते आए हैं। लेकिन अब उसी तरह का लेनदेन ब्लॉकचेन के जरिए भी किया जा सकता है, जिसमें न तो बैंकों की कोई भूमिका है, न सरकारों की और न ही लेनदेन की प्रक्रिया में कोई शुल्क चुकाने की ज़रूरत है। पारंपरिक बैंकिंग प्रणालियों के लिए यह खतरे की घंटी हो सकती है। हालाँकि इसकी विशेषताएँ ऐसी हैं कि बहुत सारे बैंक खुद ब्लॉकचेन की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
आइए, वित्तीय लेनदेन की वर्तमान व्यवस्था के साथ इसकी तुलना करके देखते हैं। आज के समय में, नकद लेनदेन के अतिरिक्त, जब आप किसी व्यक्ति को पैसा भेजते हैं या किसी से पैसा मंगवाते हैं तो बीच में बैंक की भूमिका होती है। और वह भूमिका मूल रूप से यह है कि बैंक इस बात का हिसाब रखता है कि किन व्यक्तियों के बीच, कब और कैसा लेनदेन हुआ। बैंक यहाँ पर सारी प्रक्रिया को संपन्न करवाने के साथ-साथ एक गारंटर या प्रमाणनकर्ता की भूमिका भी निभाता है। यदि यही काम बैंकों को बीच में लाए बिना ही होने लगे तो?ब्लॉकचेन में यही होता है। दो लोगों के बीच डिजिटलकरेन्सी में लेनदेन होता है और उसका ब्योरा दुनिया भर में फैले हुए लोगों के कंप्यूटरों में सुरक्षित रखा जाता है। लेनदेन की सूचना के साथ-साथ उसके घटित होने के समय, स्थान तथा दूसरे विवरण भी टाइमस्टांप के रूप में इन सभी स्थानों पर मौजूद रहते हैं। तो बस, अब बैंकों की ज़रूरत कहाँ पड़ी? लोगों ने आपस में ही लेनदेन कर लिया और बात खत्म। एक विकल्प मौजूद है जो इस बात की तस्दीक करता है कि कब, कैसे और कितना लेनदेन हुआ।
तुरंत एक सवाल हमारे मन में कौंधता है कि इसकी क्या गारंटी है? लेने वाला मुकर जाए या फिर देने वाला धनराशि लेकर मुकर जाए तो फिर क्या होगा? या फिर जिन कंप्यूटरों पर यह जानकारी सहेजी गई है उन्हें कोई हैक कर ले तो क्या होगा?
इस सवाल का जवाब ब्लॉकचेन की अवधारणा में ही निहित है। कोई भी व्यक्ति मुकर नहीं सकता क्योंकि जानकारी अनगिनत कंप्यूटरों में टाइम स्टांप के साथ दर्ज है। सूचनाओं की सुरक्षा की भी पुख्ता गारंटी है क्योंकि कोई हैकर दो-चार या दस-बीस कंप्यूटरों को तो हैक कर सकता है, ब्लॉकचेन का हिस्सा बने लाखों कंप्यूटरों को हैक नहीं कर सकता। अगर किसी कंप्यूटर में रखी सूचनाएँ खतरे में हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि लाखों दूसरे कंप्यूटरों में मौजूद सूचनाएँ सुरक्षित हैं जिनसे उस लेनदेन की तस्दीक होती है।
हालाँकि यह उदाहरण वित्तीय लेनदेन से संबंधित है लेकिन जैसा कि मैंने पहले जिक्र किया है, यह प्रणाली किसी भी तरह की सूचनाओं के संबंध में प्रासंगिक है।
ब्लॉकचेन के कुछ बुनियादी गुण हैं, जैसे सूचनाओं को एनक्रिप्ट (कूट संकेतों में बदलकर) करके सहेजा जाना, उनके साथ छेड़छाड़ का असंभव हो जाना, प्रामाणिक परिस्थितियों में डेटा की निर्बाध उपलब्धता, पारदर्शिता, उनकी पुष्टि किए जाने की व्यवस्था आदि। यह पियरटुपियर नेटवर्क का प्रयोग करती है, यानी कि खुद प्रयोक्ताओं (यूज़र्स) के कंप्यूटरों का और किसी केंद्रीय सर्वर पर आधारित नहीं है। ऐसे में किसी एक सर्वर, किसी एक कंपनी, किसी एक इमारत, किसी एक शहर, किसी एक राज्य और यहाँ तक कि किसी एक देश में डेटा के नष्ट हो जाने की स्थिति में भी सूचनाएँ नष्ट नहीं होतीं।
ब्लॉकचेन तकनीक का आविष्कार 2008 में सातोशीनाकामोतो नामक शख़्स ने किया था जिसकी पहचान आज तक गोपनीय है। बहुत संभव है कि यह एक छद्म नाम हो। सातोशी ने बिटकॉइन नामक डिजिटलक्रिप्टोकरेंसी के लेनदेन की व्यवस्था के रूप में ब्लॉकचेन का विकास किया था। बिटकॉइन दुनिया की पहली डिजिटलकरेंसी बनी जो किसी भी रूप में बैंकिंग प्रणाली पर निर्भर नहीं थी। इसमें न तो रिज़र्व बैंक जैसे किसी नियामक संस्थान की ही कोई भूमिका थी और न ही बैंकों की। न इसमें किसी क्रेडिट या डेबिट कार्ड की ज़रूरत थी और न ही एटीएम या पारंपरिक डिजिटल भुगतान प्रणालियों की।ब्लॉकचेन और क्रिप्टोकरेन्सी की अवधारणा को अगले अंक में हम और गहराई से समझने की कोशिश करेंगे।
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