फिल्मों में हिन्दू प्रतीकों का मजाक बनाने से आहत हूँ, ये अनुचित है : पुनीत इस्सर

Update: 2020-12-18 12:03 GMT

मंसूरी। महाराष्ट्र के पालघर में साधुओं के नरसंहार पर केंद्रित 'संघर्ष द मेसेकर' फिल्म के परियोजना प्रमुख अभिनेता पुनीत इस्सर फिल्मों में हिंदू प्रतीकों के मजाक उड़ाने से आहत हैं। वह मानते हैं कि ऐसा करना अनुचित है। उन्होंने शुक्रवार को यहां दून प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में इस पर अपना दृष्टिकोण रखा। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं है। ऐसा किसी अन्य धर्म के साथ नहीं होता। केवल हिंदू धर्म के देवी-देवताओं को ही विकृति का शिकार बनाया जाता है। अभिनेता इस्सर का कहना है कि इसका विरोध आम आदमी को करना चाहिए।

इस्सर कश्मीरी पंडितों के 1990 के हालातों पर केंद्रित फिल्म के संदर्भ में मसूरी आए हैं। उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर फिल्मों के संदर्भ में चर्चा की है। इस फिल्म के निर्माता विवेक अग्निहोत्री हैं। वह मसूरी में इस फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं। इस फिल्म में इस्सर पुलिस कमिश्नर की भूमिका में हैं।उन्होंने कहा कि पालघर में 70 और 40 साल के दो संतों को जिस ढंग से मारा गया वह रोंगटे खड़ा कर देने वाला है। उनके बेटे सिद्धांत इस्सर ने इस वारदात के ताने-बाने पर फिल्म बनाने की योजना बनाई। उसे उन्होंने मूर्त रूप दिया है।

 'संघर्ष द मेसेकर'  व्यवसायिक फिल्म -

उन्होंने बताया कि 'संघर्ष द मेसेकर' में उनके अलावा गूफी पेंटल, सत्यजीत पुरी, प्रमोद कुमार, रिद्धिमा राकेश बेदी, विजेता भारद्वाज, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, सागर सालुंके और सिद्धांत इस्सर प्रमुख भूमिका में हैं। गीतों की रचना नरेश कात्यायन की है। निर्माताओं में उनके अलावा रामकुमार पाल, मोहित गहलोत और पीयूष गहलोत हैं। लगभग 48 मिनट की 'संघर्ष द मेसेकर' पूरी तरह व्यवसायिक फिल्म है। उन्होंने कहा कि इस फिल्म में गोहत्या पर भी आवाज उठाई गई है।

साधु-संत सच्चे समाज सुधारक-

पुनीत इस्सर मानते हैं कि लंबे अर्से से सिनेमा में हिंदू साधु-संतों को विकृत रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। ठीक इसके विपरीत अन्य पंथों ( मुस्लिम, ईसाई और सिख) को दयावान, अच्छा और कर्तव्य परायण दिखाया जाता है। पुनीत इस्सर ने कहा कि फिल्मों में हिंदू धर्म के मजाक का वह हर मंच पर विरोध करेंगे। 'संघर्ष द मेसेकर' में सनातन धर्म को वास्तविक रूप से दिखाया गया है। साधु-संत सच्चे समाज सुधारक होते हैं। उनका अपमान नहीं होना चाहिए। देश की जनता को उसका विरोध करना चाहिए। 

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