भोपालए विशेष संवाददाता। मध्यप्रदेश शासन के दर्जनों विभागों में आयुक्त की कुर्सी सरकार द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को सौंपी जाती है। परिवहन आयुक्त का ही एक मात्र पद ऐसा है, जहां विगत ढाई दशक से भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों की पदस्थापना हो रही है। भारतीय पुलिस सेवा के अतिरिक्त महानिदेशक ही नहीं, महानिदेशक स्तर के अधिकारी भी इस कुर्सी के लिए निरंतर जोर आजमाइश करते रहे हैं। क्यों करते है, यह कल जारी हुए वीडियो से पुन: स्पष्ट हुआ है। लेकिन इस बार इस कुर्सी पर फिर से आईएएस अधिकारी की पदस्थापना की आहट सुनाई दे रही है। चर्चा है कि विभागीय मंत्री की अनुशंसा पर सरकार इस पर विचार कर रही है।
भारतीय पुलिस सेवा के एडीजी रेंक के अधिकारी वी. मधुकुमार को परिवहन आयुक्त के पद से हटाने से पूर्व जिस तरह का घटनाक्रम सामने आया है, उसके बाद से विभाग में चर्चा है कि ढाई दशक के बाद एक बार फिर इस बार परिवहन आयुक्त की कुर्सी पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की पदस्थापना हो सकती है। इस चर्चा को इसलिए भी बल मिला है क्योंकि सरकार ने मधुकुमार को मुख्यालय अटेच तो कर दिया, लेकिन देर रात तक उनके स्थान पर किसी अन्य आईपीएस अधिकारी की पदस्थापना नहीं की गई। सूत्र बताते हैं कि राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के समर्थन से मप्र में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से ही ग्वालियर 'महल' के करीबी आईएएस अधिकारी परिवहन आयुक्त की कुर्सी के लिए प्रयासरत हैं । इनमें से एक के साथ 'महल' का दिल्ली कनेक्शन भी काम कर रहा है। जाहिर है यह मुख्यमंत्री के लिए भी आसान निर्णय नहीं होगा, कारण परम्परा अनुसार परिवहन आयुक्त का पद सामान्यत: शासन के शीर्ष से भी जुड़ा रहता है।
कुर्सी की इस उठापटक के बीच परिवहन विभाग में हर स्तर पर काली कमाई का खेल नया या किसी से छुपा नहीं है। चर्चा यह भी है कि वीडियो कांड के बाद इस कुर्सी पर अगर आईएएस अधिकारी पदस्थ होता है तो आईएएस और आईपीएस लॉबी के बीच तनाव बढऩा तय है, जो निकट भविष्य में दोनों ही संवर्ग के अधिकारियों के इस तरह के और भी कई वीडियो/ऑडियो वायरल करा सकता है।
जांच से पहले दावे क्यों ?
परिवहन आयुक्त के वीडियो को जिस भी व्यक्ति ने पहली बार सोशल मीडिया वॉट्सअप ग्रुपों पर वायरल किया है, उसने वीडियो से संबंधित विवरण भी प्रस्तुत किया है। वायरलकर्ता ने वीडियो को वर्ष 2016 का वी. मधुकुमार के उज्जैन पुलिस महानिरीक्षक कार्यकाल का बताया है। इसकी वास्तविकता क्या है यह तो वीडियो की विशेषज्ञ जांच में ही सामने आ सकेगा, लेकिन पटकथा को बेहद चतुराई से इस तरह मोड़ा गया है कि परिवहन आयुक्त पद के लिए लालयित बैठे अधिकारी और मधुकुमार को इस पद से हटाने के लिए जोर लगा रहे बाबू, अधिकारी और मंत्री तक पूरी तरह बच निकलें। वायरल वीडियो और इस घटनाक्रम की जांच के बिना ही स्वयं परिवहन मंत्री गोविंद राजपूत ने यह साफ कर दिया कि वीडियो चार साल पुराना है। वीडियो में कहीं भी यह प्रदर्शित नहीं हो रहा कि वीडियो पुराना है अथवा हाल का। सवाल उठता है कि क्या कोई पुलिस महानिरीक्षक स्तर का अधिकारी पुलिस निरीक्षक अर्थात थाना प्रभारियों को रेस्टहाऊस के बाहर पंक्तिबद्ध कर इस तरह लिफाफों में रिश्वत ले सकता है। हां लेकिन परिवहन चैक पोस्टों पर पदस्थ आरटीआई परिवहन आयुक्त के सीधे संपर्क में जरूर रहते हैं। तात्पर्य अभी तत्काल किसी भी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगा। अगर विभागीय मंत्री इस वीडियो को दिसम्बर 2018 के बाद का मान लेते हैं तो निश्चित ही वे खुद घेरे में आ जाएंगे। वह भी ऐसी स्थिति में जब 26 सीटों पर उप चुनाव हैं और परिवहन मंत्री गोविंद राजपूत को भी चुनाव मैदान में उतरना है। जांच में अगर यह वीडियो विगत डेढ़ वर्ष की अवधि का निकलता है और भ्रष्टाचार साबित होता है, तो विभागीय मंत्री के रूप में भ्रष्टाचार के छींटे उन तक भी पहुंच जाएंगे, क्योंकि दिसम्बर 2018 से मार्च 2020 तक वही विभाग के मंत्री रहे और 12 जुलाई 2020 के बाद से फिर से वह विभाग के मंत्री बन गए हैं। संभव यह भी है कि 'लाठी भी टूट जाए और सांप भी न मरे' वाली कहावत को चरितार्थ करने के लिए भी इस वीडियो को चार साल पुराना प्रचारित किया जा रहा हो। क्योंकि इस वीडियो के उजागर होने के बाद मधुकुमार को परिवहन आयुक्त पद से हटाकर पुलिस मुख्यालय अटैच कर दिया गया और विभाग में अन्य किसी पर उंगली भी नहीं उठी। साथ ही यह महत्वपूर्ण सीट उस व्यक्ति के लिए रिक्त भी हो गई, जो इस कुर्सी। पर आसीन होने के लिए हर स्तर पर प्रयासरत हैं।
मंत्री ने मांगा पदस्थापनाओं का विवरण
परिवहन आयुक्त का वीडियो वायरल होने के बाद मुख्यमंत्री ने वी. मधुकुमार को मुख्यालय अटेच कर मामले की जांच के आदेश दे दिए। वहीं परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत भी विभागीय स्तर पर सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने विभाग से 1 अप्रेल 2020 के बाद से 18 जुलाई 2020 तक हुए परिवहन निरीक्षकों, उप निरीक्षकों, सहायक उप निरीक्षकों, प्रधान आरक्षकों तथा आरक्षकों के जारी पदस्थापना आदेशों के संबंध में स्थापना बोर्ड की अनुशंसा/अनुमोदन की मूल नस्ती व आदेशों की प्रति तथा क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों एवं सहायक क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों के संबंध में जारी स्थानांतरण/ संलग्नीकरण आदेशों के अनुमोदन की मूल नस्ती व आदेशों की प्रति तत्काल अवलोकन के लिए मांग ली है। मंत्री ने विभाग को यह पत्र शनिवार 18 जुलाई की रात्रि में ही भेज दिया था। परिवहन मंत्री को आशंका है कि उनके मंत्री पद से हटने के बाद परिवहन आयुक्त एवं अन्य अधिकारियों ने पदस्थानाएं और स्थानांतरण स्थापना बोर्ड की अनुशंसा/अनुमोदन के बिना ही तो नहीं कर लिया। सूत्र बताते हैं कि अनियमितता निकालकर मंत्री इस मामले को लोकायुक्त में सौंपना चाहते हैं।