स्वदेश खुलासा: भोपाल से 24 घंटे में कैसे गायब हो गए हज़ारों भिखारी, क्या हैं पुनर्वास केंद्र का झूठ?
गुरजीत कौर और दीक्षा मेहरा की रिपोर्ट : मध्य प्रदेश। एक शहर से कई लोग गायब हैं। इन लोगों की संख्या 200 से 300 या हजार भी हो सकती है। बात भोपाल शहर की हो रही है और जो लोग गायब हैं उनकी पहचान 'भीख मांगने वाले' लोगों के रूप में होती है। बीते 24 घंटे से भोपाल शहर से भिखारी गायब हैं। कलेक्टर की आदेशों की मानें तो इस समय इन्हें पुनर्वास केंद्र में होना था लेकिन...सच्चाई बेहद चौंकाने वाली तो है ही साथ ही साथ कड़वी भी है। स्वदेश की पड़ताल में पुनर्वास केंद्र का झूठ या यूं कहें की वास्तविकता सामने आ गई है।
भोपाल की सड़कों से भिखारी गायब हो गए हैं। चौराहों, सिग्नल और धार्मिक स्थानों पर भिक्षावृत्ति करने वाले अब कहां हैं यह बात कोई नहीं जनता। प्रशासन ने आदेश जारी कर इंदौर की तरह भोपाल को भी भिखारी मुक्त बनाने का निर्णय किया है। यह कदम बेहद सराहनीय है लेकिन इस निर्णय की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि, ग्राउंड जीरो पर जिम्मेदार अधिकारी इसे किस तरह लागू करते हैं। जब स्वदेश की टीम ग्राउंड जीरो पर उतरी तो वास्तविकता हैरान करने वाली थी। आखिर भोपाल के भिखारियों के साथ क्या हुआ, वे किस हाल में हैं और कहां हैं...सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए हमारी टीम द्वारा की गई ग्राउंड रिपोर्ट।
अक्सर भोपाल के प्रमुख चौराहों जैसे एमपी नगर में ज्योति सिनीप्लेक्स, बोर्ड ऑफिस, अरेरा कॉलोनी और लाल घाटी चौराहा समेत शहपुरा, लेक व्यू और अन्य प्रमुख स्थानों पर भिक्षावत्ति करती महिलाएं और बच्चे देखे जा सकते थे। 3 फरवरी से स्थिति बदल गई है। इंदौर से शुरू हुई पहल के चलते भोपाल कलेक्टर ने इसी तारीख को अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए भीख मांगने और देने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।
इस आदेश के बाद 4 फरवरी से भिखारियों को भीख मांगते नहीं देखा गया है। 5 फरवरी को भी कोई भोपाल में भीख मांगता या देता हुआ नहीं पाया गया। विचित्र बात यह है कि, राजधानी भोपाल में कई भिखारी थे। एक रिपोर्ट के अनुसार इनकी संख्या 200 से 300 है। हालांकि वास्तविक संख्या हजार हो सकती है। इनमें से कई भिखारी भोपाल से बाहर के भी थे।
4 फरवरी को भी कलेक्टर ने एक आदेश जारी किया था। इस आदेश में इस बार अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई और भिखारियों के रिहेबिलिटेशन के लिए जगह भी सुनिश्चित की गई। कलेक्टर के ही इस आदेश में कहा गया कि, सभी भिखारियों को चिन्हित कर पुलिस को सूचना दी जाए और इन्हें आश्रय स्थल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोलार में शिफ्ट किया जाए।
स्वदेश की टीम इस आश्रय स्थल तक पहुंची। यहां हमने क्या देखा उसे डीटेल में पढ़िए।
जिला प्रशासन द्वारा भिखारियों के लिए बनाए गए आश्रय स्थल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोलार में जब स्वदेश की टीम पहुंची तो वहां का नजारा कुछ और ही था। यहां पुनर्वास केंद्र का झूठ सामने आया।
आश्रय स्थल पर कुल पांच लोग मौजूद थे। जिसमें से तीन बुजुर्ग और दो युवा थे। इन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि, वे भिखारी हैं। जब इनसे पूछा गया कि, वे लोग यहां क्या कर रहे हैं और इनको यहां लेकर कौन आया तो इस पर एक बुजुर्ग ने उत्तर दिया कि, उन्हें यहां किसी अधिकारी द्वारा लगाया है। उसी अधिकारी ने उन्हें यहां रहने के लिए कहा था। मूलरूप से वे ज्योतिबा फुले आश्रम से हैं और वहां से ही इन्हें बुधवार (5 फरवरी) को कोलार के आश्रय स्थल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में निगरानी कौन कर रहा ?
बुजुर्ग ने बताया कि, आश्रय स्थल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की देखरेख संगीता नेलोर नाम की द्वारा की जा रही थी। संगीता नाम की महिला की देख - रेख में इन पांच व्यक्तियों को आश्रय स्थल में छोड़ा गया था। हालांकि स्वदेश की टीम को ऐसी कोई महिला नहीं मिली। बुजुर्ग ने बताया कि, मैडम कुछ देर पहले ही वहां से चली गईं। बुजुर्ग ने यह भी बताया कि, मैडम ज्योतिबा फुले आश्रम में काम करती हैं और हमें आज सुबह ही वहां से लेकर आई हैं।
भिखारियों के लिए दो कमरों में बनाए 30 बेड :
जिला प्रशासन ने भोपाल को भिखारी मुक्त बनाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर पर तो मेहनत की है। प्रशासन द्वारा भिखारियों को रोड और सिग्नल से हटाने के लिए कोलार के आश्रय स्थल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तीन बड़े-बड़े हॉल में तीस बेड लगवाए गए हैं। इन कमरों में बाकायदा साफ-सफाई, नए- पंखे लगे हैं। लोहे के पलंग पर कम्बल, तकिया की भी व्यवस्था है। यहां सब कुछ था बस वो लोग नहीं थे जिनके लिए इतनी व्यवस्था की गई।
बुजुर्ग ने स्वदेश की टीम को बताया कि, उनके आश्रय स्थल पर सिवाय पीने के पानी कुछ भी मौजूद नहीं था। बुजुर्ग ने बताया कि, उन्होंने दोपहर को सरकार द्वारा चलाए जा रहे अन्नपूर्णा योजना के तहत पांच रुपए में दिए जाने वाले भोजन से अपना पेट भरा है। हालांकि उन्होंने बताया कि, वे लोग गुरूवार को अपना सारा सामान लेकर यहीं शिफ्ट होंगे। उनका कहना है कि, उनके अलावा और भी लोग यहां आने वाले हैं जो आश्रम के हैं।
जब आश्रय में रुके लोगों को बताया गया कि, यह भिखारियों के रहने के लिए बनाया गया है तो बुजुर्ग ने झल्लाते हुए कहा कि, हम आपको भिखारी दिख रहे हैं क्या ...। हम भीख नहीं मांगते।हम नाती - पोते वाले लोग है। बस बेटे बहु से बनती नहीं है इसलिए यहां रह रहे हैं।
दूसरे युवा ने भीख मांगने वाले सवाल पर कहा कि, मैं बैंगलोर में जॉब करता था, अभी भोपाल आया हूँ...और जोर देते हुए कहा कि, मैं भिखारी नहीं हूँ.. नहीं हूँ... नहीं हूँ। हमें आज ही यहां लाया गया है। हम यहां कब तक रहेंगे यह नहीं पता लेकिन आज तो हम यहीं रुकेंगे। हमें नहीं बताया गया था कि, यह भिखारियों के लिए बनाया गया है। हमें बस यहां रहने के लिए लेकर आया गया है।
रेन बसेरों में भी नहीं भिखारी
इसके बाद स्वदेश की टीम भिखारियों के ठिकाने का पता लगाने के लिए दूसरी जगहों पर सरकार द्वारा बनाए गए रेन बसेरों पर पहुंची। यहां जाकर पता चला कि, रैन बसेरों की स्थिति तो अच्छी है लेकिन यहां सिग्नल और चौराहों पर भीख मांगने वाले भिखारियों को नहीं लगाया गया है। इनमें एमपी नगर, कोलार और ISBT के यहां बने रेन बसेरा शामिल है। ISBT रेन बसेरा की इंचार्ज ने बताया कि, यहां हम फुटपाथ पर सो रहे लोगों को लेकर आते हैं। यहां कोई भी कभी भी आ सकता है कोई रोक-टोक नहीं हैं। उन्होंने बताया कि, कई लोग रात में सोने आते हैं और सुबह लौट जाते हैं। वो कहां जाते हैं इसका कोई रिकॉर्ड हमारे पास नहीं होता।
10 नंबर पर भीख मांगना जारी
कलेक्टर के आदेश के बाद भी भोपाल स्थित दस नंबर मार्केट में भीख मांगना अभी भी जारी है। एक्का-दुक्का भिखारी अभी भी आते-जाते लोगों से अपना सामान लेने या पैसे मांग रहे हैं। हालांकि नागरिकों द्वारा भिखारियों को भीख नहीं दी जा रही। नागरिक भिखारियों से कह रहे हैं कि, भोपाल में भीख मांगना और भीख देना बंद हो गया है।
भिखारियों की संख्या पर संदेह
भोपाल में भिखारियों की संख्या पर भी संदेह बना हुआ है, दरअसल, भोपाल में कुल भिखारियों की संख्या 230 बताई गई है, जिनमें 114 भिखारी केवल गोविंदपुरा इलाके में दर्शाए गए हैं। भोपाल जैसे बड़े शहर में सिर्फ 230 भिखारी? भिखारियों के पुनर्वास केंद्र और भिखारियों का सही आंकड़ा जानने के लिए भोपाल के कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह से संपर्क करने की कोशिश की गई थी लेकिन खबर लिखे जाने तक उनसे संपर्क नहीं हो पाया है।
अब सवाल यह उठता है कि, भोपाल के भिखारी आखिर गए कहां? जहां उन्हें रुकवाने का आदेश प्रशासन ने किया था वहां की हकीकत तो कुछ और ही थी। रेन बसेरा में भी कोई भिखारी मौजूद नहीं था।
"गरीबी हटाओ देश बचाओ..." यह वो नारा है जिसने इस देश में कई सरकारें बनाई और नेताओं को सत्ता के शिखर तक पहुंचाया। यह नारा सुपर हिट साबित हुआ लेकिन अफसोस जिन लोगों के लिए इस नारे को ईजाद किया गया वे हमेशा गरीब ही रहे। समय के साथ हालात सुधरे इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन देरी से मिला न्याय अन्याय से कम तो नहीं। गरीबी मुक्त भारत से एक कदम आगे बढ़ते हुए हम भिखारी मुक्त शहर और देश का ख्वाब देख रहे हैं। ऐसे कई लोग हैं जो भिक्षावृत्ति की आड़ में अपनी क्राइम हिस्ट्री और गैरकानूनी काम छिपाते हैं लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि, कुछ लोगों की पेट की भूख उन्हें भीख मांगने को मजबूर करती है।
भोपाल हो इंदौर हो या कोई और शहर भिक्षावृत्त्ति रोकी जानी चाहिए। इसके लिए केवल आदेश ही नहीं बल्कि एक विस्तृत नीति तैयार होनी चाहिए। जो लोग आज भिक्षावृत्त्ति में लिप्त हैं उनके पुनर्वास की व्यवस्था होनी चाहिए। एनजीओ की मदद से इस बात का भी रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए कि, कहीं रेस्क्यू किये गए लोग दोबारा इस नर्क में न आएं।
सच्चे मन से किया गया प्रयास बदलाव लाता है। आदेश निकालकर फर्जी भिखारियों को आश्रय स्थल में रखने से वास्तविकता नहीं बदलेगी। कुछ समय बाद दोबारा चौराहों पर भिखारी भीख मांगते नजर आने लगेंगे। भिखारी मुक्त शहर के ख्वाब के सामने कई चुनौती है ऐसे में लीपापोती से इतर शुद्ध प्रयास की दरकार है।
यहाँ देखिये स्वदेश के स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो