चुनाव विशेष : इंतजार में उम्मीदवार, कब जागेंगे कॉंग्रेस के आलाकमान ?
अनीता चौधरी
पाँच राज्यों के चुनाव के लिए आचार संहिता लगे तकरीबन एक सप्ताह बीत चुके हैं लेकिन उम्मीदवारों के चयन को लेकर कॉंग्रेस अहो-पोह की स्थिति अभी बी बनी हुई है। एक तरफ बीजेपी जहां लगभग सभी राज्यों के लिए ज्यादातर उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर चुकी है। वही कॉंग्रेस की बैठकें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। खबर ये भी है कि रविवार 15 अक्टूबर को बीजेपी की केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक होनी है जिसके बाद रविवार देर रात या सोमवार तक बाकी सभी सीटों के लिए भाजपा उम्मीदवारों की अंतिम सूची भी जारी कर देगी। जिसके बाद भाजपा शंखनाद के साथ पूरी तरह से अपने स्टार प्रचारकों के साथ चुनावी रण में उतर जाएगी।
कॉंग्रेस की अगर बात करें तो चुनावी घोषणा के सात दिन बाद भी कॉंग्रेस में मंथन का ही दौर ही चल रहा है। मध्यप्रदेश में जहां दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की अंदुरुनी कलह थमने का नाम नहीं ले रही हैं वही राजस्थान मने अशोक गहलोत और सचिन पायलट की वर्चस्व की लड़ाई खुल कर लोगों के सामने हैं। छतीसगढ़ में भले ही कॉंग्रेस बघेल सरकार सहज जीत की स्थिति में दिखाई दे रही हो लेकिन शरगुजा के राजा टी.एस. बावा यानि छतीसगढ़ के डिप्टी सीएम यानि टी.एस. सिंहदेव भी इस बार उखड़े-उखड़े से नजर आ रहे हैं जिसका असर जनजातीय मतदाताओं पर असर पड़ सकता है। यही नहीं पिछली विधानसभा चुनाव में बघेल से सबक सीखे छतीसगढ़ के दुर्ग के दिग्गज कॉंग्रेस नेता ताम्रध्वज साहू भी इस बार के चुनावी सहयोग में खींचे खींचे से ही दिख रहे हैं।
कॉंग्रेस के लिए सबसे बड़ी परेशानी मध्यप्रदेश और राजस्थान का चुनाव बना हुआ है। मध्यप्रदेश की अगर बात करें तो परेशानी सिर्फ पार्टी की अंदुरुणी कलह ही नहीं है बल्कि मुश्किल चुनाव के मैदान में उतारने के लिए लोकप्रिय चेहरों की कमी का भी है। कॉंग्रेस से असन्तुष्ट ज्यादातर नेता या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या निष्क्रिय होकर कॉंग्रेस की राजनीति से अपना मुंह मोड़ चुके हैं। कुछ बड़े नेता अभी पार्टी के साथ तो बने हुए हैं लेकिन हार की डर से वो चुनाव लड़ना नहीं चाहते हैं। इन बड़े नेताओं की सूची में सबसे पहला नाम दिग्विजय सिंह का भी आता है। दिग्विजय सिंह आसान रास्ता अपनाते हुए सिर्फ राज्यसभा के रास्ते ही कॉंग्रेस की फ्रंटलाइन राजनीति करना चाहते हैं। ऐसे में कॉंग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बीजेपी की नई रणनीति को काउंटर करना है। मुश्किल ये है कि बीजेपी ने नया दांव खेलते हुए मध्यप्रदेश में इस बार कई वो चेहरे उतारे जो केंद्र की राजनीति के महारथी माने जाते हैं। इनमें पार्टी के एक महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और 2 केन्द्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल हैं। इसके अलावा कई ऐसे सांसद भी है जो इस बार बीजेपी की तरफ से विधानसभा के चुनाव में बतौर उम्मीदवार उतरे हुए हैं। इन उम्मीदवरों का मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में सिर्फ अपने संसदीय क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आस पास के कई क्षेत्रों पर खासा प्रभाव है। ऐसी स्थिति में कॉंग्रेस के लिए असमंजस की स्थिति ये है कि आखिर इनके सामने वो कौन सा चेहरा उतारे जो इनका मुकाबला ही नहीं इनको शिकस्त देने में भी सफलता हासिल करे और मध्यप्रदेश में कॉंग्रेस और कमलनाथ के सत्तासीन के सपने को पूरा कर सके।
मध्यप्रदेश चुनाव के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने गुरुवार को चुनावी बिगुल बजाते हुए जनसभाएं तो शुरू कर दी लेकिन इन रैलियों और जनसभाओं में भी उम्मीदवारों का इंतजार कॉंग्रेस के मतदाताओं के बीच बना रहा। उम्मीदवार के सामने नहीं होने की वजह से ये जनसभाएं उद्देश्य विहीन नजर आईं। अब देखना ये होगा कि अब मतदान के महज 1 माह बाकी रह गए हैं। नामांकन 30 अक्टूबर से शुरू हो जाएंगे जो 6 नवंबर तक भर सकते हैं। ऐसे में कॉंग्रेस बैठक, चिंतन और मंथन के दौर से बाहर निकल कर आम सहमति के साथ आखिर कब अपने उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगाती है।