कोच्चि। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक रंगाहरि का रविवार सुबह कोच्चि के एक अस्पताल निधन हो गया। वे 93 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से बीमार थे। रंगाहरि 1991 से 2005 तक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख रहे।
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने रंगाहरि के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। संघ के दोनों शीर्ष पदाधिकारियों ने अपने शोक संदेश में कहा है कि रंगाहरि जी के निधन से संघ ने एक गहन विचारक, श्रेष्ठ कार्यकर्ता और व्यावहारिक आदर्श के साथ एक स्नेही और उत्साहवर्धक वरिष्ठजन खो दिया है। रंगाहरिजी ने अपना जीवन पूर्ण एवं सार्थक ढंग से जीया। अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख रहने के दौरान उनके परिचय में आए कई कार्यकर्ता आज पूरे भारत में उनके निधन पर शोक मना रहे होंगे। अपने अंतिम दिनों में भी उन्होंने पढ़ने, लिखने और अपने पास आने वाले स्वयंसेवकों को सुखद परामर्श देना नहीं छोड़ा। 11 अक्टूबर को पृथ्वी सूक्त पर उनकी एकमात्र टीका दिल्ली में प्रकाशित हुई। कुछ बोल नहीं पाने पर भी वह आगंतुकों को सुनते थे और अपने चेहरे के भावों से प्रतिक्रिया देते थे।
हाल ही में सरसंघचालक डॉ. भागवत और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने दिल्ली के डॉ अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में रंगाहरि जी की पुस्तक ‘पृथ्वी सूक्त : धरती माता को एक श्रद्धांजलि’ का विमोचन किया था।रंगाहरि अंग्रेजी, संस्कृत, मराठी, हिंदी, कोंकणी और मलयालम सहित 11 भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर विभिन्न भाषाओं में 60 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। रंगा हरि 1944 में नागपुर के प्रचारक पुरूषोत्तम चिंचोलकर से प्रेरित होकर संघ से जुड़े और जीवन के अंतिम समय तक संघ के समर्पित कार्यकर्ता के नाते कार्य करते रहे। वह केरल में सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल थे। उनकी एक उल्लेखनीय उपलब्धि 12-खंडों में हिंदी में प्रकाशित गुरुजी समग्र रही, जिसके वे प्रधान संपादक थे।