Real life Chandu Champion : घर से 12 रुपए लेकर निकले, भारत के लिए जीता गोल्ड, चंदू चैम्पियन की असल कहानी
Real life Chandu Champion : मुरलीकांत बताते हैं कि, एक गोली आज भी उनके स्पाइनल कॉर्ड में है।
Chandu Champion Real Story: 12 साल का एक लड़का, मुट्ठी में कुश्ती में जीते 12 रुपए और मन में कई सवाल। सवाल ये कि, क्या वो अपना सपना पूरा कर पाएगा, क्या वो घर से भागकर सही कर रहा है? सवालों के बवंडर में घिरा ये बच्चा उठता है और बिना पीछे मुड़े स्टेशन की ओर भागने लगता है । स्टेशन पर रुकी एक मालगाड़ी में चढ़ने के बाद इस बच्चे ने कभी जीवन में पीछे मुड़कर नहीं देखा। छोटे से गांव से निकले इस बच्चे का जीवन आगे और कठिन होने वाला था लेकिन उसके मन में आशा थी कि, वो अब हर जंग जीत जाएगा। जानते हैं कौन था ये बच्चा, क्या थे उसके सपने और क्यों उसे 12 साल की उम्र घर छोड़कर भागना पड़ा...।
साल था 1944, अभी देश आजाद हुआ नहीं था। आजादी के लिए संघर्ष अब भी जारी था। इस कठिन समय में महाराष्ट्र्र के सांगली में जन्म हुआ एक लड़के का। बच्चे की मधुर मुस्कान देख माता - पिता ने बच्चे का नाम रखा - मुरलीकांत पेटकर (Murlikant Petkar)। मुरलीकांत का पारिवारिक बैकग्राउंड काफी सामान्य था । माता - पिता की भी अपने बेटे से कोई बड़ी उम्मीदें नहीं थी। वे पढ़ाई में तो ठीक - ठाक थे लेकिन खेल कूद में अव्वल। उन्हें इस कदर खेलने का जूनून था कि, वे दिनभर गांव के छोटे से खेल के मैदान में दिखाई देते थे। उनका यही जूनून उन्हें उनके जीवन में बहुत आगे ले जाने वाला था।
गांव प्रधान के बेटे से मुकाबला :
गांव के छोटे से मैदान में खेलते - खेलते और मां के लाड़ - प्यार में जीवन की बड़ी - बड़ी सीख पाते हुए मुरलीकांत कब 12 साल के हो गए किसी को पता ही नहीं चला। अब तक देश भी आजाद हो गया था । अंग्रेज अफसर पैकअप करके लंदन लौट गए थे। देश में लोकतंत्र तो था लेकिन गांव और दूरदराज के इलाकों में अब गांव प्रधान और बड़े जम्मीदारों का प्रभाव था। इसी बीच मुरलीकांत की लाइफ में पहली चुनौती ने दस्तक दी। गांव में कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित की गई। इसमें मुरलीकांत ने भी हिस्सा लिया। उनके सामने प्रतिद्वंदी के रूप में था गांव के प्रधान का बेटा। प्रधान के बेटे को हराते तो लोग जीने नहीं देते और खुद हार जाते तो शायद स्वयं से नजरें नहीं मिला पाते।
फिर क्या था...मुरलीकांत ने दांव खेला और गांव के प्रधान के बेटे को उठा कर पटक दिया। इस प्रतियोगिता में जीतने पर उन्हें 12 रुपए मिले। अभी 12 रुपए की कीमत बहुत कम मालूम होती है लेकिन उस ज़माने में इसकी बहुत कीमत थी। खैर कुश्ती तो जीत ली थी, मुरलीकांत ने अब उन्हें गांव वालों की बातें सुननी थी। प्रधान के समर्थक मुरलीकांत के परिवार को डराने धमकाने लगे। परिवार की मुश्किलें बढ़ गई। कौन माता - पिता अपने बच्चों की खुशी से खुश नहीं होता लेकिन प्रधान के समर्थकों द्वारा धमकी दिए जाने से मुरलीकांत के परिजन थोड़ा चिंतित थे।
इंडियन आर्मी ज्वाइन की :
12 साल का एक छोटा सा बालक, उसे लगा की शायद कोई उसकी पीठ थपथपाएगा लेकिन हुआ इसका विपरीत। मुरलीकांत का दिल टूट गया था वे दुखी थे। यही वो समय था जब मुट्ठी में 12 रुपए लेकर उन्हें जीवन का एक बड़ा फैसला करना था। जितनी उपलब्धी उन्होंने अपने जीवन में हासिल की उसके आधार पर कहा जका सकता है कि, उनका फैसला पूरी तरह सही था।
स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी में वे बिना कुछ सोचे समझे चढ़ गए। किसी तरह उन्होंने इंडियन आर्मी को ज्वाइन कर लिया। इंडियन आर्मी में होने वाली ट्रेनिंग भी इतनी आसान नहीं थी लेकिन जीवन की पुरानी यादों से तो बेहतर इस ट्रेनिंग में मन लगाकर मेहनत करना था। जैसे - तैसे समय बीता और साल आया 1964, अब मुरलीकांत खेल में अव्वल आने की तैयारी में लग गए थे। कहते हैं जीवन में जैसा चाहो वैसा कम ही होता है। मुरलीकांत के साथ भी यही हुआ।
मुरलीकांत को लगी 9 गोलियां :
साल आया 1965, भारत को अब अपने पड़ोसी से युद्ध करना था। भारत - पाक युद्ध में देश की माटी का कर्ज उतारने के लिए कई जवान मैदान में उतरे थे। मुरलीकांत को भी अब पाक से युद्ध करना था। उनकी पोस्टिंग सियालकोट में की गई। पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा में लगातार हमले किए गए। इन्हीं में से एक हमले में मुरलीकांत को 9 गोलियां लगी। जख्मी हालत में वे युद्ध क्षेत्र में पड़े रहे। गोलाबारी कम होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। अस्पताल में उनका इलाज हुआ और 9 गोली लगने के बाद भी वे ज़िंदा बच गए।
गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उनका जिंदा बचना किसी चमत्कार से कम नहीं था। मुरलीकांत बताते हैं कि, एक गोली आज भी उनके स्पाइनल कॉर्ड में है। खैर लंबे समय तक वे कोमा में रहे। जब होश आया तो वे अपनी याददाश्त खो चुके थे। जैसे - तैसे उनकी याददाश्त वापस आई लेकिन शरीर को पूरी तरह ठीक होने में 2 साल लग गए। इसके बाद उन्होंने फिर खेल में रुचि दिखाई। महाराष्ट्र में हुए कई खेलों में उन्होंने मेडल जीता।
टेस्को में नौकरी :
अब उनके आर्मी से रिटायर होने का समय आ गया था। आर्मी से रिटायर होने के बाद उन्हें नौकरी की आवश्यकता थी। उन दिनों टाटा कंपनी युद्ध में विकलांग हुए जवानों की मदद कर रही थी। मुरलीकांत तो ठहरे स्वाभिमानी व्यक्ति। उन्होंने टाटा से मदद लेने से इंकार कर दिया और कहा कि, मदद करनी है तो नौकरी दें। उनकी इस बात से प्रभावित होकर मेनेजिंग स्टाफ ने उन्हें टेस्को में नौकरी दे दी।
अब भी मुरलीकांत का सपना पूरा नहीं हुआ था। मन में अब भी कसर बाकी थी। जब इंसान कुछ करना चाहे तो भगवान भी मदद करते हैं। मुरलीकांत की मदद के लिए आगे आये क्रिकेटर विजय मर्चेंट। विजय NGO से जुड़े हुए थे। जब उन्हें मुरलीकांत के बारे में पता लगा तो वे काफी प्रभावित हुए। विजय के NGO ने फैसला किया कि, अब मुरलीकांत की ट्रेनिंग का पूरा खर्चा उनकी संस्था उठाएगी। मुरलीकांत स्विमिंग में प्रतियोगिता करने के लिए राजी हुए।
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धी :
अब वो समय आ गया था जब मुरलीकांत को अपने सपने को पूरा करना था। साल आया 1972, अब मुरलीकांत को पैरालंपिक में देश को रिप्रेजेंट करने का मौका मिला। अब उन्होंने अपनी प्रतिभा दिखाई। स्विमिंग पूल में मुरलीकांत ने छलांग लगाई और जब बाहर निकले तो स्वर्ण पदक उनके हाथों में था। ये उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धी थी।
भारत के लिए गोल्ड मेडल जीतकर उन्होंने देशवासियों का दिल ही जीत लिया था। उन्हें इंतजार था भारत सरकार द्वारा उन्हें सम्मानित किए जाने का। साल 1982 में तो उन्होंने सरकार को चिट्ठी लिखकर खुद को अर्जुन अवार्ड का दावेदार भी बताया था लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली। इसके बाद मुरलीकांत ने फैसला किया आज के बाद कभी सम्मान की भीख नहीं मांगेंगे। भारत के इस वीर की प्रतिभा को देशवासी भूले नहीं थे। साल 2018 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री से नवाजा। सरकार द्वारा सम्मानित होकर शायद उनके जीवन की आखिरी कसर भी दूर हो गई।
Chandu Champion Movie:
भारतीय सिनेमा (Indian Cinema) में इन दिनों खेल के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल कर देश का नाम आगे बढ़ाने वालों की कहानी को प्रमुखता से दिखाया जा रहा है। सिनेमा पसंद करने वाली ऑडियंस का रिस्पॉस भी ऐसी कहानी को लेकर काफी अच्छा रहा है। ऐसी ही एक कहानी 14 जून को बड़े पर्दे पर दिखाई जाएगी। कबीर खान द्वारा बनाई गई इस फिल्म का नाम चंदू चैम्पियन है। फिल्म में कार्तिक आर्यन (Karthik Aryan) लीड रोल में दिखाई देंगे। 14 जून को रिलीज होने वाली इस फिल्म को लेकर ऑडियंस में काफी उत्साह है।