स्‍वदेश विशेष: सीरिया में तालिबानी हिंसा ही राज करेगी, शिया-सुन्नी गृहयुद्ध की मार झेलेगा सीरिया…

Update: 2024-12-10 08:22 GMT

आचार्य श्रीहरि: एक और मुस्लिम देश सीरिया में तालिबानी संस्कृति स्थापित हो गयी, राज सिंहासन पर बैठ गयी और अब राज करेगी, जनता पर अपनी हिंसा बरसायेगी।

जिस तरह की घटनाएं अफगानिस्तान में हुई थी और जिस तरह से तालिबान ने सत्ता पर अधिकार किया था और वहां का शासक जान बचाकर भागा था, ठीक इसी प्रकार की घटनाएं सीरिया में घटी है। सीरिया क राजा और शासक बशर अल असद अपनी सत्ता छोड़कर भाग गये हैं और अपने शासन के सहयोगियों और सहयोगी देशों की सेनाओं को भी लवारिश छोड गये।

अब बशर अल असद के पक्ष में लडने वाली सेनाओं का क्या होगा, काफी संख्या मे ऐसे लडाके थे जो भाडे के थे जो पैसों के लिए बशर अल असद की सत्ता को सुरक्षित करने के लिए युद्ध में शामिल थे।

बशर अल असद की विरोधी सेना सीरिया की राजधानी दमिश्क पहुंच गयी है और दमिशक पर पूर्ण वर्चस्व कायम कर लिया है। टेलीविजन और रेडियों पर इनका अधिकार हो गया है।

टेलीविजन और रेडियो पर दिये गये संदेश में विद्रोहियों ने कहा है कि हमनें आधी सदी से भी अधिक की तानाशाही और राजशाही का अंत कर दिया है, अब सीरिया आजाद है, सीरिया के लोग आजाद है, जिसने भी हमारा शासन अस्वीकार करेगा उसे कठोर और सबककारी दंड दिया जायेगा, हम बेवहज हिंसा नहीं करेगे पर विरोध करने वालों को सबक जरूर सिखायेंगे।

टेलीजिवन और रेडियो पर अधिकार का अर्थ यह होता है कि उनका सत्ता पर भी इनका कब्जा हो गया और विरोध की आवाजें उनके पैरों से कुचली जायेंगी।

पूरे सीरिया का हाल क्या है? यह किसी को पता नहीं है। पर सीरिया की राजधानी दमिश्क पर दुनिया की नजर लगी हुई है और दमिश्क में घटने वाली पल-पल की घटनाओं पर नजर रखी जा रही है।

यह कहना सही होगा कि दमिश्क में स्थिति बहुत ही हिंसक है और डर-भय का वातावरण कायम है, सन्नाटा पसरा हुआ है। अचानक हुई ऐसी घटनाएं लोगो को सावधान भी नहीं कर पायी, पहले से कोई ऐसी आशंका थी नहीं, सभी कुछ सामान्य था, असद की सरकार पर आंच आती दिख नहीं रही थी।

इसलिए आम लोग सचेत भी नहीं थे। जरूरी चीजों का संग्रह भी नहीं कर पाये। जीवन की जरूरी चीजों की ऐसी ही परिस्थितियों में किल्लत होती है। दमिश्क में भी जीवन की जरूरी चीजों की बहुत ही किल्लत है। बैंकों पर ताला लटका हुआ है।

एटीम मशीनें बद पडी हुई हैं। इस कारण एटीएम मशीनों से पैसा नहीं निकाला जा सकता है। एटीएम मशीनों से पैसा नहीं निकलेगा तो फिर आम आदमी की परेशानी कितनी दुरूह और हानि वाली होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।

जब तक स्थितियां सामान्य नहीं होगी तब तक विदेशी सहायताएं भी नहीं चलने वाली हैं, विदेशी सहायताएं सीरिया पहुंचते-पहुंचते सप्ताहों लग जायेंगें? इस दौरान सीरिया की जनता बेमौत भी मर सकती है।

सीरिया में विद्रोही गुटो ने कब्जा तो जरूर कर लिया पर विद्रोही गुटों के पास आम जनता की परेशानियों को दूर करने और उन्हें राजकता में फलने-फूलने का अवसर देने का कोई जादूई छड़ी भी नहीं है।

अचानक ऐसी परिस्थितियां बनी क्यों? बलशाली बशर अल असद का अचानक पतन हो जायेगा, बशर खुद देश छोडकर भाग जायेंगे? इसकी उम्मीद विद्राही गुटों को भी नहीं थी। दुनिया की कूटनीति खुद इस विषय को लेकर हैरान और परेशान हैं।

यर्थाथ खोजने की माथा मच्ची जारी है। आखिर ऐसा क्या हुआ जो सहयोगी देशों की सेनाएं मुंह देखती रह गयी और उनकी सभी नीतियां धरी की धरी रह गयीं। उपरी तौर पर कारण यूक्रेन युद्ध में पुतिन की कमजोरी मानी जा रही है।

कई सालों तक रक्तपात करने के बावजूद पुतिन यूक्रेन को पराजित नहीं कर पाये। यूक्रेन में पुतिन का उलझा रहना ही बशर के पराजय का कारण बना। पर एक अन्य कारण भी है। जो बाइडन के पराजय के साथ ही साथ दुनिया में यह संदेश गया था कि सीरिया, ईरान, इस्राइल, फिलिस्तीन और यूक्रेन में अनहोनी की घटनाएं घट सकती हैं, उथल-पुथल हो सकता है और आश्चर्यजनक घटनाएं घट सकती है जो दुनिया की शांति और स्थिरता के लिए खतरा बन सकती है। इसके पीछे डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां थी।

डोनाल्ड ट्रम्प अपने घून के मालिक हैं और वे अपने एजेंडे से पीछे हटने वालों में से नहीं रहे हैं। विरोधी गुटों को जो जोश मिला और हथियार मिला उसके पीछे डोनाल्ड ट्रम्प की ही नीतियां मानी जा रही है।

सीआईए बशर की सरकार के पीछे पडी हुई थी और डोनाल्ड ट्रम्प अपने पहले शासन के दौरान भी बशर को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। खासकर सीरिया में रूस का हस्तक्षेप और वर्चस्व अमेरिका के लिए स्वीकार नहीं था और उसकी वैश्विक शक्ति के खिलाफ भी था।

रूस के नेतृत्व वाले सहयोगियों की हार मानी जानी चाहिए। दुनिया की कूटनीति में यह बात फैली हुई है कि यह पुतिन की हार है। रूस के विदेश विभाग ने भी माना कि सीरिया मे बशर अल असद का ऐरा समाप्त हो चुका है और अब वहां बशर की वापसी संभव नहीं है, सीरिया में विरोधी सेनाओं का कब्जा हो चुका है।

रूस के नेतृत्व वाले सहयोगी देशों में कौन-कौन थे? रूस के साथ ईरान, चीन और उत्तर कोरिया आदि थे। लेकिन रूस की भूमिका अग्रणी थी। अन्य देश प्रतीकात्मक रूप से ही युद्ध में शामिल थे। यह कहना सही होगा कि रूस के कारण ही बशर इतने सालों तक विद्रोहियां की शाक्ति और आक्रमण का सामना करते रहे थे और उन्हें पराजित भी करते रहे थे।

बशर में अपनी शक्ति थी भी नहीं। बशर के पास तेल और गैद पदार्थो का खजाना भी था, जिसमें रूस की हिस्सेदारी थी। रूस इसी खजाने के लिए बशर का साथी बना था। सीरिया में रूस की सेना का बैस भी था और विद्रोहियों पर रूसी विमान कहर बन कर टूटते थे।

रूसी विमानों की हिंसा को लेकर रूस और तुर्की के बीच विवाद भी बढा था। जानना यह भी जरूरी है कि तुर्की सीरिया का पडोसी देश है। तुर्की की नाराजगी इस बात को लेकर है कि सीरिया की लडाई में उसकी परेशानी बढी है, उसके उपर अचानक दबाव बढा है, बोझ बढा है।

सीरिया की एक बडी आबादी शरणार्थी बन कर तुर्की में प्रवेश कर गयी। तुर्की को शरणार्थियों के दबाव और बोझ को सहन करने में मुश्किलों का सामना करना पड रहा है। ऐसे सीरिया के शरणार्थियों की बोझ से यूरोपीय देश भी कम परेशान नहीं है।

सीरिया का भविष्य क्या है? सीरिया का भविष्य बहुत ही अंधकारमय है। बशर अल असद उदारवाद का सहचर था और बहुत ज्यादा क्रूर शासक भी नहीं था। पर वह शिया था। शिया आबादी सीरिया में अल्पसंख्यक मानी जाती है, सीरिया में बहुंसंख्यक आबादी सुन्नी थी। सुन्नी आबादी पर शिया शासक राज करता था।

सुन्नी आबादी इसीलिए बशर के खिलाफ हिंसक थी और कहती थी कि सुन्नियो के खिलाफ हिंसा हुई है, भेदभाव हुआ है और अस्तित्व मिटाने के लिए अभियान चला है। अब सीरिया में शिया आबादी के खिलाफ हिंसक अभियान चलेगा, शिया आबादी आज न कल हिंसा के रास्ते पर चलने वाली ही हैं, क्योंकि वे सुन्नियों का वर्चस्व बहुत दिनों तक झेल नहीं पायेंगी।

कहने का अर्थ यह है कि सीरिया में सुन्नियो और शियों के बीच गृह यु;द्ध होगा, अराजकता होगी और हिंसा पसरेगा। सीरिया भी अफगानिस्तान और लेबनान की तरह अराजकता और राजनीतिक भंवर में फंसा रहेगा।

विद्रोही गुटों का जो शासन होगा वह शासन किसी भी परिस्थिति में धर्मनिरपेक्ष नहीं होगा। क्योंकि विद्रोही गुटों के नेता भी घोर कट्टरपंथी और इस्लाम के शासन के सहचर है। कहने का अर्थ यह है कि सीरिया में तालिबान की तरह ही मजहबी हिंसक राज स्थापित होने वाला है।

जब इस्लामिक राज स्थापित होगा तब महिलाओं पर हिंसा बरसेगी, महिला शिक्षा पर चाकू चलेगा और भूख-बेकारी बढेगी। सीरिया के रूप में दुनिया एक और विफल, हिंसक, और गृहयुद्ध से दग्ध राज की चुनौती का सामना करेगी। 

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