हिन्दू नहीं है आदिवासी समाज: अजय शाह
आदिवासी समाज और हिन्दू धर्म के खिलाफ कांग्रेस की बड़ी साजिश
भोपाल, विशेष संवाददाता। शताब्दियों से हिन्दू समाज के साथ एकात्म आदिवासी बंधुओं को मुख्य धारा से काटने एवं हिंदू समाज से दूर करने के लिए कांग्रेस फिर एक बार अपने पारम्परिक चरित्र के अनुसार एक षडयंत्र करने जा रही है। विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने से नाराज होकर भाजपा से कांग्रेस में आए अजय शाह ने कहा कि कांग्रेस आदिवासी समाज को यह समझाने के लिए यह अभियान चलाएगी कि वह हिन्दू नहीं है। हालाकि शाह यह बताने में असफल रहे कि जनसंख्या के समय आदिवासी धर्म की जानकारी देते समय किस धर्म का उल्लेख करें।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदिवासी समाज को भी हिन्दू धर्म का ही एक अंग मानता है। कांग्रेस इसी राष्ट्रीय विचार के खिलाफ एक साजिश रच रही है। आदिवासी समाज को हिन्दू धर्म से प्रथक करने की कांग्रेस की ओर से पैरवी कर रहे अजय शाह ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर नाराज होकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। अजय शाह को कांग्रेस ने लोकसभा का टिकट दिया, जिसमें वह बुरी तरह पराजित हुए थे। इसके बाद उन्हें कांग्रेस अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेशाध्यक्ष बना दिया गया था। कांग्रेसी नेता अजय शाह की मांग है कि एनआरसी के कॉलम में विभिन्न 6-7 अन्य धर्मों के साथ आदिवासी समाज के लिए अलग से धर्म का कॉलम बनाया जाए। क्योंकि आदिवासी हिन्दू नहीं है। हमारी परंपराएं, रहन-शहर, वेशभूषा सब अलग है। जब उनसे पूछा गया कि जब आदिवासी हिन्दू नहीं थे, तो फिर महाराणा प्रताप जैसे कई हिन्दू राजाओं के साथ आदिवासी समाज द्वारा अपनी राष्ट्रीय अस्मिता और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानियां आखिर क्यों दीं? सवाल के उत्तर में शाह ने यह तो स्वीकारा कि अदिवासी समाज राष्ट्र और हिन्दू धर्म व समाज की रक्षा के लिए अनेक बार कुर्बान हुआ। आदिवासी समाज न होता तो महाराणा प्रताप भी न होते, जंगल में उन्हें घास की रोटियां आदिवासी समाज ने खिलाईं। साथ ही उन्होंने कहा कि इसे हिन्दू या मुस्लिम में बांटकर नहीं देखा जाना चाहिए। महाराणा प्रताप और अकबर दोनों ही राजा थे। प्रताप के सेनापति मुस्लिम और अकबर के हिन्दू थे। श्री शाह ने एक प्रश्न के उत्तर में यह भी स्वीकारा कि गणेश चतुर्थी आयोजन हों या चुनरी यात्रा, हिन्दू धर्म के इन सभी आयोजनों में आदिवासी समाज सबसे आगे होता है। यह उनकी अपनी धार्मिक भावनाएं हैं। श्री शाह यह स्पष्ट नहीं कर सके कि आदिकाल से हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग रहे आदिवासी समाज के लिए कांग्रेस आखिर अलग से कौन सा धर्म स्थापित करना चाहती है। जब श्री शाह से सवाल किया गया कि 2014 में जब उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा तो उन्होंने अपने नामांकन फार्म में धर्म और जाति क्या उल्लेखित की थीं? साथ ही संविधान में आदिवासी समाज के लिए अलग धर्म का कॉलम तैयार नहीं करने के लिए क्या तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं को भी वे दोषी मानते हैं? इन सवालों के उत्तर को वह टाल गए? उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि भाजपा या कांग्रेस की बात नहीं है। हम इस लड़ाई को 70 सालों से लड़ रहे हैं। श्री शाह ने भाजपा पर आदिवासी समाज की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि वह संघ की इस विचारधारा के खिलाफ समाज में जागरुकता अभियान चलाएंगे। श्री शाह से जब पूछा गया कि उनके भाई विजय शाह जो दो बार सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं? वह भी उपेक्षा का शिकार हैं? जवाब में श्री शाह ने कहा कि उन्हें भाजपा में उतना कुछ नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए। आदिवासी समाज में जागरुकता अभियान की शुरूआत क्या वह अपने परिवार अपने घर से करेंगे? सवाल पर श्री शाह ने कहा कि यह उनके भाई और परिजनों का व्यक्तिगत मामला है, मेरी अलग सोच है। क्या आदिवासी समाज को तोडक़र वह अल्पसंख्यक या ईसाई बनाना चाहते हैं? सवाल के उत्तर में श्री शाह ने अस्पष्ट उत्तर देते हुए कहा कि आदिवासी समाज अल्पसंख्यक भी हो जाए तो गलत क्या है?