फिर याद आया गोधरा नरसंहार जब जिंदा जलाए गए थे 59 कारसेवक

अनिता चौधरी

Update: 2024-02-26 17:49 GMT

नईदिल्ली।  27 फ़रवरी भारत के इतिहास का वो काला दिन है जिस दिन 59 राम भक्तों को उन्मादी मुस्लिम भीड़ ने ज़िंदा जला दिया था । तुष्टिकरण की राजनीति में 59 घर बर्बाद हो गये थे । दरअसल गोधरा ट्रेन का जलना इस तरह से जलाना गुजरात दंगे पर मुस्लिम समुदाय की भूमिका पर कई सवाल खड़े करता है ।

27 फरवरी 2002 को, राम मंदिर स्थल पर एक धार्मिक समारोह के बाद अयोध्या से लौट रहे 59 हिंदू तीर्थयात्रियों को साबरमती एक्सप्रेस के एस -6 कोच में जिंदा जला दिया गया था। मृतकों में 25 महिलाएं, 25 बच्चे और नौ पुरुष शामिल थे ।गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले की सुनवाई करने वाली विशेष फास्ट ट्रैक अदालत ने 2011 में अपना फैसला सुनाया और सहमति व्यक्त की कि एस-6 कोच में आग न तो दुर्घटना थी और न ही 'अंदरूनी' थी।

अदालत ने भी माना कि रेलवे स्टेशन के बाहरी इलाके में पेट्रोल के स्टॉक के साथ साबरमती एक्सप्रेस को रोकने के कुछ ही मिनटों के भीतर ही बड़ी संख्या में स्थानीय मुस्लिम कैसे इकट्ठा हो गये । अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले से सहमति व्यक्त करते हुए ये भी माना कि उन्मादी भीड़ की तैयारी पहले से थी । साबरमती एक्सप्रेस में आगामी की तैयारी को लेकर एक दिन पहले ही रात में अमन गेस्ट हाउस में बैठक के बाद पेट्रोल के स्टॉक एकत्र कर लिये गये थे। कट्टरवादी इस्लामिक भीड़ को कोच नंबर भी पहले से ही पता था ।

अदालत ने अपने आदेश में माना कि अगर अमन गेस्ट हाउस के पास पिछली रात कारबॉय में पेट्रोल तैयार नहीं रखा गया होता तो कोच एस-6 के पास 5 से 10 मिनट के भीतर भारी मात्रा में पेट्रोल लेकर कारबॉय के पास पहुंचना संभव नहीं था ।अदालत ने ये भी माना कि टारगेट सिर्फ़ हिंदू तीर्थयात्रियों थे । वरना सिर्फ़ कोच नंबर एस -6 को ही क्यों निशाना बनाया गया जिसमें बड़ी संख्या में भक्त थे । दूसरी बार चेन खींचकर ट्रेन को रोकने पर भी कोर्ट ने आश्चर्य जताया था । कोर्ट कहना था कि चेन खींचने के महज़ पांच से छह मिनट के भीतर घातक हथियारों के साथ मुस्लिम भीड़ को इकट्ठा करना और रेलवे ट्रैक पर 'ए' केबिन के पास पहुंचना बिना पूर्व प्लानिंग के संभव नहीं था ।

अदालत ने आगे यह भी कहा कि हमला एस-6 पर एक आकस्मिक हमला नहीं था, बल्कि विशेष रूप से अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों को लक्षित कर के ही किया गया था। अपने फ़ैसले में कोर्ट ने स्पष्ट कहा hai कि'आक्रमणकारियों द्वारा मजहबी नारे लगाना और पास की मस्जिद से लाउडस्पीकर पर घोषणा करना भी स्पष्ट रूप से साबित करता है कि ये पूर्व नियोजित षडयन्त्र था।हालाँकि बचाव पक्ष के वकील की से ये बार -बार तर्क दिया जा रहा था कि हमले की वजह गोधरा स्टेशन प्लेटफॉर्म पर कुछ मुसलमानों के साथ कारसेवकों द्वारा कथित "दुर्व्यवहार" की एक सहज प्रतिक्रिया थी।

लेकिन अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा था पहले इस तरह की अन्य झड़पों के परिणामस्वरूप इस तरह का नरसंहार कभी नहीं हुआ । इस झड़प का कोई ठोस सबूत नहीं है झगड़े का आरोप निराधार हैं। आरोपी सलीम पानवाला और आरोपी महबूब अहमद उर्फ लतीको ने झगड़े का बहाना बना कर कारसेवकों को जलाया और मौके का फायदा उठाया।कोर्ट के फैसले में साफ़ कहा गया है कि उन्मादी भीड़ ने शोर मचाया , पास के सिग्नल फलिया इलाके से मुस्लिम लोगों को बुलाया और उन्हे गुमराह किया फिर उन्होंने चेन खींचकर ट्रेन को रोकने का निर्देश भी दिया।कैसे चेन खींचने के तुरंत बाद 900 से अधिक मुस्लिम लोगों की भीड़ ने लाठी, लोहे के पाइप, लोहे की छड़, धारिया, गुप्तियों, एसिड बल्ब, जलते हुए मशाल से ट्रेन पर हमला किया ? यही नहीं उन्मादी भीड़ को पास की अली मस्जिद से लाउडस्पीकरों पर घोषणाओं द्वारा उकसाया भी गया"।अपने फ़ैसले में कोर्ट ने जनसंख्या को भी एक आधार माना । जहां मुसलमानों की आबादी हिंदुओं के लगभग बराबर है।

कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि गोधरा सांप्रदायिक दंगों के इतिहास के लिए जाना जाता है। गोधरा के लिए, हिंदू समुदाय से संबंधित निर्दोष व्यक्तियों को जिंदा जलाने की यह कोई पहली घटना नहीं है।कोर्ट ने अपने फ़ैसले में इंगित करते हुए कहा कि 1965 से 1992 के बीच गोधरा की लगभग 10 घटनाओं का उल्लेख किया, जिनमें हिंदुओं को जिंदा जला दिया गया था और उनकी दुकानें और घर आग को नष्ट कर दिए गए थे।

घटना के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी और जान-माल का भारी नुकसान हुआ था हालात इस कदर बिगड़े कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जनता से शांति की अपील करनी पड़ी थी । तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवी और तब की कांग्रेस सरकार इस दंगे के लिए गुजरात की मोदी सरकार को बता रहे थे लेकिन कांग्रेस शासनकाल की ही नानावटी आयोग ने अपने 1500 पन्नों की रिपोर्ट में इस आरोप से इनकार किया था । आयोग ने रिपोर्ट में साफ़ कहा था कि ऐसा कोई भी साक्ष्य सामने नहीं आता जिससे ये साबित हो कि गुजरात दंगे में राज्य सरकार का हाथ हो । गोधरा की घटना ही गुजरात के सांप्रदायिक हिंसा के उकसावे का मुख्य कारण है ।

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