नई दिल्ली: हेडमास्टर की तरह स्कूलिंग करते हैं सभापति जगदीप धनखड़...मल्लिकार्जुन खड़गे ने साधा निशाना
नई दिल्ली। सभापति जगदीप धनखड़ हेडमास्टर की तरह स्कूलिंग करते हैं। यह बात कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कही है। वे अविश्वास प्रस्ताव पर बात कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने यह टिप्पणी की। गौरतलब है कि, संवैधानिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है।
राज्यसभा के सभापति के खिलाफ INDIA ब्लॉक के अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "वे (राज्यसभा के सभापति) हेडमास्टर की तरह स्कूलिंग करते हैं... विपक्ष की ओर से जब भी नियमानुसार महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए जाते हैं तो सभापति योजनाबद्ध तरीके से चर्चा नहीं होने देते। उनकी (राज्यसभा के सभापति) निष्ठा संविधान के बजाय सत्ता पक्ष के प्रति है। और संवैधानिक परंपरा के प्रति वे अपनी अगली पदोन्नति के लिए सरकार के प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे हैं।"
अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "उनके व्यवहार (राज्यसभा सभापति) ने देश की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। उन्होंने संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसी स्थिति ला दी है कि हमें प्रस्ताव (अविश्वास प्रस्ताव) के लिए यह नोटिस लाना पड़ा। हमारी उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी या राजनीतिक लड़ाई नहीं है। उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव लोकतंत्र, संविधान और बहुत सोच-विचार के बाद लाया गया है।"
"उपराष्ट्रपति भारत में दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है... 1952 से - उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं लाया गया है क्योंकि वे हमेशा निष्पक्ष और राजनीति से परे रहे हैं लेकिन, आज सदन में राजनीति ज्यादा है।"
बता दें कि, विपक्ष ने मंगलवार को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। यह भारत के संसदीय इतिहास में इस तरह की पहली कार्रवाई है।
प्रस्ताव को 65 हस्ताक्षरों के साथ पेश किया गया था। उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए प्रस्ताव पेश करने के लिए न्यूनतम आवश्यक संख्या 50 होती है। आसान शब्दों में प्रस्ताव पर कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं। राज्यसभा में संख्या बल के आधार पर प्रस्ताव के गिर जाने की उम्मीद है। विपक्ष ने अगस्त में भी धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर विचार किया था। विपक्षी नेताओं का कहना था कि, वे अपनी बात साबित करना चाहते हैं कि पीठासीन अधिकारी ने उन्हें सदन में बोलने का मौका नहीं दिया।