साप्ताहिक विवेक द्वारा "राममंदिर से राष्ट्र मंदिर" ग्रंथ का विमोचन

  • जल्द ही हिंदी भाषा में होगा प्रकाशित

Update: 2020-11-20 12:08 GMT

स्वदेश वेब डेस्क। साप्ताहिक विवेक द्वारा "राममंदिर से राष्ट्र मंदिर' ग्रंथ का ऑनलाइन प्रकाशन गत 25 अक्टूबर को प.पू. दीदी माँ साथी ऋतम्भराजी, 28 अक्टूबर को स्वामी रामदेव बाबा और 27 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी एवं एबीएम नॉलेजवेयर लिमिटेड के व्यवस्थापकीय संचालक प्रकाश राणे के करकमलों द्वारा विमोचित हुआ।

इस शुभ अवसर पर प. पू. दीदी माँ साध्वी ऋतम्भराजी ने अपने वत्तव्य में कहा कि मंदिर निर्माण करने के लिए राष्ट्र के नागरिकों को भी सक्षम होना चाहिए। आज शक्ति की उपासना का पर्व है। क्या यह शक्ति हमने स्वयं में निर्माण की है। क्या हमारे अन्दर की दुर्तताओं पर हमने विजय प्राप्त की है? क्या अपने इन्द्रियों पर हमने विजय पाई है? मदि हमें यह सभी संभव होगा तथ निधचित रूप से नयर की साधना सफत होगी, क्योकि अब शक्ति का जागरण बाहर नहीं अपितु हमारे भीतर हुआ है। जब हमारे अंदर शक्ति का सामर्थ्य होगा तभी हममें शक्ति सामर् का निर्माण होगा।


आगे कहा कि, अगर भारत को भारत' बन कर रहना है तो सभी भारतीयों को भारत का चिंतन करना चाहिए उसके लिए त्यागमयी जीवन जीना चाहिए। हमारे आचरण में पवित्रता एवं शुद्धता होनी चाहिए। हम कभी भी किसी दूसरे की संपत्ति और किसी भी स्त्री के प्रति गलत निगाह से नहीं देखेंगे। यह दृष्टी हमें वेद से प्राप्त होती है। वेद हमें बुद्धि विवेक प्रदान करता है इसलिए कहा जाता है कि बुद्धि के साथ विवेक का सामंजस्य होगा तो हमारे विचार शुद्ध होंगे और आचरण भी पवित्र होंगे।

इसके बाद स्वामी रामदेव बाबा ने भगवान् श्रीराम के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हुए कहा कि श्रीराम हमारी अस्मिता है, श्रीराम हमारा अस्तित्व है, श्रीराम हमारे राष्ट्र है, हमारे चरित्र है, श्रीराम हमारे धैर्य है, हमारे शील है, आचरण है, मातृ-पितृ के प्रति भक्ति के आदर्श है। हम उनके उपासक है।


राम को विविध रूपों में पूजा जाता है। राम केवल एक व्यक्ति नहीं है बल्कि एक संस्कृति है, सनातन है। आध्यात्मिक-धार्मिक दृष्टी से विचार किया जाये तो वह हमारे आराध्य है। वह केवल एक मंदिर नहीं है अपितु हमारी आत्मा में बसी हुई एक शक्ति है. यदि हम राम से जुड़े हुए नहीं होते तो हम हमारे मूलाधार से जुड़े हुए नहीं होते। राम के बिना राष्ट्र नहीं, राम के बिना इस देश का इतिहास नहीं, वर्तमान नहीं और भविष्य भी नहीं। राम केवल भारत के ही नहीं है बल्कि अखिल विश्व मानवता के वह प्रतिक है।

श्रीराम का चरित्र राष्ट्र के लिए है, अब हमें राष्ट्र का नवनिर्माण करना है। राष्ट्र रूपी भव्य दिव्य मंदिर निर्माण के लिए हम सभी को अपना अपना योगदान देना चाहिए। राष्ट्रमंदिर के निर्माण के लिए हम क्या योगदान देने वाले है? यह प्रत्येक भारतीय को स्वयं ही तय करना चाहिए। विविध क्षेत्रों में मैं क्या कर सकता हूँ। हमें परम वैभवशाली भारत बनाना है, जिसमें सभी प्रकार की सुविधाएं, समृद्धि, ऐश्चर्य होगा, उसके साथ ही संस्कार भी होगा। हमें स्वयं के सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ दायित्व लेना है। जिससे राष्ट्र रूपी मंदिर का नवनिर्माण हम कर सके।


इसके अलावा केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि भारत के इतिहास, संस्कृति और विरासत का प्रतिक रूप राम मंदिर है। हिन्दू संस्कृति एवं भारतीय संस्कृति यह विस्तारवादी नहीं है इसलिए राम मंदिर का विषय संप्रदायिक विषय नहीं ठहराया जा सकता। 'विश्व का कल्याण हो यह हमारे संस्कृति एवं विचारों का प्राकृतिक स्वभाव है। समाज प्रगति की राह पर आगे बढ़ना है तो अतीत के स्वाभिमानी मूल्यों को बर्तमान समय में हमारी पीढ़ी को संस्कारित करना बेहद आवश्यक है, यदि ऐसा होता है तो हमारा भविष्य उज्जवल है।

साप्तहिक विवेक द्वारा तीन दिवसीय चले इस ऑनलाइन प्रकाशन कार्यक्रम में विवेक के पाठक, विज्ञापनदाता, शुभचिंतको सहित अन्य मान्यवरों ने सकारात्मक प्रतिसाद दिया। राममंदिर से राष्ट्रमंदिर' यह ग्रंथ अब हिंदी भाषा में 12 जनवरी 2021 को प्रकाशित होनेवाला है। इस ग्रंथ के लिए 26 नवंबर से 1 दिसंबर 2020 तक अभियान चलाया जा रहा है।  

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें - 022-27810235/36

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