नईदिल्ली। स्वतंत्रता के बाद यह देश की पहली शिक्षा नीति है जिसका राष्ट्रीय दृष्टिकोण है। अब तक बने सभी आयोगों ने वास्तविक शिक्षा नीति पर काम न करके सिर्फ शासन का घोषणा पत्र ही तैयार किया। उन्होंने कहा कि नीति गंभीर विषय है। नीति राष्ट्र की नीयत का साधन है। वह राष्ट्रीय दिशा को निर्धारित करती है। नई शिक्षा नीति पहली बार जनमानस से जुड़ी है।भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने यह बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति : विद्यालयी शिक्षा में चरणबद्ध क्रियान्वयन' विषय पर प्रेरणा मीडिया संस्थान द्वारा आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कही।
नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए पांच बिन्दु महत्वपूर्ण-
'कानिटकर ने कहा कि नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए पांच बिन्दु महत्वपूर्ण हैं।
पहला इस नीति की विशेषताओं को हमें जन जन तक पहुंचाना होगा। जिससे जनमानस इसे मन से स्वीकार करे और यह काम केवल सरकार नहीं कर सकती। यह काम शिक्षा से जुड़े सभी लोगों का है।
दूसरा शिक्षकों के मन परिवर्तन की आवश्यकता है। विद्यालय का एक शिक्षक भी पूरे विद्यालय की दशा बदल देता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। देश में करोड़ों शिक्षक हैं। उन्हें नई शिक्षा नीति के अनुसार प्रशिक्षित करना भागीरथी कार्य है। शिक्षक प्रशिक्षित है केवल उनके मनपरिवर्तन की बात है। वे विद्यालय को आनंदशाला में परिवर्तित करने में सक्षम हैं।
तीसरा बिन्दु है कि हमें निजी विद्यालयों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। विद्यालयों के प्रबंधन को भी विश्वास में लेने की जरूरत है क्योंकि देश में स्कूली शिक्षा में निजी विद्यालयों की 44 प्रतिशत की भागीदारी है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन के लिए
चौथा बिन्दु उच्चशिक्षा के विद्वान और विषय विशेषज्ञ जो शिक्षण सामग्री तय करेंगे, पाठ्यक्रम बनायेंगेे उनके भी मतपरिवर्तन की विशेष आवश्यकता है।
पांचवा और आखिरी बिन्दु है कि सरकार कार्यान्वयन के लिए मत के साथ दबाब बनाये।
उन्होंने कहा सरकार का इंतजार करे बिना हम सभी को इस काम में जुट जाना चाहिए। भारतीय शिक्षण मंडल ने इसके लिए समितियां बनाई है। हम समितियों के मध्यम से हर स्तर की योजना बनायेंगे । उच्चशिक्षा, विद्यालयी शिक्षा और तकनीकी शिक्षा सभी स्तरों के लिए क्रियान्वयन अभिलेख तैयार करेंगे। उन्होंने कहा कि आधुनिक ऋषि तुल्य भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन और गणितज्ञ मंजुल भार्गव जैसे विश्व विख्यात विद्वानों ने इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को गढ़ने के लिए जो तप किया है इसका एक-एक शब्द मंत्र के समान है। हम इसका उपयोग कर आने वाले दस वर्षों में भारत को एकबार पुनः विश्व गुरु के पद पर प्रतिष्ठित कर सकते हैं।