भगवद्गीता : भगवान का गीत

Update: 2021-02-07 10:05 GMT

भगवद्गीता का अर्थ है भगवान के गीत। भगवद्गीता 'महाभारतÓ के छठे अध्याय 'भीष्म पर्वÓ का हिस्सा है। सामान्यत: गीता शब्द भगवद्गीता के संदर्भ में ही आता है। वैसे भारतीय साहित्य में अनेक गीताएं हैं। अनु गीता, उद्धव गीता, व्याध गीता, गुरु गीता, गणेश गीता, अवधूत गीता, अष्टवक्र गीता, राम गीता आदि ।

श्री भक्तिप्रकाश जी में भी वर्णन है ---

ईश भक्ति को मुख्य कर, ज्ञान प्रेम अनुकूल ।

है सुधर्म नारायणी, गीता का वह मूल ।।

इस नारायण धर्म पर, गीता बनी अनेक ।

भगवद् गीता एक है, मर्म मधुरतम एक ।।

नाना गीताएं कहीं, महाभारत के बीच ।

सभी ज्ञान की सरित हैं, रहीं भक्ति - बन सींच ।।

सार सभी का जानिए, भगवद्गीता सार ।

नारायण के धर्म का, जहां मिलता विस्तार ।।

भगवद् गीता ज्ञान की, गंगा निर्मल नीर ।

भक्तों के मनोभावनी, आत्म - दर्शन तीर ।।

भगवान् श्रीकृष्ण ने ज्ञान के सागर को गीता - गागर में पूर्ण रूप में भर दिया है। यह भगवान् के सारमय, रसीले गीत हैं जिनमें उपनिषदों के भावों सहित, भक्तिभाव भरपूर समाया हुआ है और वेद का मर्म भी आ गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में नारायणी गीता का भी पूरा प्रतिबिम्ब विद्यमान है।

श्रीमद्भगवद्गीता के उपरोक्त माहात्म्य का उल्लेख करते हुए श्रीरामशरणम् के संस्थापक, ब्रह्मलीन, परम पूजनीय श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज यह भी कहते हैं - श्रीकृष्ण भगवान् के श्रीमद्भगवद्गीता रूप गीत बड़े सरल, अतिशय सुंदर, बहुत ही बलाढ़्य, अतीव सारगर्भित और अत्युत्तम हैं। उनमें सत्य का और तत्व ज्ञान का निरुपण अत्युत्तम प्रकार से किया गया है। उनके श्रवण, पठन, मनन और निश्चय करने से मनुष्य का अंतरात्मा अवश्यमेव जग जाता? है , उसके चिदाकाश में सत्य के सूर्य का प्रकाश अवश्य ही चमक उठता है और उसका परम कल्याण होने में सन्देह तक नहीं रह जाता । गीता के उपदेशामृत को भावनासहित पान कर लेने से भगवद्भक्त को परमेश्वर का परम धाम आप ही आप सुगमता से प्राप्त हो जाता है।... इसको जीवन में बसाने से और कर्मों में ले आने से मनुष्य का व्यक्तिगत, पारिवारिक, और सामाजिक जीवन उन्नत होकर उसका यह लोक सुधर जाता है और साथ ही आत्मा- परमात्मा का शुद्ध बोध हो जाने से उसकी जन्म बन्ध से मुक्ति भी हो जाती है।

गीता जी का उपरोक्त माहात्म्य यदि हम हृदयंगम कर लें तो हमारा चंचल मन भी परमात्मा की तरफ मुड़ जायेगा।

गीता जी का सात्विक प्रभाव ही ऐसा है कि इससे सद्वृत्ति जाग उठती है। सत्त्व गुण से सब कुछ आच्छादित हो जाता है । परमात्मा के हो जाने की ललक, पूर्ण समर्पण, निष्काम भक्ति, सतत प्रभु के नाम का सिमरन और और निष्काम कर्म करते रहने की सात्विक ऊर्जा हिलोरें लेने लगती है। तनिक देखिए कबीरदास जी को, स्वयं को परमात्मा श्री राम के हाथ में जिसकी डोर (जेबड़ी) हो ऐसा मोती नाम का कुत्ता बनने में ही अपना अहो भाग्य मान रहे हैं। और जब कबीर कहेंगे तो उनकी सद्वृत्ति को कौन नहीं सराहेगा? वे जो कह रहे हैं, कर के दिखा रहे हैं - यही तो गीता का सार है।

कबीर कुत्ता राम का, मुतिया नाम कहाऊं !

गले राम की जेवड़ी, जित खींचे तित जाऊं !!

जैसा कि पूर्व में भी निवेदन किया था कि स्वामी विवेकानंद जी के कार्य में सहयोगिनी और उनकी मित्र 'कुमारी जोसेफिन मेक्लॉउडÓ जब उनसे मिलीं तब जोसेफिन को मानसिक संपदा के रूप में पूरी 'गीता जीÓ कंठस्थ थी।

उन्होंने स्वामी विवेकानंद - विषयक अपने संस्मरणों में लिखा है , एक दिन मैं श्रीमती रोथलिस - बर्जर के साथ जाकर बोली - स्वामीजी! क्या आप मुझे बतायेंगे कि ध्यान कैसे किया जाता है? उन्होंने कहा, एक सप्ताह तक ? पर ध्यान करो और उसके बाद आकर मुझे बताना। एक सप्ताह के बाद हम फिर गये और श्रीमती रोथलिस बर्जर ने कहा -मुझे एक रोशनी दिखती है । उन्होंने कहा, अच्छा है, करती रहो ।

मैंने कहा, अरे नहीं , वह तो हृदय में एक ज्योति - सी दिखती है। उन्होंने मुझसे कहा, - करती रहो। बस, इतना ही उन्होंने सिखाया था परन्तु हम उनसे मिलने से पहले भी ध्यान किया करती थीं और हमें गीता जी कंठस्थ थी। मुझे लगता है कि उसी ने हमें उनकी प्रचण्ड जीवन शक्ति को पहचानने के लिए प्रस्तुत किया था। वे दूसरों के अंदर जिस साहस का संचार कर देते थे, सम्भवत: इसी में उनकी शक्ति का बोध होता था।

भगवान के श्रीमुख से निसरित श्रीमद्भगवद्गीताजी के भक्तिमय गीत, कैसे सही राह दिखाकर सच्चे सन्त से मिलन भी करवाते हैं, यह उपरोक्त संस्मरण से स्पष्ट है।

एक और परिदृश्य है - एक दिन जोसेफिन मेक्लॉउड ने भगवद्गीता पर स्वामी विवेकानंद जी का प्रवचन सुना। इस घटना का स्मरण करते हुए उन्होंने लिखा है, इस वक्त सौ से अधिक श्रोता उपस्थित थे, वे सब एक हॉल में बैठे हुए थे। जिस समय स्वामीजी ने बोलना प्रारम्भ किया , मैंने अपनी नजर उठायी। अपनी इन आंखों से, इन्हीं - इन्हीं आंखों से (जोसेफिन ने अपने चर्म चक्षुओं की ओर इशारा करते हुए कहा) देखा कि साक्षात् कृष्ण खड़े हुए हैं और गीता जी का उपदेश दे रहे हैं। यह मेरा पहला अद्भुत दिव्य - दर्शन था। मैं देखती रही, देखती रही निर्निमेष - मुझे सिर्फ वही रूप दिखाई देता रहा, बाकी सारे दृश्य लुप्त हो चुके थे।

भगिनी निवेदिता ने भी लिखा है कि स्वामी जी से मिलने के पहले मुझे गीता कण्ठस्थ थी। भारत के सम्बन्ध में यही मेरी पहली जानकारी थी।

श्रीमद्भगवद्गीता के सारमय रसीले गीत, सबको सद्मार्ग पर ले जाकर, सच्चे संत से मिलन भी करवा देते हैं।

प्रस्तुति : अकिंचन

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