गंगा-जमुना स्कूल के बाद दमोह से दूसरा खुलासा, यादव, चौबे, साहू, अहिरवार पढ़ रहे हैं बाइबिल
- मध्यप्रदेश में हैं कितने गंगा जमुना ? जहां जा रहा बाल आयोग वहीं मिल रहीं धांधलियां
भोपाल/डॉ. मयंक चतुर्वेदी। शासन का भय समाप्त हो जाता है और प्रशासन में बैठे लोग जब अपने ही निजि कार्यों में लिप्त हो जाते हैं, तब जो समस्या पैदा होती है वह है कदाचरण की। जिसमें जो जैसे चाहता है, अपने स्वार्थ के लिए किसी भी सीमा का उल्लंघन करने को तैयार रहता है। मध्य प्रदेश में दमोह का गंगा जमुना स्कूल तो एक उदाहरण भर है। प्रदेश में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) इस वक्त मध्यप्रदेश के जिस जिले में, जहां भी किसी स्कूल में निरीक्षण के लिए जा रहा है, वहां सामने यही निकलकर आ रहा है कि स्कूल संचालक को न सत्ता का भय है और न ही शासन का।
मिशनरी द्वारा संचालित बालगृह में हिन्दू बच्चे पढ़ रहे बाइबिल
ताजा मामले में गंगा जमुना स्कूल के बाद दमोह से ही यह दूसरा खुलासा हुआ है। यहां इस बार जब एससीपीसीआर यानी राज्य बाल संरक्षण आयोग का दो सदस्यीय दल ''आधारशिला'' (Aadharshila Sansthan) का औचक निरीक्षण करने पहुंचा तो वहां का दृष्य देखकर हतप्रभ रह गया। चर्च के द्वारा संचालित बच्चों के हित में काम करने का दावा करनेवाले इस ईसाई संस्थान में राज्य बाल आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा और ओंकार सिंह के स्तब्ध रह जाने का कारण यह रहा कि इस मिशनरी संस्था में यादव, चौबे, साहू, अहिरवार जैसे हिन्दू बच्चे ''बाईबिल'' पढ़ते हुए पाए गए।
जब उनसे उनकी सनातन परम्पराओं के बारे में या हिन्दू रीति-रिवाज के बारे में जानना चाहा तो सिर्फ ईसाइयत के त्यौहार और बाइबिल के अलावा इन्हें कुछ नहीं पता। इन बच्चों को कई राज्यों से लाकर यहां रखा गया है। अंदेशा है कि सभी बच्चे गरीब परिवारों से हैं, इसलिए अच्छा भोजन एवं पढ़ाई का भरोसा दिलाकर बच्चों के माता-पिता को इनके सुनहरे भविष्य का स्वप्न दिखाकर इस ईसाई ''आधारशिला'' संस्थान में रखने के लिए राजी किया गया है।
आया है बालगृह के कर्मचारी द्वारा एक बालिका को यौन प्रलोभन देने का मामला सामने
दरअसल, राज्य बाल आयोग की टीम अजय लाल द्वारा संचालित ईसाई संस्था के बालगृह से जुड़ी एक शिकायत आने पर यहां जांच करने पहुंची थी, इस शिकायत में बताया गया है कि बालगृह के कर्मचारी द्वारा एक बालिका को यौन प्रलोभन देने का मामला सामने आया है। इसी की जांच करने के लिए मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) के दोनों सदस्य रविवार को यहां पहुंचे थे। जहां पहुंकर जिस जांच के लिए पहुंचे वह तो एक तरफ रह गई, कई अन्य भयंकर कमियां और मतान्तरण (धर्मांतरण) के षड्यंत्र होते हुए इन दोनों सदस्यों डॉ. निवेदिता शर्मा और ओंकार सिंह को यहां मिले। इसके साथ ही इन्हें जांच में कई अन्य खामियां भी मिली हैं, जो बहुत ही आपत्तिजनक हैं।
आयोग ने इन सभी पर संज्ञान लिया है और अब संबंधित अधिकारियों को नोटिस देकर आयोग पूछने जा रहा है कि जब ''आधारशिला'' संस्थान में पूर्व किए गए औचक निरीक्षण में भी तमाम कमियां पाई गईं थीं और केंद्रीय बाल संरक्षण आयोग(एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो स्वयं यहां आकर खामियां देखकर प्रशासन को बता गए थे । उन्होंने संबंधित आरोपितों के खिलाफ एफआइआर तक दर्ज करवा दी थी, तब फिर आज तक उन कमियों को दूर क्यों नहीं किया गया? और दर्ज एफआइआर पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
ईसाई मिशनरी की इस संस्था पर की जा रही कार्रवाई पर राष्ट्रीय बाल आयोग अध्यक्ष को मिली धमकी
इस संबंध में अभी मिली तमाम कमियों को लेकर और ''आधारशिला'' की शिकायत को सभी के संज्ञान में लाने स्वयं एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो फिर से आगे आए हैं । उन्होंने रविवार को ट्वीट किया कि ''दमोह मध्यप्रदेश में मिशनरी माफिया अजय लाल द्वारा संचालित बालगृह के कर्मचारी द्वारा एक बालिका को यौन प्रलोभन देने का मामला सामने आया है, कुछ दस्तावेज मिले हैं। राज्य बाल आयोग के सदस्यों की टीम दमोह में जाँच के लिए पहुँची है। उल्लेखनीय है कि यह बाल,गृह किशोर न्याय अधिनियम की निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत पंजीकृत नहीं है व पूर्व में भी एनसीपीसीआर द्वारा सरकार को बताया गया है तथा एफआइआर भी दर्ज हुई है, परंतु कतिपय सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों की कर्तव्य के प्रति आपराधिक लापरवाही का परिणाम है कि किशोरवय बालिकाएँ ग्रूमिंग एवं यौन दुराचार का शिकार हो रही हैं।''
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने फिर कहा, ''अवैध धर्मांतरण करने वालों के साथ सरकार के कर्मचारी कई स्तरों पर मिले हुए हैं। विभाग के कर्मचारियों को 20 दिन से पता था कि बच्चियों का यौन शोषण हो रहा था जो कि उन्होंने पुलिस को नहीं बताया। पूरे मामले को छिपाया गया यहाँ तक कि इस बारे में फ़ोन पर बात करने पर विभाग के कर्मचारी शालीन शर्मा ने मुझे ही कॉल रिकॉर्डिंग कर धमकाने का प्रयास किया'' है।
पांच राज्यों से गैर ईसाई बच्चियों को लाकर किया जा रहा उनका माइंड वॉश
इस संबंध में बालगृह ''आधारशिला'' की जांच कर बाहर आईं राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा एवं ओंकार सिंह से इस औचक निरीक्षण के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बहुत कुछ गलत एवं कानून को हाथ में लेकर संस्था द्वारा अपराधिक कृत्य करने की जानकारियां दीं । डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि जब अंदर जाकर देखा तो वहां सारी बच्चियां बाईबिल पढ़ती पाई गईं। क्योंकि बच्चियों का पूरानाम और पता बताना ठीक नहीं, इसलिए आप इतना जान लेवें कि इस ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित बालगृह में उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार, छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में जबलपुर और सागर के सबसे ज्यादा बच्चे यहां रहकर नर्सरी से पढ़ रहे हैं ।
टीचर-कर्मचारी का नहीं है पुलिस वेरिफिकेशन, बच्चों को पढ़ाने की अर्हता भी नहीं, अनुच्छेद 28 का हो रहा उल्लंघन
डॉ. शर्मा ने बताया कि बालगृह ''आधारशिला संस्थान''में किसी भी टीचर एवं अन्य सहयोगी कर्मचारी का कोई पुलिस वेरिफिकेशन नहीं मिला है। ज्वानिंग लेटर तक किसी के पास नहीं है। जिससे पता चल सकता कि ये सभी कब से आए हैं, कहां से आए हैं। इसमें भी सबसे आश्चर्य की बात यह है कि आवश्यक शिक्षा की अर्हता, यहां तक कि बच्चों को पढ़ाने तक कि अनिवार्यता से जुड़ी कम से कम योग्यता भी ये पूरी नहीं करते हैं।
एक लम्बे समय से हिन्दू या अन्य पंथ (धर्म) के बच्चों को रखकर (ब्रेनवॉशिंग) उनका माइंड वॉश किया जा रहा है, प्रथम दृष्टया यहां यही नजर आ रहा है। जबकि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 28 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योकि भारतीय संविधान के हिसाब से किसी भी बच्चे को उससे जुड़ी धार्मिक प्रथाओं से इतर गैर धार्मिक प्रथाओं का अभ्यास करवाना भारत के संविधान के इस अनुच्छेद में रोका गया है।
आवासीय बालगृह चलाने की कोई कानूनी अनुमति नहीं, फिर भी चलता पाया गया
इसके साथ ही राज्य बाल आयोग सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने यह भी बताया कि इस ''आधारशिला'' संस्था के पास आवासीय बालगृह चलाने की कोई कानूनी अनुमति नहीं है। इस मामले में जांच में पाया गया कि शिक्षा अधिकारी के इससे जुड़े हस्ताक्षर मिले हैं, जबकि विभाग से पूछने पर वे सभी इससे पल्ला झाड़ रहे हैं कि हमने कोई ऐसी अनुमति नहीं दी। इसके साथ ही आपको बताना चाहूंगी कि आवासीय बालगृह संचालन की कोई परमीशन देने के नियम और अधिकार अकेले शिक्षा विभाग के पास नहीं है, खासकर बालकों के संबंध में । ऐसे में जांच के दौरान शासन के नियमों की सीधे तौर पर धज्जियां अधिकारियों एवं कर्मचारियों की मिली भगत से उड़ती हुई यहां दिखाई दी हैं।
लड़का-लड़की दोनों के बालगृह एक ही जगह संचालित हो रहे
उन्होंने कहा कि यहां लड़का और लड़की दोनों के बालगृह एक ही जगह संचालित हो रहे हैं जोकि किसी भी एक्ट में स्वीकृत नहीं हैं। बालक और बालिकाओं का (गृह) निवास हमेशा अलग-अलग एक निश्चित दूरी पर संचालित करने के ही शासन के निर्देश हैं और कानून भी यही कहता है, लेकिन यहां इन नियमों का सीधा उल्लंघन पाया गया है। बच्चे अपने घर नहीं जाना चाहते, माता-पिता से बात करना नहीं चाहते। उनके मनोविज्ञान को कोई समझे, क्या हालत कर दी गई है उनकी यहां पर? इसके साथ ही आपने यह भी बताया कि जिस शिकायत को लेकर जांच करने आयोग यहां आया, उस व्यक्ति को पहले ही इस ''आधारशिला'' के प्रबंधकों ने भगा दिया है।
मिशनरी संस्था को प्रदेश में लागू धर्म स्वातंत्र्य कानून का नहीं है कोई भय
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में धर्म स्वातंत्र्य कानून लागू है, जोकि “जबरदस्ती, बल, गलत बयानी, अनुचित प्रभाव और प्रलोभन” के साथ-ही धोखाधड़ी, या विवाह के माध्यम से कन्वर्जन पर रोक लगाता है। इसके साथ ही यह किसी व्यक्ति को ऐसे कन्वर्जन के लिए “उकसाने और साजिश रचने” से रोकता है, लेकिन यहां ईसाई कन्वर्जन में लगे लोगों को इस कानून का कोई भय नहीं दिखाई दे रहा है।
धर्मांतरण के खेल में पहले से लिप्त है ये संस्था, लेकिन शासन है मौन
आपको बता दें कि पिछले साल नवम्बर माह में बाल संरक्षण अधिकार आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो दमोह पहुंचे थे, यहां उन्होंने ईसाई मिशनरियों की प्रमुख संस्थाओं की जांच की तथा बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पाए जाने पर 10 लोगों के विरुद्ध धर्मांतरण संबंधी एफआईआर दर्ज कराई थी। इन्हें लंबे समय से बाल संरक्षण आयोग को ईसाई मिशनरियों के अजय लाल, राजकमल डेविड लाल, विवर्त लाल, जेके हेनरी सहित विभिन्न लोगों द्वारा संचालित बाल छात्रावासों में अनियमितताओं एवं बच्चों का धर्मांतरण कराए जाने की सूचना मिल रही थी।