श्योपुर। छह बार के विधायक और पूर्व मंत्री रामनिवास रावत आज अंततः भाजपा में शामिल हो गए उनके साथ मुरैना की महापौर शारदा सोलंकी भी भाजपाई हो गई हैं।रामनिवास रावत बेशक कांग्रेस के कद्दावर नेता है और ओबीसी का बड़ा चेहरा भी।लेकिन उनकी राजनीति का वैशिष्ट्य उनकी रावत जाति भी है और भाजपा के लिए यह सबसे बड़ी जरूरत है ग्वालियर अंचल में श्योपुर, विजयपुर,सबलगढ़,भितरवार, करेरा ,पोहरी,शिबपुरी, दतिया,कोलारस,डबरा,जौरा,चांचौड़ा विधानसभा सीट्स पर रावत(मीणा)जाति के वोट अच्छी खासी संख्या में हैं।यह तथ्य है कि भाजपा से इस समय सरला रावत औऱ प्रियंका मीणा इस जाति से विधायक है लेकिन इन विधायकों का प्रभाव रामनिवास रावत की तरह नही है।
दूसरा पक्ष मुरैना लोकसभा सीट का भी है क्योंकि जौरा,सबलगढ़, विजयपुर,श्योपुर इन चार विधानसभा क्षेत्रों में रावत जाति के वोट बड़ी संख्या में है।मुरैना में भाजपा के लिए दो चुनौती खड़ी हो गई थी पहला कांग्रेस ने सजातीय ठाकुर उम्मीदवार उतार दिया और दूसरा बसपा ने उधोगपति रमेश गर्ग को टिकट देकर पार्टी के कोर व्यापारी वोटर में विचलन पैदा कर दिया था।रामनिवास रावत का दलबदल मुरैना के चुनावी गणित को तो साधेगा ही साथ में अंचल की दर्जन भर सीट्स पर भी भाजपा के जातीय समीकरण को मजबूत करेगा।
क्या मंत्री बनेंगे रामनिवास…?
अब बात करते हैं रामनिवास के नफे नुकसान की।रामनिवास रावत बमुश्किल एक चुनाव औऱ सक्रिय राजनीति में रह सकते हैं वे जमीनी नेता है लेकिन पिछले 20 साल से वह सत्ता से बाहर है।इधर कांग्रेस में भी उनके कद के अनुरूप कुछ मिला नही।तीन बार के विधायक उमंग सिंघार नेता विपक्ष बना दिये गए और चुनाव हारने के बाबजूद जीतू पटवारी को ओबीसी के नाम पर प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया।रामनिवास दोनों पदों के स्वाभाविक दावेदार थे।कांग्रेस में जिस तरह के हालत है उनके आधार पर रामनिवास के लिए भाजपा से बेहतर पुनर्वास इसलिए संभव नही था क्योंकि वे 2028 में एक थकी हुई पार्टी से फिर विधायक बनने के लिए शायद ही लड़ना पसंद करते।भाजपा में आकर वह स्तीफा देंगे और फिर उपचुनाव लड़कर विधायक बनना चाहेंगे।इस दौरान दिल्ली से जो डील हुई है उसके मुताबिक उन्हें मोहन सरकार में मंत्री भी बनाया जाएगा।विजयपुर के ताजा हालतों में उनका फिर से जीतकर आना फिलहाल तो कठिन नही लग रहा है।
तोमर की रही भूमिका-
इस दलबदल की पटकथा मुख्यतः विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा लिखी गई।भले ही दोनों नेता आमने सामने लोकसभा चुनाव लड़ चुके हो लेकिन आपसी संबंध दोनों के मधुर रहे हैं।मुरैना नरेंद्र सिंह तोमर का मुख्य कार्यक्षेत्र रहा है।
सिंधिया से नही बनी -
रामनिवास रावत कांग्रेस में माधवराव सिंधिया के खास रहे लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ उनके रिश्ते उस भरोसे के नही रहे जैसे उनके पिता के साथ थे।यही कारण रहा कि जब 2020 में सिंधिया ने दलबदल किया तो रामनिवास ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ नही गए।2020 में जब कमलनाथ की सरकार चली गई तब उनके विरुद्ध प्रशासनिक स्तर पर भी कारवाई हुई।उनके पेट्रोल पंप बन्द करा दिया गया।अब 4 साल के अंतराल में रामनिवास उसी पार्टी में आ गए जहां सिंधिया एक रुतबे के साथ खड़े हैं।
शारदा सोलंकी को निगम चलाना था-
मुरैना की मेयर शारदा सोलंकी विधानसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा में आने के लिए प्रयासरत रही।एक बार वह भोपाल भी पहुँच चुकी थी लेकिन बात नही बनी।आज वे रामनिवास रावत के संग भाजपाई हो गई।मूलतः कमलनाथ समर्थक मुरैना विधायक दिनेश गुर्जर के प्रति निष्ठावान शारदा को पार्टी से ज्यादा नगरनिगम चलाने के लिए सत्ता का साथ चाहिए था इसलिए वह भाजपा में आ ही गईं।