चुनाव से पहले धामी सरकार ने खेला मास्टर स्ट्रोक, देवस्थानम बोर्ड किया भंग
देहरादून। लंबे अर्से से चल रहे संघर्ष, उठा-पटक और तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी को देखते हुए आखिरकार उत्तराखंड की धामी सरकार ने बड़ा निर्णय लिया और उत्तराखंड देवस्थानम बोर्ड को भंग कर दिया। इससे चार धाम के तीर्थ-पुरोहितों में हर्ष की लहर है। अब विधानसभा के शीतकालीन सत्र में इस एक्ट को निरस्त किया जाएगा। यह कदम राज्य के विधानसभा चुनाव 2022 के लिए बड़ा प्रभावी कदम बताया जा रहा है। '
उत्तराखंड देवस्थानम बोर्ड को भंग करने के लिए धामी सरकार पर तीर्थ पुरोहितों का बहुत दबाव था। इस बोर्ड को भंग करने के लिए न केवल चार धाम के हक-हकूकधारी, तीर्थ-पुरोहित अपितु संत समाज भी बहुत ही नाराज था। इसको समाप्त किए जाने को लेकर अपना विरोध दर्ज करा रहा था। इसके बाद देवस्थानम बोर्ड की समीक्षा के लिए मंत्रियों की उच्चस्तरीय समिति के अलावा मनोहर कांत ध्यानी के नेतृत्व में एक हाई पावर कमेटी गठित की गई थी, जिसने कुछ दिन पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी दी। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों की उच्चस्तरीय कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी थी, लेकिन इसके बाद भी हक-हकूकधारियों का विरोध शांत नहीं हो रहा था। हालांकि मुख्यमंत्री ने कमेटियों की रिपोर्ट आने और इसके अध्ययन के बाद सही फैसला लेने के बात कही थी। अंतत: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज देवस्थान बोर्ड को भंग कर दिया। ऐसा माना जा रहा है कि इसको लेकर राज्य सरकार ने बड़े विरोध के स्वर को खत्म दिया है। इससे आने वाले विस चुनाव में भाजपा को लाभ मिलेगा।
संतों में हर्ष -
इस संबंध में तीर्थ पुरोहित महासभा अध्यक्ष संतोष त्रिवेदी का कहना है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जनता की आवाज सुनी है और इस बोर्ड को भंग कर दिया है। हम इसका स्वागत करते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री को धन्यवाद देते हुए कहा कि देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का लंबा इंतजार करना पड़ा। विधानसभा सत्र में इसे आधिकारिक रूप से समाप्त किया जाएगा। हमें उसकी प्रतीक्षा है।
देवस्थानम बोर्ड का गठन 15 जून 2020 के गजट के बाद हुआ था-
उत्तराखंड देवस्थानम बोर्ड का गठन 15 जून 2020 के गजट नोटिफिकेशन के बाद किया गया था। तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने इस देवस्थानम बोर्ड के तहत उत्तराखंड के चारों धामों सहित 51 मंदिरों को शामिल किया था। देवस्थानम बोर्ड के अस्तित्व में आने के बाद चारों धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित लगातार इसका विरोध कर रहे थे और बोर्ड को भंग करने की मांग को लेकर मुखर थे जबकि सरकार का मानना था कि हर साल बदरीनाथ और केदारनाथ में लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। यात्रियों के लिए सुविधाएं विकसित करना पहाड़ जैसी चुनौती होती है, लेकिन पहले से ही इन दोनों धामों में बदरी-केदार मंदिर समिति काम कर रही है जो व्यवस्थाओं को सुचारू नहीं कर पा रही है।
गंगोत्री मंदिर समिति
इसके अलावा गंगोत्री धाम के लिए अलग गंगोत्री मंदिर समिति और यमुनोत्री धाम के लिए अलग यमुनोत्री मंदिर समिति कार्य कर रही थीं। इन्हें देखते हुए व्यवस्था की दृष्टि से वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड की तर्ज पर त्रिवेंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में एक बोर्ड का गठन किया, जिसमें इन मंदिरों के अधीन मुख्य मंदिरों को शामिल किया गया। यह हक-हकूकधारियों और पंडा पुरोहितों के विरोध का कारण बना, लेकिन अब जब यह बोर्ड भंग दिया गया है। इससे पुरोहितों में काफी हर्ष है।